आपने गौ शाला, कबूतर शाला के नाम तो सुने होंगे, क्या कुत्ता शाला का नाम भी सुना है? नई पीढी को तो कदाचित पता नहीं होगा, मगर कुछ बुजुर्गों को ख्याल में होगा कि अजमेर के गंज इलाके में कुत्ताशाला हुआ करती थी। वहां पर आवारा कुत्तों को रखा जाता था। बीमार कुत्तों का इलाज भी किया जाता था। रखरखाव का काम कुत्ताशाला कमेटी किया करती थी, जिसमें शहर के प्रतिष्ठित लोग जुडे हुए थे। सुपरिचित बुद्धिजीवी श्री कमल गर्ग ने बताया कि यह व्यवस्था आवारा कुत्तों की समस्या के समाधान के लिए की हुई थी। ज्ञातव्य है कि आवारा कुत्ते रात भर भौंकते रहते हैं और नींद में खलल होती है। सुबह उठ कर देखते हैं तो रैंप पर, सीढ़ियों पर लैट्रिन की हुई होती है। साथ ही जैसे ही कोई गाड़ी आकर खड़ी होती है, तो कुत्ते टांग ऊंची करके पेशाब करते रहते हैं। कुत्तों के काटे जाने के भी प्रतिदिन कई मामले सामने आते हैं। इसलिए नगर परिषद की ओर से आवारा कुत्तों को पकडने की अभियान चला करता था। उन कुत्तों को कुत्ताशाला में रखा जाता था। कुत्ताशाला बनाने के पीछे धार्मिक कारण भी था। ज्ञातव्य है कि हमारे यहां पहली रोटी गाय के लिए व आखिरी रोटी कुत्ते के लिए निकालने की परंपरा है। आखिरी रोटी इकट्ठा करने के लिए कुत्ताशाला से पीपा लेकर एक कार्मिक आया करता था। पूर्व में इसी इलाके में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार श्री कोसिनोक जैन ने तस्दीक की कि उन्होंने कुछ साल पहले कुत्ताशाला में कुत्तों को पकड कर लाने और उनका रखरखाव करते देखा था। अब वहां कुत्ताशाला का अस्तित्व समाप्त हो गया है।
बहरहाल, सवाल ये कि क्या कुत्ताशाला दुबारा नहीं खोली जानी चाहिए?
