शैक्षिक राजधानी बनी भ्रष्टाचारियों का अड्डा

ajmer logoअरावली पर्वत शृंखला के आंचल में महाराजा अजयराज चौहान द्वारा स्थापित अजमेर नगरी की दुनिया में खास पहचान रही है। इसका आध्यात्मिक और पौराणिक महत्व इसी तथ्य से आंका जा सकता है कि सृष्टि के रचयिता प्रजापिता ब्रह्मा ने तीर्थगुरू पुष्कर में ही आदि यज्ञ किया था। सूफी मत के कदीमी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती के रूहानी संदेश से महकती इस पाक जमीन में पल्लवित व पुष्पित विभिन्न धर्मों की मिली-जुली संस्कृति पूरे विश्व में सांप्रदायिक सौहाद्र्र की मिसाल पेश करती है। इस रणभूमि के ऐतिहासिक गौरव का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि यह सम्राटों, बादशाहों और ब्रितानी शासकों की सत्ता का केन्द्र रही है। आजादी के आंदोलन में तो यह स्वाधीनता सेनानियों की प्रेरणास्थली रही। मगर…………. मगर, अब दुष्कर्मियों और भ्रष्टाचारियों के अड्डे के रूप में पहचान बनाने लगी है। कुछ साल पहले बहुचर्चित अश्लील छायाचित्र ब्लैकमेल कांड की वजह से पूरी दुनिया में यह जमीं शर्मसार हुई और अब भ्रष्टाचार के एक के बाद एक कांड खुलने से यह भ्रष्टाचार का अड्डा साबित होती जा रही है।
ताजा मामला कोर्ट से जुड़ा है, जिसमें कोर्ट स्टेनोग्राफर, कनिष्ठ लिपिक भर्ती परीक्षा में पांच से छह लाख रुपए लेकर भर्ती करवाने का खुलासा हुआ है। एसीबी ने इस मामले में दो वकीलों, नसीराबाद कोर्ट के नाजिर और अजमेर कोर्ट में लिपिक के घर छापा मारा। इससे पहले भी अनेक मामले उजागर हो चुके हैं और प्रदेशभर में एसीबी की सर्वाधिक कार्यवाहियों का रिकार्ड बनता जा रहा है।
आपको याद होगा कि एसीबी ने इससे पहले कैटल फीड प्लांट के तत्कालीन मैनेजर सुरेंद्र कुमार शर्मा के पास 10 करोड़ की नकदी व सोना पकड़ा था। कोआपरेटिव बैंक के एमडी हनुमान कच्छावा का आय से अधिक संपत्ति का प्रकरण भी एसीबी की कार्यवाही से उजागर हुआ। इसके बाद बैंक के ही ब्रजराजसिंह भी एसीबी के जाल में फंसे और कोर्ट से सजा भी हुई। कानून की रक्षा करने वाली पुलिस भी एसीबी की कार्यवाही से नहीं बच पाई। आईपीएस अजय सिंह के पकड़े जाने से इसकी शुरुआत हुई। जब एसपी राजेश मीणा के घर छापा पड़ा तो पूरी अजमेर जिले की पुलिस भ्रष्टाचार में संलिप्त पाई गई। इस मामले में तत्कालीन एसपी राजेश मीणा और एएसपी लोकेश सोनवाल से लेकर करीब एक दर्जन थानाधिकारी उलझे। मीणा चार माह से जेल में है, जबकि लोकेश सोनवाल फरार है। दो थानाधिकारियों के स्थाई गिरफ्तारी वारंट जारी हो रखे हैं तो शेष के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए जरूरी कार्रवाई की जा रही है। इस प्रकरण में राजस्थान लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष पर भी छींटे आए, मगर उनके खिलाफ मामला नहीं बना। पिछले दिनों आबकारी का डिपो मैनेजर और आदर्शनगर थाने का तत्कालीन एसआई भी एसीबी की गिरफ्त में आए। इसके बाद एसीबी ने फिर एक बड़ी कार्रवाई कर माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के वित्तीय सलाहकार नरेंद्र कुमार तंवर को धर दबोचा। तंवर से करोड़ों रुपए की बोर्ड की एफडी और अकूत संपत्ति का पता चला। तंवर भी जेल में हैं। इस सिलसिले में आम जनता की नजर में बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष पर भी शक की सुई घूम गई, यह बात अलग है कि अब तक वे लपेटे में नहीं आए हैं।
सवाल ये उठता है कि आखिर इसकी वजह क्या है कि अजमेर में ही भ्रष्टाचार के मामले अधिक पकड़ में आ रहे हैं। यूं भले ही इस शहर को टायर्ड व रिटायर्ड लोगों का शहर कहा जाए, मगर उसी की जड़ में छिपा है यहां हो रहे गोरखधंधे का राज। आप रिकार्ड उठा कर देख लीजिए, जो भी अधिकारी एक बार यहां आ जाता है तो उसकी कोशिश यही रहती है कि किसी न किसी रूप में यहीं बना रहे। इसी वक्त कोई एक दर्जन बड़े अधिकारी अजमेर में मौजूद हैं, जो डिपार्टमेंट बदल-बदल की अजमेर को ही अपना ठिकाना बनाए हुए हैं। वजह ये नहीं है कि इस आध्यात्मिक धरा पर उन्हें आत्मिक सुकून मिलता है, अपितु कारण ये है कि यहां लूटना आसान है, क्योंकि जनता तो सोयी हुई है ही, सहनशील है ही, यहां के नेता भी मस्त हैं। सच तो ये है कि उन्हें पता ही लगता कि कौन अधिकारी कितना लूट रहा है। उनमें दमदारी भी नहीं है। इसी कारण अधिकारियों की यहां मौज ही रहती है और वे पूरी नौकरी तो यहां करना चाहते ही हैं, रिटायर्ड होने के बाद भी यहीं बस जाते हैं।
माना कि भ्रष्टाचार हर जगह मौजूद है, मगर अकेले अजमेर के अधिकारी ही एसीबी की चपेट में कैसे आ रहे हैं। इसका सीधा सा अर्थ है कि यहां राजनीतिक तंत्र कमजोर होने के कारण वे बेखौफ भ्रष्टाचार करते हैं और एसीबी के जाल में फंस जाते हैं। और इसी वह से अजमेर अब भ्रष्टाचारियों का अड्डा सा बन गया है। पूर्व एसपी राजेश मीणा को ही लीजिए। क्या जिस प्रकार उन पर मंथली वसूलने का आरोप लगा, वैसे मंथली और जिलों में नहीं वसूली जाती? बेशक वसूली जाती है, मगर यहां आ कर मीणा इतने बेखौफ हो गए कि उन्हें ख्याल ही नहीं रहा कि कभी एसीबी के चक्कर में आ जाएंगे। स्पष्ट है कि उन्होंने यहां की जनता, व्यापारियों व छुटभैये नेताओं का मिजाज जान लिया और ठठेरा के चक्कर में लापरवाह हो गए। वे क्या सारे थानेदार भी बड़ी आसानी से ठठेरा के जाल में आ गए।
ताजा मामला भी बहुत गंभीर है। भले ही इसमें फिलहाल चंद लोग ही लपेटे में आए हैं, मगर ठीक से और पूरी ईमानदारी से काम हुआ व राजनीतिक दखलंदाजी नहीं हुई तो चौंकाने वाली जानकारियां भी सामने आ सकती हैं।
-तेजवानी गिरधर

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