संघ के दखल से भाजपा दावेदार संयमित

bjp logo1जैसे ही यह तय हुआ है कि वसुंधरा की सुराज संकल्प यात्रा से लेकर विधानसभा चुनाव तक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की पैनी नजर रहेगी और चुनाव में संभागवार अन्य राज्यों के संगठन मंत्री टिकट वितरण से लेकर चुनाव होने तक पूरी प्रक्रिया पर नजर रखेंगे, भाजपा के टिकट दावेदारों का व्यवहार संयमित हो गया है। वे समझ रहे हैं कि भले ही संघ का संगठन मंत्री सीधे तौर पर दखल नहीं देगा, मगर उसकी राय की महत्वपूर्ण भूमिका होगी।
उल्लेखनीय है कि वसुंधरा राजे के प्रदेश अध्यक्ष बनने से पहले संघ से जुड़े विधायकों ने बगावती तेवर अपना रखे थे। राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह के हस्तक्षेप के बाद विवाद को सुलझा लिया गया था। गुलाबचंद कटारिया को नेता प्रतिपक्ष एवं वसुंधरा राजे को संगठन की कमान सौंपी गई थी। इसी के साथ यह भी तय हो गया कि संघ और वसुंधरा खेमे के बीच सीटों का सम्मानजनत बंटवारा होगा। जितनी सीटें संघ खेमे को देना तय होंगी, उनमें वसुंधरा दखल नहीं देंगी और वसुंधरा को अपने हिस्से में आई सीटों पर टिकट वितरण का मुक्तहस्त मिलेगा। इस सुलह के बाद भी संघ को लगा कि कहीं कोई गडबड़ न हो, सो उसने चुनावों में नजर रखने के लिए संभाग स्तर पर अन्य राज्यों के संगठन मंत्रियों को जिम्मेदारी सौंप दी है। यदि अजमेर संभाग की बात करें तो यहां हिमाचल प्रदेश के संगठन मंत्री पवन राणा को अजमेर संभाग में संगठन का कार्य देखेंगे। वे चुनाव तक वे यहीं रहेंगे। समझा जा सकता है कि दावेदारों के लिए जितने देवरे धोकने जरूरी थे, उनमें एक का इजाफा हो गया है। यानि कि हर दावेदार चाहेगा कि राणा जी की नजरे इनायत रहें। इससे एक ओर जहां संघ पृष्ठभूमि के दावेदारों को वसुंधरा के पक्षपात की जो आशंका थी, वह समाप्त हो गई हैं, वहीं वसुंधरा लॉबी के दावेदारों पर भी थोड़ा सा अंकुश लगा है कि अगर उन्हें टिकट मिल भी गया तो चुनाव जीतने के लिए संघ की मदद की जरूरत होगी। अब देखने वाली बात ये है कि क्या यह व्यवस्था कारगर हो पाएगी?
-तेजवानी गिरधर

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