क्या अजमेर की मीडिया ट्यूबलाइट है?

प्रवेश शर्मा
प्रवेश शर्मा

शांतिप्रिय व संतुष्टि जीवों की अजमेर नगरी में इस नए साल से एसीडी ने बवाल कर रखा है। मानो एसीबी ने न्यू ईयर रिसोल्यूशन ही अजमेर में भ्रष्टाचारों को खदेडऩे का लिया हो। सबसे पहला धमाका हुआ जनवरी में एसपी राजेश मीणा का मंथली प्रकरण। दूसरा हुआ राजेन्द्र प्रसाद जयसिंघानी का रुपए 10 हजार का रिश्वत का मामला। तीसरा बम फटा माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के फाइनेंशियल एडवाइजर व चीफ अकाउंटेंट नरेन्द्र कुमार तंवर पर। और अब विस्फ ोट न्यायिक लिपिक भर्ती में भ्रष्टाचार का मामला उजागर हुआ है। चार महीने में चार बड़े भ्रष्टाचार के प्रकरण सामने आए हैं। गौर करने की बात ये है कि नेता, सरकारी अफसर, अभिभाषक, यहां तक की न्यायाधीश और न्यायपालिका पर भी आंच आ चुकी है। बचा हुआ है तो वो है पत्रकार जगत… वो भी विद ड्यू रिस्पैक्ट, इन्हें मेरा नमन्।
अजमेर में इतने बड़े प्रकरण सामने आने से ये बात तो साफ है कि चौथा स्तंभ कहे जाने वाला पत्रकार या तो आराम फरमा रहा है या फिर इसमें सम्मिलित है । क्या ये समय ये सोचने का नहीं कि क्या पत्रकार भ्रष्ट नहीं? क्या पत्रकारों को एसीबी की कार्यवाही के बाद ही प्रकरण का पता चलता है? क्या ये उनकी जिम्मेदारी नहीं की समाज में भ्रष्टाचार के मामले समाज के सामने उजागर करें? पुलिस अधीक्षण मंथली प्रकरण में जिस तरह प्रकरण का खुलासा होने के बाद पत्रकारों ने बखिया उधेड़ी वो काबिले तारीफ है, जिसे अजमेरनामा ने भी अपनी वेबसाइट पर अजमेर के पत्रकारों को सराहा। हर एक एंगल से फु ल-फु ल पेज में जो बातें मीडिया जनता के सम्मुख लाया, उससे ये स्पष्ट होता है कि अजमेर के पत्रकारों की पकड़ कमजोर तो बिल्कुल भी नहीं है। फि र ये प्रकरण मीडिया उजागर करने में सक्षम क्यों नहीं हो पा रहा? ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या अजमेर की मीडिया ट्यूबलाइट है, जो केवल स्टार्टर से ही जलती है।
अगर नेता, सरकारी अफ सर, अभिभाषक, न्यायपालिका और पत्रकार भी भ्रष्टाचार में सम्मिलित हो गया, तो फि र समाज का क्या हश्र होगा? आम जनता की स्थिति पहले ही कहां कम दयनीय है, यदि आम आदमी के साथ अन्याय होता है तो क्या बस भगवान का दरवाजा खटखटाना ही रह जाता है?
-प्रवेश शर्मा
प्रबंध संपादक, दैनिक न्याय सबके लिए

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