नाबार्ड ने पूरे किए अपने स्थापना के 31 वर्ष

nabardराष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड), जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्राी, श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश की सेवा में समर्पित किया था, 12 जुलाई 2013 को अपनी स्थापना के 31 वर्ष पूरे किये है। पिछले 31 सालों के दौरान, नाबार्ड ने ग्रामीण वित्तीय संस्थाओं को पुनर्वित्त सहायता देकर, बुनियादी सुविधाओं के सृजन हेतु वित्तीय सहायता देकर तथा ग्रामीण ऋण वितरण प्रणाली को शुरू करके जिले एवं राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को नया रूप देने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। नाबार्ड, जिसने सिर्फ पुनर्वित्त देने वाली संस्था के रूप में अपना काम करना शुरू किया था, आज अपनी बहुविध गतिविधियाँ फैला चुका है तथा ग्रामीणों के जीवन के हर क्षेत्रा के साथ गहराई से जुड़ा है। इस अवधि में इस बैंक का विस्तार हुआ है और इसकी बैलेंसशीट, जो 1982-83 में महज़ 4500 करोड़ रूपये थी आज बढ़कर 2,00,000 करोड़ रूपये से भी अधिक है।
पुनर्वित्त सहायता: नाबार्ड विभिन्न बैंकों को कृषि और सहबद्ध व अन्य ग्रामीण उद्योग-धंधों के लिए पुनर्वित्त सहायता देता है। यह सहकारी बैंकों और क्षेत्राीय ग्रामीण बैंकों को फसली ऋणों के लिए पुनर्वित्त उपलब्ध कराता है। जहाँ नाबार्ड 1982-83 में अखिल भारतीय स्तर पर लगभग 2000 करोड़ रूपये का पुनर्वित्त दे रहा था, 2012-13 तक इसका पुनर्वित्त बढ़कर 70,000 करोड़ रूपये का आंकड़ा छू चुका है।
ग्रामीण बुनियादी सुविधाओं के लिए वित्तपोषण: नाबार्ड द्वारा राज्य ग्रामीण बुनियादी सुविधाओं जैसे सिंचाई, ग्रामीण सम्पर्क मार्ग, भंडारण सुविधाएँ, वानिकी, सामाजिक क्षेत्रा आदि के लिए राज्य सरकारों को दी जा रही वित्तीय सहायता इन सालों के दौरान अभूतपूर्व तरीके से बढ़ी है। यह सहायता 1995 में इस प्रयोजन हेतु गठित ग्रामीण आधारभूत सुविधा निधि में दी जाती है। आर.आई.डी.एफ. का व्यवसाय जो 1995-96 के दौरान केवल 2000 करोड़ रूपये था, चालू वित्त वर्ष तक बढ़कर रूपये 20 हजार करोड़ हो चुकी थी।
विकासात्मक भूमिका: नाबार्ड द्वारा विभिन्न विकासात्मक गतिविधियाँ भी की जाती हैं। जिनसे ग्रामीण क्षेत्रों को बेहद लाभ हुआ है। आज दुनिया का सबसे बड़ा सूक्ष्म वित्त कार्यक्रम – एसएचजी बैंक लिंकेज कार्यक्रम 1993 में नाबार्ड ने ही शुरू किया था। पिछले दो दशकों के दौरान नाबार्ड से इससे 84 लाख स्वयं सहायता समूहों को वित्तीय सहायता दी है और इस प्रकार अब तक 10 करोड़ परिवार इस कार्यक्रम में शामिल किए जा चुके हैं, राजस्थान में नाबार्ड ने अब तक 2.50 लाख स्वयं सहायता समूहों का बैंक लिंकेज किया है और 69000 से अधिक समूहों का वित्त पोषण भी किया है।
प्रति वर्ष समूहों के गठन के लिये वित्तीय सहायता दी जा रही है ताकि यह योजना का लाभ अधिक से अधिक लोगों को मिले। अजमेर जिले में प्रतिवर्ष 1500 से 2000 स्वयं सहायता समूहों को वित्त पोषित किया जा रहा है। पिछले वर्षों में नाबार्ड द्वारा विकास के लिये उठाये गये कदम नीचे उल्लेखित है।
1. भण्डारण सुविधाएं: खाद्यान्नों के कार्यकुशल प्रबंधन को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से नाबार्ड तथा भारत सरकार ने देश भर में भण्डारण सुविधाओं के सृजन के लिए व्यापक कार्यक्रम बनाया है। आर.आई.डी.एफ. के अन्तर्गत भण्डारण के लिए 5000 करोड़ रूपये की राशि अलग रखी गयी है। इस निधि का प्रयोग बैंकों को कृषि उपज के भण्डारण की बुनियादी सुविधाओं के सृजन के लिए 9 प्रतिशत ब्याज दर पर बैंक ऋण का 100 प्रतिशत पुनर्वित्त के रूप में दिया जाता है।
2. किसानों को आसान तथा सुविधाजनक ऋण: नाबार्ड ने 1988 में किसान क्रेडिट कार्ड लागू योजना लागू की जिससे किसानों को मिलने वाले ऋण में क्रांति ला दी। नये केसीसी, स्मार्ट कार्ड के रूप में होंगे जिनका इस्तेमाल एटीएम कार्ड के रूप में भी किया जा सकेगा। ये पांच वर्ष की अवधि के लिए जारी किए जाएगें और वैज्ञानिक तरीके से गणना की गई उत्पादन तथा निवेश दोनों प्रकार की ऋण सीमाओं के लिए होंगे।
3. वित्तीय समावेशन: राष्ट्रीय कार्यक्रम के अन्तर्गत नाबार्ड ने 100 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को बैंकिंग के दायरे में लाने के लिए भी कदम उठाया है। नाबार्ड ने बड़ौदा राजस्थान ग्रामीण बैंक तथा मेवाड़ आंचलिक ग्रामीण बैंक को कोर बैंकिंग सोल्यूशन के लिए वित्तीय सहायता दी ताकि कोई भी खाताधारक सरकारी भुगतान तथा अन्य प्रकार के भुगतान बिना कठिनाई और विलम्ब के किसी भी स्रोत से प्राप्त कर सके। यही प्रक्रिया सहकारी बैंकों में अपनाई गई है और उम्मीद है कि सभी केन्द्रीय सहकारी बैंक सीबीएस प्रणाली पर आ जाऐंगे और प्रदेश के अन्य बैंकों की भांत विभिन्न प्रकार की सेवाएं जनता को उपलब्ध करा पाएगें।
-सुधीर शर्मा
सहायक महाप्रबन्धक नाबार्ड
अजमेर

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