केकड़ी में तेजाजी का थान बना आस्था का धाम

14-09-13 VEER TEJAJI DHAM-पीयूष राठी- धार्मिक भावनाओं से जुड़ा लोक देवता तेजाजी का थान इन दिनों आस्था का मुकाम बन चुका है। माना जाता हैं लोक देवता तेजाजी के इस थान पर सर्प दंश के पीडि़त व्यक्ति को लाने पर उसका बिना किसी डाक्टर के इलाज संभव हो जाता हैं तथा उसके शरीर को तेजाजी विशमुक्त करके उसे एक नया जीवन प्रदान करते हैं। इसी उम्मीद व आस्था के साथ सैकड़ों लोग सर्पदंश के पिडि़त व्यक्ति को यहां लेकर आते हैं तथा तेजाजी से उसका इलाज करवा कर यहां से लौटते हैं। साथ ही अनेकों रोगों से भी निजाद यहां मिलती हैं जिसके चलते ही कई-कई दिनों तक भक्त यहां आकर रहते हैं तथा स्वस्थ होने पर ही यहां से लौटते हैं। इन दिनों तेजा मेले की धूम केकड़ी शहर में हैं जिसके चलते रोजाना बड़ी तादात में भक्तजनों की भीड़ तेजाजी के थान पर देखने को मिल रही हैं। तेजा मेले के तहत ही तेजा दशमी पर शहर व आस पास के क्षेत्रों से हजारों लोग मन में तेजाजी की श्रद्धा के साथ यहां पहुंचे और गुलगुले-पुवे व नारियल मिश्री का भोग तेजाजी को लगाया।
वीर तेजाजी का मेला अंग्रेजों के राज से ही केकड़ी शहर में परंपरागत रूप से आयोजित किया जाता रहा हैं। गौवंश की रक्षा करने वाले लोक देवता तेजाजी की याद में भरने वाला यह मेला शहर में 1870 से नगर पालिका द्वारा आयोजित किया जाता हैं तथा 1951 से इसको तेजा व पशु मेले के नाम से जाना जाने लगा। नगर पालिका द्वारा आयोजित इस मेले में प्रतिवर्ष कई पशुओं की खरीद फरोख्त होती हैं जिससे नगरपालिका को भी आय होती हैं। साथ ही नगरपालिका द्वारा मेले के दौरान पशुपालकों तथा शहरवासियों के मनोरंजन के लिये अनेकों सांस्कृतिक समारोह भी आयोजित किये जाते हैं परन्तु अब लोक परंपराओं पर महंगाई की मार देखने तो मिल रही हैं जहां पूर्व में इस पशु मेले में बड़ी संख्या में पशुओं की खरीद फरोक्त होती थी वहीं इस वर्ष तो नाम मात्र के पशु इस मेले में लाये गये हैं।
इसके साथ ही नगरपालिका पालिका प्रशासन द्वारा प्रतिवर्ष मेले को लेकर आयोजित किये जाने वाले सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भी राजनीति का साया पूर्ण रूप से हावी रहा हैं यही कारण हैं कि इन कार्यक्रमों को भाजपा व कांग्रेस द्वारा आपस में बांट लिया गया हैं जिससे जो कार्यक्रम कांग्रेस का होगा उसमें भाजपा वाले नहीं जायेगें और जो भाजपा का होगा उसमें कोई कांग्रेस का नहीं जायेगा। दरअसल नगरपालिका केकड़ी के राजनैतिक समीकरण ही कुछ ऐसे बन गये हैं कि अब लोक परंपराओ पर राजनीति हावी हो चुकी हैं। यहां नगरपालिका अध्यक्ष तो भाजपा का हैं मगर पार्षदगण कांग्रेस के अधिक हैं जिसके चलते ही हर कार्यक्रम में इनके बीच खींचतान चलती रहती हैं। इस बार भी जहां छापा व कवि सम्मेलन कार्यक्रम कांग्रेस के खाते में था तो वहीं सांस्कृतिक संध्या,रंगरंग कार्यक्रम व पगड़ी बंधन दस्तुर भाजपा के पाले में रहा।
बहरहाल यदि हम बात करें तेजा मेले के इतिहास की तो प्रचलित दंत कथा के अनुसार सुदी दशमी पर आयोजित तेजा मेला वीर तेजाजी की याद में मनाया जाता हैं,माना जाता हैं कि तेजा दशमी के दिन ही लोक देवता तेजाजी गौवंशों की रक्षा करते हुए अपने वचनों को निभाने के लिये एक सर्प नाग के डसने से शहीद हुए थे तभी से उन्हे लोक देवता के रूप में जाना जाता हैं। विशेष रूप से पशुपालक तेजाजी को अपना आराध्य देव मानते हैं।
दंत कथा के अनुसार नागौर जिले के ग्राम खरनालिया में 23 जनवरी 1074 विक्रम संवत 1130 में धोल्या जाट परिवार में जन्मे वीर तेजाजी का विवाह अजमेर जिले के पनेर गांव में हुआ था। एक दिन वीर तेजाजी घोड़े पर सवार होकर अपनी पत्नि को लिवाने ससुराल गये हुए थे उसी रात में कुछ चोरों ने गांव की कुछ गांयों व गौवंशों को चुरा लिया तथा जंगलों में ले गये। ग्रामीण एकत्रित होकर तेजाजी के पास पहुंचे तथा गायों व गोवशों की रक्षा करने की बात कही जिस पर तेजाजी तुरंत घोड़ी पर सवार होकर जंगल की ओर निकल पड़े। रास्ते में उन्हे एक सांप आग से घिरा हुआ दिखाई दिया जिसे उन्होने आग से बाहर निकाल लिया और उसे बचा लिया। सांप इससे क्रोधित हो गया और तेजाजी से बोला कि अगर में इस आग में जल कर भस्म हो जाता तो मुझे मुक्ति मिल जाती परन्तु तुमने मुझे बचा लिया अब मैं तुम्हे डंस कर की अपने क्रोध को शांत करूंगा। इस पर तेजाजी ने गांव की गायों व गौवंशों की चोरी हो जाने की पूरी बात सांप को बताई तथा गौवंश को ग्रामीणों के हवाले करने तक की मोहलत मांगी इस पर सांप ने उन्हे मोहलत दे दी। तेजाजी ने गौवंश को चोरों से छुड़ा कर गांव वालों के हवाले कर दिया। वापस गांव पहुंचने पर उनकी साली लाछा गुजरी ने उन्हे बताया कि एक बछड़ा जंगल में ही रह गया हैं जिस पर तेजाजी पुन: जंगल में गये और चोरो से मुकाबला कर उस बछड़े को भी छुडा लिया। इस दौरान तेजाजी गंभीर रूप से घायल हो गये मगर सांप को दिये वचन के मुताबिक वे गौवंशों को गांव में छोड़ कर पुन: सांप के पास पहुंच गये और कहा कि अब तुम मुझे डंस कर अपना क्रोध शांत कर लो। इस पर सांप ने कहा कि तुम्हारे शरीर का वह हिस्सा बताओ जो जख्मी ना हुआ हो मैं वहीं पर डंसुगा इस पर तेजाजी ने अपनी जीभ बाहर निकाली ओर सांप ने उन्हे वहीं डंस लिया। सांप ने तेजाजी के लोक उपकार व वचन बंधता को देखते हुए उन्हे प्रसन्न होकर वरदान दिया कि आज से तुम्हे सभी लोग लोक देवता तेजाजी के रूप में जानेगें तथा पूजेगें तभी से तेजा दशमी पर वीर तेजा जी की याद में अनेकों स्थानों पर मेले भरते आ रहे हैं।
तेजा मेले के अवसर पर क्षेत्र के लगभग सभी गांवों से अलगोजों की धूनों के साथ नाचते गाते लोग बिदोंरियों के रूप में तेजाजी के थान पर पहुंचते हैं। ऐसे में पूरा वातावरण एक अलग ही अहसास दिलाता हैं तथा साथ ही लोगों में वीर तेजाजी के प्रति आस्था व विश्वास को भी महसूस कराता हैं।

पीयूष राठी
पीयूष राठी

राजस्थान की संस्कृति की छटा यहां साफ देखने को मिल रही हैं जहां इस मेले में ग्रामीण परिवेष के लोग अधिक मिलते हैं तो वहीं शहरी लोग ना के बराबर दिखाई देते हैं। इससे एक बात तो साफ हैं कि गांवों में राजस्थान की धरा से जुड़ा हर एक पहलु आज भी मौजूद हैं तो वहीं शहरी माहौल में वह पूर्ण रूप से दम तोड़ चुका हैं।

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