आपने देखा होगा कि सिंधी समुदाय के लोगों के नाम के साथ जो सरनेम होता है, उसके आखिर में नी अक्षर जरूर आता है। जैसे लालवानी, टिलवानी, किषनानी। इसके क्या मायने हैं, यह किस तरह की व्यवस्था व परंपरा है? इस पर विस्तार से चर्चा की जरूरत है। वह फिर कभी। अभी सिर्फ इतना ही कि सही क्या है, नी या णी। इस बारे में भारतीय सिंधु सभा के राश्टीय उपाध्यक्ष व अजमेर सिंधी सेंटल महासमिति के मंत्री व प्रमुख समजसेवी महेन्द्र तीर्थाणी का कहना है कि नी गलत है और णी सही। उनका तर्क है कि वस्तुःत उच्चारण में णी ही बोला जाता है, बोला जाता रहा है और बोला जाना चाहिए। नी षब्द अपभंष है। तो फिर यह गडबड कैसे हुई। हुआ यूं कि जब अंग्रेजी में उसे लिखा गया तो णी को लिखने का कोई उपाय नहीं था। उसे एन आई अर्थात नी लिखा गया। इसके बाद षनैः षनैः प्रचलन में णी की जगह नी आ गया। बेषक अंग्रेजी में एन आई यानि नी लिखें, और कोई उपाय भी नहीं है, मगर जब भी हिंदी में लिखना हो तो णी ही लिख जाना चाहिए, बोलना हो तो णी ही बोलना चाहिए।