चाय बेचनेवाला प्रधानमंत्री क्यों नहीं हो सकता?

n modi 1बीजेपी के बीच मोदी के उभार के साथ ही उनका एक परिचय उनका चायवाला होना भी है। अपनी रैलियों में मोदी खुद भी अपने अतीत को याद करते हुए अक्सर रेलगाड़ी के डिब्बे में चाय बेचनेवाले लड़के का जिक्र करते हैं और उस पार्टी की दुहाई देते हैं जिसने उन्हें इतना बड़ा मौका दिया है कि वह देश में प्रधानमंत्री पद के दावेदार बन गये हैं। यह उनकी पार्टी का आंतरिक मामला है और अब तक मोदी के चाय ब्वाय होने पर किसी और दल के किसी भी नेता ने कोई सवाल नहीं उठाया है। लोकतंत्र है। यहां कोई भी नागरिक देश के शीर्ष पद पर दावा कर सकता है। शायद दूसरे राजनीतिक दलों ने इसे कोई मुद्दा नहीं माना है कि मोदी के चाय ब्वाय पर चर्चा करते लेकिन समाजवादी पार्टी के नरेश ने चाय ब्वाय का ऐसा जिक्र किया कि पार्टी ही बैकफुट पर आ गई।

नरेश अग्रवाल बिना पार्टी के कहे नियमित रूप से समाजवादी पार्टी के नेता के बतौर बयान जारी करते रहते हैं। अक्सर वे अपने बयानों को लेकर विवाद में भी फंसते हैं। लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वह नेता ही क्या जो विवाद में न फंसे। नेता के बयान पर विवाद हो जाए तो इसे उस नेता के बयान की सफलता माना जाता है। और अगर नरेश के बयान पर विवाद हो तो उन्हें राजनीतिक फायदा तो पहुंचता ही है। लेकिन इस बार फायदा जरूरत से ज्यादा मिल रहा है। कारण?

कारण यह कि उन्होंने नरेन्द्र मोदी को निशाना बनाया है। और न सिर्फ भारतीय जनता पार्टी बल्कि खुद नरेन्द्र मोदी ने भी नरेश अग्रवाल का जवाब दिया है। दुर्ग की अपनी सभा में नरेन्द्र मोदी ने कहा कि सवाल मोदी का नहीं बल्कि सवाल अमीर और गरीब का है। अमीरी में पैदा हुए लोग इसी तरह से सोचते हैं। मोदी यह जवाब उन नरेश अग्रवाल को दे रहे थे जो वैसे तो खुद भी बहुत अमीर नहीं हैं लेकिन उनकी पार्टी भी घोषित तौर पर गरीब और गरीबी की ही राजनीति करती है। जाहिर है, नरेश अग्रवाल ने नरेन्द्र मोदी के चायवाले को प्रधानमंत्री न बन पाने का बयान देकर अपनी पार्टी को कम भाजपा और नरेन्द्र मोदी को ज्यादा फायदा पहुंचा दिया है।

समाजवादी पार्टी सूत्रों का कहना है कि नरेश के इस बयान से पार्टी एक बार फिर बैकफुट पर है क्योंकि यह सपा की राजनीतिक विचारधारा के खिलाफ दिया गया बयान है। वैसे बतानेवाले यह भी बता रहे हैं कि भाजपा के भीतर अपने पुख्ता संबंधों के कारण नरेश ने यह बयान दिया है ताकि मोदी को माइलेज मिल सके।

फिलहाल, समाजवादी पार्टी चुप है। नरेश अग्रवाल के बयान का समर्थन करें तो या फिर खारिज करें तो दोनों ही दशा में पार्टी की वैचारिक दुर्दशा ही होगी। http://visfot.com

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