रामचंद्र चौधरी पहले से भोग रहे हैं राजयोग

जैसे ही कांग्रेस ने रामचंद्र चौधरी को अजमेर संसदीय क्षेत्र का टिकट दिया, सबसे पहली प्रतिक्रिया थी कि वे चाहे कितने भी लोकप्रिय क्यों न हों, भीड जुटाने की क्षमता रखते हों, सालों से अजमेर डेयरी अध्यक्ष हों, मगर उनकी कुंडली में राजयोग नहीं है। दलील यह कि वे जब भी विधानसभा चुनाव लडे हैं, जीत नहीं पाए हैं। बात में दम तो है, मगर इस बारे में ज्योतिश का भिन्न मत है। एक ज्योतिशी ने बताया कि विधानसभा चुनाव हारना अलग बात है, मगर इसका यह अर्थ निकालना ठीक नहीं है कि उनकी किस्मत में राजयोग नहीं है। यदि राजयोग नहीं होता तो वे पैंतीस साल से अजमेर डेयरी के अध्यक्ष नहीं होते। वह राजयोग पिछले पैंतीस साल से लगातार चल रहा है। मोटे तौर पर राजयोग के मायने लोकसभा व विधानसभा या स्थानीय निकाय के चुनाव जीतने से लिया जाता है, लेकिन गहरे में विचार करेंगे तो उसका अर्थ सत्ता से होता है। आईएएस व आरएएस बनना भी राजयोग की वजह से संभव हो पाता है। डेयरी भी एक तरह का साम्राज्य है और उसका अध्यक्ष होना सत्ता पर काबिज होना है। सत्ता का मतलब षक्ति संपन्न व ऐष्वर्य होने से है और डेयरी अध्यक्ष के पास भी कई तरह की षक्तियां मौजूद हैं। उन्हीं का उपयोग करते हुए चौधरी ने अजमेर डेयरी को विषेश मुकाम दिलाया है। डेयरी नेटवर्क के दम पर उनकी पकड गांव ढाणी तक बनी हुई है। ज्योतिशी ने बताया कि चौधरी के राजयोग में उनकी धर्मपत्नी का पुण्य प्रताप भी काम कर रहा है। वे अत्यंत धर्मनिश्ठ व अध्यात्मिक व पतिव्रता महिला हैं। प्रतिदिन धार्मिक कार्यों में व्यस्त रहती हैं। चौधरी स्वयं भी पूजा पाठ खूब करते हैं। यह ठीक उसी प्रकार है, जैसे जिला प्रमुख श्रीमती सुषील कंवर पलाडा के पुण्य प्रताप से उनके पति भंवर सिंह पलाडा षक्ति व श्री संपन्न हैं। हालांकि पलाडा स्वयं भी धर्मनिश्ठ व दानदाता हैं। प्रतिदिन गरीब व जरूरतमंद की मदद करते हैं।
बहरहाल, चौधरी को अकेले डेयरी अध्यक्ष होने के नाते टिकट नहीं दिया गया है। टिकट का आधार उनका जाट जाति से होना है। ज्ञातव्य है कि अजमेर संसदीय क्षेत्र में ढाई लाख से भी अधिक वोट हैं। चूंकि दूध का व्यवसाय करने में जाट के अतिरिक्त गुर्जर व रावत भी संलिप्त हैं, उम्मीद की जा रही है कि जाटों अतिरिक्त अन्य जाति के दूधियों व काष्तकारों का भी समर्थन हासिल होगा। कहने की जरूरत नहीं है कि भाजपा के भागीरथ चौधरी भी जाट जाति से हैं, इस कारण जाटों के वोटों में बंटवारा होगा। अब तक का अनुभव है कि जाट मतदाता उसी ओर चले जाते हैं, जो अधिक ताकतवर होता है। इसका फैसला मतदान से दो तीन पहले किया जाता है कि किस जाट का साथ देना है, चाहे वह किसी भी पार्टी का हो। देखते हैं कि इस चुनाव में जाटों का झुकाव किस ओर होता है।

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