वसुंधरा के भाषण से वंचित रह सकती थी अजमेर की जनता

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हालांकि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा राजे की अजमेर यात्रा हर दृष्टि से सफल रही, चाहे समर्थकों के उत्साह की दृष्टि से, चाहे जगह-जगह स्वागत के लिहाज से, या फिर सभा में उमड़ी भीड़ के मद्देनजर, मगर थोड़ी सी लापरवाही और होती तो अजमेर की जनता उनका भाषण सुनने से महरूम रह सकती थी।
असल में वसुंधरा का काफिला पहले से ही काफी देरी से चल रहा था। इस कारण यात्रा प्रबंध संभालने वालों की कोशिश ये थी कि रास्ते में हो रहे स्वागतों में कम से कम समय खर्च किया जाए, ताकि वसुंधरा राजे सभा में इतना पहले तो पहुंच ही जाएं कि बीस मिनट से आधा घंटा तक संबोधित कर सकें। नियम के अनुसार रात दस बजे बाद वे भाषण देेने से परहेज रखती हैं। प्रबंधकों की लाख कोशिश के बाद भी वे कामयाब नहीं हो पाए।
अजमेर आगमन पर सबसे पहले रीजनल कॉलेज के सामने भाजयुमो के प्रदेश कार्यकारिणी के सदस्य अमित भंसाली के नेतृत्व में सैकड़ों कार्यकर्ताओं के उत्साह को देखते हुए उन्हें स्वागत मंच के पास रुकना पड़ा। हालांकि वे रथ से बाहर नहीं निकलीं, मगर रथ में लगी लिफ्ट से ऊपर आकर कार्यकर्ताओं का अभिनंदन स्वीकार किया। अमित भंसाली, नितेष आत्रेय, नितिन शर्मा एवं युवा मोर्चा कार्यकर्ताओं ने उनको तलवार भेंट की। शक्ति प्रदर्शन के लिहाज से सर्वाधिक तगड़ा आयोजन था।
इसके बाद रीजनल कॉलेज तिराहे पर विधायक वासुदेव देवनानी समर्थकों ने स्वागत किया। वैशाली नगर में निगम के उपमहापौर अजीत सिंह राठौड़, वीरेंद्र बालिया, राजेश पाराशर ने पुष्प गुच्छ भेंट कर स्वागत किया। वैशाली नगर में ही विभिन्न शिक्षक संगठनों, गिरधर शर्मा, संदीप भार्गव सहित अन्य कार्यकर्ताओं ने स्वागत किया। वैशाली नगर स्थित देवनारायण मंदिर के सामने पूर्व सरपंच कंचन गुर्जर व संतोष देवी के नेतृत्व में स्वागत किया गया। गोविंद राय भडाणा, धन्नालाल, रामदेव बावला ने चूनरी ओढ़ाई तो देवसेना के जिलाध्यक्ष नंदकिशोर गुर्जर ने तलवार भेंट की। क्रिश्चियन गंज में पार्षद नीरज जैन ने बड़ी संख्या में समर्थकों के साथ स्वागत किया। इसी प्रकार खुद को अजमेर दक्षिण का दावेदार मान रहीं पार्षद बीना सिंगारिया ने महिलाओं के साथ स्वागत किया। क्रिश्चियनगंज स्थित शिव मंदिर पर स्वागत धर्मेंद्र सिंह चौहान और नवीन बंसल आदि ने किया। सावित्री चौराहे पर विधायक अनिता भदेल के नेतृत्व में पार्षद दिनेश चौहान, संपत सांखला, दलजीत सिंह आदि ने स्वागत किया। बेशक इन स्वागतों से कार्यकर्ताओं का उत्साह झलक रहा था, मगर था यह शक्ति प्रदर्शन ही। इन स्वागतों में लग रहे समय के कारण प्रबंधक परेशान थे। प्रबंधकों के हस्तक्षेप के कारण कई जगह समर्थकों को मायूस भी होना पड़ा। इस बीच किसी ने सुझाव दिया कि चूंकि वसुंधरा राजे तीर्थराज पुष्कर में रुकी हैं, इस कारण उन्हें दरगाह भी जाना चाहिए, ताकि मुसलमानों में भी अच्छा संदेश जाए। दिक्कत ये थी कि रात दस बजे के बाद जातीं तो आस्ताना मामूल हो जाता, अत: सभा से पहले ही जाने का निर्णय हुआ। मजबूरी में अचानक हुए इस परिवर्तन से प्रबंधक परेशान हो गए, मगर कोई चारा नहीं था। सावित्री चौराहे पर रथ से उतर कर अन्य वाहन में बैठीं और दरगाह के लिए रवाना हुईं, मगर रास्ते में भी इतना स्वागत हुआ कि उन्हें दरगाह में पहुंचते-पहुंचते नौ बज कर बीस मिनट हो गए। वहां करीब 15 मिनट और लग गए। नतीजतन शाम छह बजे के निर्धारित समय की बजाय सभा स्थल पर नौ बज कर तैयांलीस मिनट पर पहुंच पाईं। इस कारण वे मात्र तेरह मिनट ही भाषण दे पाईं। यदि मार्ग में थोड़ा और विलंब होता तो अजमेर की जनता वसुंधरा का भाषण सुनने से वंचित रह सकती थी। समझा जा सकता है कि जिस सभा के लिए शहर भाजपा ने इतनी ताकत झोंकी, उसमें जुटाए गए लोगों को भाषण सुनने का मौका न मिलता तो उसको लेकर पार्टी के भीतर सिर फुटव्वल हो जाती।
यात्रा का प्रबंध संभालने वालों का आकलन ये बताया जा रहा है कि सभा स्थल पर देरी से पहुंचने का प्रमुख कारण दावेदारों का शक्ति प्रदर्शन और स्वागत-सत्कार रहा। चूंकि सर्वाधिक जगह शक्ति प्रदर्शन विधायक प्रो. वासुदेव देवनानी समर्थकों ने किया, इस कारण सभा स्थल पर देरी से पहुंचने का ठीकरा उन पर फूट सकता है। स्वाभाविक सी बात है कि देवनानी विरोधी खेमा इसका लाभ उठाने की कोशिश करेगा। यहां यह बताने की जरूरत नहीं है कि सभा में भीड़ जुटाने की पूरी जिम्मेदारी शहर भाजपा व दोनों विधायकों के सिर पर थी, मगर इस सब में सामंजस्य प्रदेश उपाध्यक्ष औंकार सिंह लखावत बैठा रहे थे, इस कारण सफलता का श्रेय उन्हीं के खाते में जाना था, जो देवनानी को भला कैसे गवारा होता। ऐसे में सभा स्थल पर वसुंधरा को कम समय मिलने का दोष वे देवनानी पर मढ़ सकते हैं, यह कह कर कि उन्होंने सभा की बजाय अपने शक्ति प्रदर्शनों पर ज्यादा ध्यान दिया, जिससे काफी समय खराब हुआ। मूलत: दो धड़ों में बंटी भाजपा की यह खींचतान प्रत्यक्षत: भले ही नजर नहीं आई हो, मगर कार्यकर्ताओं में इस मुद्दे पर खासी चर्चा है। वैसे भी किसी बड़े आयोजन के बाद उसकी सफलता से ज्यादा चर्चा कमियों पर हुआ करती है, भले ही वह किसी परिवार का विवाह समारोह ही क्यों न हो। ऐसे में एक राजनीतिक पार्टी, जो कि गुटबाजी से त्रस्त है, उसमें तो टांग-खिंचाई होनी ही है।
-तेजवानी गिरधर

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