पलाड़ा ने जो सोचा, जो कहा, वही कर दिखाया

पति भंवर सिंह पलाडा के साथ जिला प्रमुख श्रीमती सुशील कंवर पलाडा
पति भंवर सिंह पलाडा के साथ जिला प्रमुख श्रीमती सुशील कंवर पलाडा

याद कीजिए उन दिनों को जब युवा भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा ने राजनीति में कदम रखा तो एक ही मूल मंत्र का उद्घोष किया था कि वे राजनीति में राजनीति करने नहीं बल्कि जनता की सेवा करने आए हैं, तो सहसा किसी को यकीन नहीं हुआ। हर कोई कहता था कि कहने ओर करने में बहुत फर्क होता है। भला कोई समाज सेवा के लिए भी राजनीति में आ सकता है। मगर आज जबकि उनकी ही वास्तविक देखरेख में, उनकी धर्म पत्नी जिला प्रमुख श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा के नेतृत्व में काम कर रही अजमेर जिला परिषद को पंचायतीराज की योजनाओं को बेहतर तरीके से लागू करने पर केंद्र सरकार ने पुरस्कृत करने के लिए चयन किया है, उनकी सोच और कार्यप्रणाली पर वास्तविक धरातल पर ठप्पा लग गया है। ज्ञातव्य है कि आधिकारिक रूप से जिला प्रमुख सुशील कंवर पलाड़ा की पहल पर आयोजित जिला परिषद आपके द्वार कार्यक्रम का पहले मुख्यमंत्री ने तारीफ कर इसे प्रदेश में किया लागू किया था। और अब बेहतरीन कार्य के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह व यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के हाथों उन्हें पुरस्कृत किया जाना है।
इस सिलसिले में दैनिक भास्कर के सिटी चीफ सुरेश कासलीवाल के न्यूज आइटम में लिखी पंक्तियों पर जरा गौर कीजिए कि राजघरानों से राजनीतिक क्षेत्र में महिलाएं पहले भी आती रही हैं और अपनी शक्ति का लोहा मनवाती रही है, लेकिन निहायत घरेलू माहौल से घर की देहलीज लांघकर पहली बार राजनीति के मैदान में उतरी जिला प्रमुख सुशील कंवर पलाड़ा ने अपनी प्रबल इच्छा शक्ति व उर्वरक प्रतिभा के बल पर वह काम कर दिखाया, जिसे करने में कई नेताओं को बरस लग जाते हैं। यह तथ्य औपचारिक रूप से तो सही ही है, मगर इसमें कोई दोराय नहीं होगी कि उनकी सफलता में अहम भूमिका उनके पति की ही है। बेशक श्रीमती पलाड़ा भी पूरे समर्पण के साथ काम कर रही हैं, उनकी सोच भी पलाड़ा की ही तरह गरीबों की सेवा करने की है, मगर उनकी असली ताकत तो पलाड़ा ही हैं।
यहां सर्वाधिक उल्लेखनीय बात ये है कि केन्द्र व राज्य में कांग्रेस की सरकार है, जबकि अजमेर जिला परिषद पर भाजपा बोर्ड का कब्जा है। समझा जा सकता है कि पुरस्कार के काबिल बनने में पलाड़ा दंपति को किन कठिन रास्तों से गुजरना पड़ा होगा। असल में वे चाहते तो ये थे कि जिला परिषद आपके द्वार कार्यक्रम में सभी विभागों के अधिकारियों को ब्लॉक स्तर पर जनता के बीच ले जाया जाए, मगर ऐसा तकनीकी कारणों और राज्य में कांग्रेस की सरकार होने के चलते संभव हो नहीं पाया। इस पर उन्होंने पंचायतीराज विभाग को सौंपे गए 5 विभागों के सहयोग से ही शिविर लगाना आरंभ किया। और जब उसके अनुकूल परिणाम आने लगे तो कांग्रेस के मंत्रियों तक को उनकी सफलता की सराहना करनी पड़ी।
आइये, जरा जानें कि पलाड़ा किस पृष्ठभूमि से उठ कर आज इस मुकाम पर आए हैं।
नागौर जिले के पलाड़ा गांव में श्री पीरू सिंह राठौड़ के घर 25 जून 1970 को जन्मे पलाड़ा ने स्नातक स्तर तक शिक्षा अर्जित की है और उनका मौलिक व्यवसाय रॉयल्टी का है। समाजसेवा की भावना से उन्होंने प्रिंट व इलैक्ट्रोनिक मीडिया के क्षेत्र में कदम रखा है और अजमेर में सांध्य दैनिक सरे-राह समाचार पत्र और सरे-राह न्यूज चैनल का सफलतापूर्वक संचालन कर रहे हैं। राजपूत समाज में भी उन्होंने समाजसेवा के जरिए विशेष स्थान बनाया है। वे अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा, अजमेर के संभाग प्रभारी, राजपूत सामूहिक विवाह समिति, पुष्कर के संरक्षक, मेजर शैतानसिंह राजपूत छात्रावास व शिक्षण संस्थान, अजमेर के मुख्य संरक्षक, श्री क्षत्रिय प्रतिभा विकास व शोध संस्थान, अजमेर के संरक्षक सदस्य, राजपूत एकता मंच के सरंक्षक और राजपूत स्टूडेन्ट यूथ ऑर्गेनाइजेशन, राजस्थान के प्रधान संरक्षक हैं। आध्यात्मिक विचारों से ओतप्रोत पलाड़ा सक्रिय राजनीति में तो पिछले करीब दस साल से सक्रिय हुए हैं, लेकिन सामाजिक व धार्मिक क्षेत्र में तन, मन, धन से सेवा कार्यों में वे पहले से ही जुटे हुए हैं।
एक बार उन्होंने जब राष्ट्र रक्षा संकल्प रैली निकाली और अकेले उनके दम पर ही जब भारी भीड़ उमड़ी तो सभी दांतों तले अंगुली दबाने को मजबूर हो गए थे। उनकी संगठन शक्ति को देख कर स्थानीय भाजपा नेता भी समझ गए थे कि इस आंधी को रोका नहीं जा सकेगा। स्थानीय भाजपा नेताओं को बड़ी तकलीफ होती थी कि यह शख्स आगे आया तो उनका वजूद खतरे में पड़ जाएगा। वे तो चाहते ही नहीं थे कि उन्हें टिकट मिले, मगर पार्टी के बड़े नेता जानते थे कि इस युवा नेता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकेगा।
असल में उनका राजनीतिक कद 2003 के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में तीस हजार वोट हासिल करने के कारण बना। उन्हीं की वजह से भाजपा के अधिकृत उम्मीदवार रमजान खान हार गए थे। पिछली हार से सबक लेते हुए भाजपा उन्हें 2008 में पुष्कर से अपना प्रत्याशी बनाया, मगर एक बागी के खड़े हो जाने के कारण उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। राजनीतिक लिहाज से यह एक बड़ा झटका था, मगर उन्होंने हार नहीं मानी। जिला परिषद के चुनाव में उनकी पत्नी श्रीमती सुशील कंवर मैदान में उतरीं। वे भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी के रूप में जिला परिषद के वार्ड एक से कांग्रेस की लक्ष्मी कंवर को 3500 वोटों से पराजित कर जिला परिषद सदस्य निर्वाचित हुई। इसी प्रकार जिला प्रमुख पद पर कांग्रेस की श्रीमती कीर्ति चौधरी को 9 मतों से पराजित किया। इसके बाद पलाड़ा दंपति ने अपना पूरा ध्यान जिले के विकास पर लगा दिया। श्रीमती सुशील कंवर पलाड़ा जिला परिषद का काम बखूबी संचालित कर रही हैं, उन्हें उनके पति भाजपा नेता भंवर सिंह पलाड़ा का सहयोग मिल रहा है, जिससे उन्होंने अनेक उपलब्धियां अर्जित की हैं। उन उपलब्धियों का ही परिणाम है कि आज उनका नाम राष्ट्रीय क्षितिज पर उभरने जा रहा है। आज पलाड़ा अजमेर जिले में के राजनीति क्षेत्र में एक ऐसा उभरता हुआ युवा चेहरा है, जिससे सभी को काफी उम्मीदें हैं।
-तेजवानी गिरधर

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