ईमानदार पत्रकारिता को पूर्ण समर्पित सुपरिचित फोटो जर्नलिस्ट स्वर्गीय श्री महेश नटराज का जीवन जिन हालात में कटा और बीमारी के कारण मृत्यु जिस तरह से हुई, उसने पत्रकारों के लिए यक्ष प्रश्न खडा कर दिया है। असल में अधिसंख्य फोटो जर्नलिस्ट व इलैक्ट्रोनिक मीडिया के रिपोर्टर्स ऐसे हैं, जिनका राज्य सरकार की ओर से अधिस्वीकरण नहीं किया हुआ है। न तो उन्हें राज्य सरकार की ओर से रियायती दर पर भूखंड मिल पाया है और न ही निःशुल्क यात्रा सुविधा का लाभ मिल रहा है। जाहिर तौर पर साठ साल से अधिक होने पर उन्हें पत्रकार सम्मान निधि भी नहीं मिल पाती। वे बहुत सीमित पारिश्रमिक में ही आजीविका चला रहे हैं। कम तनख्वाह में परिवार का भरण पोशण कर रहे हैं। यदि वे पत्रकारिता के अतिरिक्त आय का कोई और जरिया न अपनाएं तो जीवन बहुत कठिन हो जाता है। यानि पत्रकारिता पर पूरी निर्भरता जीवन को नर्क बना देती है। इसे मौजूदा पत्रकार साथियों व इस क्षेत्र में करियर तलाशने के इच्छुक युवाओं को समझना होगा। बेशक पत्रकारिता अतिरिक्त सम्मान दिलवाती है, मगर पेट तो रोटी से ही भरेगा ना। ऐसे अनेक उदाहरण मिल जाएंगे कि जिन पत्रकारों ने पत्रकारिता के साथ कुछ न कुछ और किया, वे सफल जीवन जी लिए। बाकी के पत्रकारों की स्थिति स्वर्गीय श्री नटराज जैसी है, जिनका पत्रकारिता के प्रति पूर्ण समर्पण बहुत कष्टप्रद हो रहा है। हालांकि उन्होंने बाद में कुछ और काम की तलाश की, मगर तब बहुत देर हो चुकी थी। अर्थात पत्रकारिता के आरंभ के साथ ही समानांतर रूप आय का कोई जरिया अपनाना चाहिए। श्री नटराज ने अतिरिक्त मेहनत कर पारिवारिक दायित्व का बखूबी निर्वहन किया। परिवार उनकी छत्रछाया में सुखी रहा, मगर बीमारी की वजह से वे संकट में ही रहे। खुदा न खास्ता ऐसा हमारे अन्य पत्रकार साथियों के साथ भी घटित हो सकता है।
जहां तक सरकार की ओर से मदद की उम्मीद है, वह बेमानी है। वह सिर्फ इतना कर सकती है कि न्यूनतम पारिश्रमिक तय कर उसकी सख्ती से पालना करवाए। पत्रकार साथियों को चाहिए कि वे एकजुट हो कर पत्रकार कल्याण कोष बनाना बनाएं, ताकि जब भी किसी के साथ बीमारी आदि का बुरा समय आए, या अकस्मात निधन हो तो उस कोष से सहायता दी जा सके। हमारी सोसायटी बहुत संवेदनशील है। पूरी उम्मीद की जा सकती है कि वह ऐसे कोष के लिए मुक्तहस्त सहयोग करेगी।
स्वर्गीय श्री नटराज सुपरिचित थे। उनके निधन का समाचार फेसबुक पर प्रकाशित हुआ तो हजारों शुभचिंतकों ने संवेदना व्यक्त की। इससे उनकी प्रतिष्ठा का अनुमान लगता है, मगर उस प्रतिष्ठा के नीचे दफन आर्थिक संघर्ष का क्या किसी को ख्याल है? जो सोसायटी आज उनके प्रति सम्मान व्यक्त कर रही है, क्या वह उन जैसे पत्रकारों की बहबूदी के लिए कुछ विचार करेगी?
