ब्राह्मण नेताओ का अपमान और मज़लूम मुसलमानो की जान बनेगी मोदी की हार का कारण

राजतन्त्र में सिर काटने से योद्धाओं को विजयश्री प्राप्त हुआ करती थी और लोकतंत्र के सिर गिनाने से विजय प्राप्त होती है बनारस में 2.5 लाख मुसलमान,2.5 लाख ब्राह्मण,और 2.5 लाख सेक्युलर समाज बहुत काफी है मोदी को बनारस से वापस लौटाने के लिए

narendra modiवर्तमान भाजपा के स्थापित ब्रहामण नेताओं के अपमान और त्रिसकार की यह दास्तान अटल बिहारी बाजपयी से शुरू हो कर छत्तीसगढ़ की वरिष्ठ भाजपा नेत्री और अटल जी की भतीजी करुणा शुक्ला के अपमान के पश्चात बिहार के सम्मानित ब्राह्मण नेता लाल मुनी चौबे की नज़र अंदाज़ी से गुज़रती हुई जब उत्तरप्रदेश पहुँचती है तो यहाँ भी वही सिलसिला जारी रहता है जो बनारस में मुरली मनोहर जोशी और लखनऊ में लालजी टंडन के अपमान के बाद इलाहबाद के सर्वमान्य तथा भाजपा ही नहीं बल्की ब्राह्मण समाज के मज़बूत नेता केसरी नाथ त्रिपाठी के टिकट को काटने तक पहुँच जाता है ! न सिर्फ इलाहबाद बल्की जौनपुर में भी जिस प्रकार पूर्व विदेश राज्य मन्त्री स्वामी चिन्मयानंद महाराज को नज़र अंदाज़ किया जा रहा है वोह उनके बयानात से साफ़ ज़ाहिर हो रहा है

karuna shukla laal muni chobey lalji tandan and murlee manohar joshee s copy vajpayeeआज जब संपूर्ण भारत लोकतंत्र के सबसे बड़े महाकुंभ में हिस्सा लेने के लिए कमर कस चुकाहै तब एक तरफ तो मतदाता के ज़हन में एक ऐसे युवराज की छबी है जो संसद से सड़क तक स्वयं को सशक्त रूप से पेश नहीं कर सका है ! और यह युवराज जिस कन्फ्यूज़ राजनीत का शिकार है वोह भी जगज़ाहिर है लेकिन इस युवराज की तमाम नाकामियों और कमियों पर सबसे बड़ा पर्दा किसी ने डाला है तो उस व्यक्ती का नाम नरेंद्र मोदी है ! चूंकी जहाँ आज यू.पी.ए. 2 की खामियों पर चुनाव होना था वहाँ मोदी की 2002 वाली छबी इन सब बातों को गौण कर देती है ! भला यह दोनों महाशय प्रधानमंत्री की कुर्सी पाने के लिए बेताब हो लेकिन 2002 के गुजरात दंगों का काला साया नरेंद्र मोदी के पीछे राहू काल की तरह लगा हुआ है और यह काला साया यू.पी.ए. 1 और 2 की तमाम असफलताओं पर पर्दा भी डालता दिखाई दे रहा है !
मोदी अपनी रैलियों में भले ही चीख-चीख कर खुद को धर्म निरपेक्ष और मुस्लिम हितैषी होने की बात कर रहे हों ,लेकिन उनके यह स्वर देश के 25 करोड़ मुसलमानों के अलावा 80 प्रतीशत धर्मनिरपेक्ष हिन्दुओं के कान तक तो पहुँचते हैं लेकिन दिल-दिमाग पर कोई असर नहीं डाल पा रहे हैं !
यह एक कड़वी सच्चाई है कि मुसलमान अकेला अपने दम पर प्रधानमंत्री की कुर्सी पर न तो किसी को बैठाल सकता है और न ही किसी को इस कुर्सी पर बैठने से रोक सकता है ! हाँ वोह धर्मनिरपेक्ष हिन्दू समाज जो गिनती के लिहाज़ से इन मुसलमानों की तादाद से दो गुना है वोह और मुसलमान मिलकर भारत के प्रधानमंत्री पद पर किसे ब्राजमान करना है यह ज़रूर तय करते चले आ रहे हैं !
जब देश में आस्था के नाम पर लालकृष्ण आडवाणी का रथ भारत माँ के शरीर को रक्त रंजित करता सरपट दौड़ा था तब वोटों का जो धुर्वीकरण हुआ था , वो शायद अब भारतीय राजनीती में कभी दिखाई नहीं देगा ! यह अलग बात है कि आडवाणी के इस रथ को गुज़रे हुए 2 दशक से ज़यादा का समय बीत चूका है लेकिन आज भी मुसलमान और ख़ास तौर पर धर्मनिरपेक्ष हिन्दू आडवाणी को जिन्नाह की कब्र पर नतमस्तक होने के बावजूद धर्मनिरपेक्ष नहीं मानता है ! आडवाणी की रथ यात्रा के पश्चात सम्पूर्ण भारत में भाजपा की एक लहर दिखाई दे रही थी तब भी भाजपा इतनी सीटें नहीं जीत पायी थी कि वोह पूर्ण बहुमत हासिल कर लेती उस धुर्वीकरण के माहौल में भी आडवाणी कि जगह अटल बिहारी बाजपयी को ही देश ने स्वीकारा था !
आज नरेंद्र मोदी जिस प्रकार भारत वर्ष में घूम-घूम कर अपने पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं ,उसमे भी वोह एक ऐसा विघटनकारी खेल, खेल रहे हैं जो उनके और भाजपा दोनों के लिए बहुत खतरनाक साबित होने वाला है यानी मोदी को असली डर मुसलमानों से नहीं है ,चूंकी मोदी जानते हैं कि वोह स्वयं को कितना भी बड़ा मुस्लिम हितैषी बताने का प्रयास कर ले तब भी मुसलमान उनके साथ आने वाला नहीं है , मोदी को सबसे ज़यादा डर है उन धर्मनिरपेक्ष हिन्दूओं से है जिन्होंने आज़ादी के 67 साल गुज़र जाने के बाद भी आज तक किसी कट्टर सोच के व्यक्ती को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठने दिया ! इसलिए मोदी के निशाने पर सबसे ज़यादा वोह नेता है जिनकी पहचान भारतीय राजनीत में एक समाजवादी,धर्मनिरपेक्ष और राष्ट्रवादी नेता के रूप में है !
इसी तरह के धर्मनिरपेक्ष हिन्दू समाज में फूट डालो शासन करो की नीती के तहत संभवतः मोदी ने वोह खेल शुरू कर दिया है जो न सिर्फ मोदी बल्की भाजपा के अस्तित्व के लिए ही खतरा बन जायेगा यानी की मोदी ने पहले तो धर्म की राजनीत के आधार पर हिन्दू-मुसलमानों को बाँट कर गुजरात जीता अब जात-पात के नाम पर हिन्दूओं को बांट कर भारत विजय करने का सपना संजो रहे है !
अगर 2002 में गुजरात के मुसलमानों पर सामाजिक ,आर्थिक ,शारीरिक और मानसिक अत्याचार हुआ था तो 2014 में प्रधानमंत्री की कुर्सी की लालसा में सम्पूर्ण भारत के ब्राह्मण समाज के नेताओं के साथ मोदी मय हो चुकी भाजपा में जो राजनैतिक अत्याचार हो रहा है वो जग जाहिर है !
यानी कल तक जिस भाजपा का एक मात्र चेहरा वो अटल बिहारी बाजपयी हुआ करते थे जिन्होंने भाजपा को 2 से 200 तक पहुंचाने के लिए अपनी जवानी ही नहीं बल्की पूरी उम्र आहूत कर दी हो , आज वोह इस दुनिया में तो मौजूद हैं परंतु उस भाजपा के चुनावी पोस्टर से निकाल दिए गए जिसे उन्होंने अपनी शिराओं में बहते हुए रक्त से सींच कर इस मुकाम तक पहुंचाया था !
आज एक छोटे से राज्य का भाजपाई मुख्यमंत्री भाजपा के पोस्टर से अटल बिहारी जी का फ़ोटो हटा कर खुद को स्थापित करने की बात सोच रहा है ! मोदी ने भाजपा के पोस्टर से अटल बिहारी का फ़ोटो हटा कर एक तीर से दो निशाने साधे हैं यानी एक तरफ तो मोदी ने पार्टी नेताओं को यह बताने की कोशिश की है कि अब पार्टी में वरिष्ठ नेताओं का कोई मुकाम नहीं है और दूसरी तरफ जात-पात की राजनीत को बढ़ावा देते हुए यह भी सन्देश दे दिया कि अब भाजपा के भीतर कोई ब्राह्मण नेता ससम्मान नहीं रह सकता !
मोदी मय हो चुकी भाजपा के ब्राह्मण नेताओं पर मोदी के राजनैतिक अत्याचार की दास्तान अटल बिहारी बाजपयी के फ़ोटो को हटाने से शुरू होती है तो उसका दूसरा पड़ाव अटल बिहारी बाजपयी की भतीजी करुणा शुक्ला होती है और इन करुणा शुक्ला को उसी छत्तीसगढ़ भाजपा द्वारा अपमानित किया जाता है जिस छत्तीसगढ़ में मोदी ने सबसे पहले नकली लालक़िले से अपनी रैली को संबोधित किया था ! उन अटल जी की भतीजी को इस हद तक अपमानित किया जाता है कि वोह मजबूर हो कर भाजपा का दामन छोड़ कांग्रेस का हाथ पकड़ लेती है जिन अटल बिहारी जी के लिए यह नारा दिया जाता था कि “अटल बिहारी बोल रहा है , इन्द्रा शासन डोल रहा है ” !
जब हिन्दुस्तानी ब्राह्मण समाज और भाजपा के कर्णधार और स्वीकार्य नेता अटल बिहारी बाजपयी को और उनके परिवार के सदस्यों को मोदी की भाजपा द्वारा अपमानित किया गया तो इसके बाद एक बार फिर बिहार भाजपा के कद्दावर ब्राह्मण और वरिष्ठ भाजपा नेता तथा अटल बिहारी बाजपयी के करीबी कहे जाने वाले लालमुनि चौबे ने अपने साथ हो रह भेद-भाव के चलते यह कहते हुए अपनी 80 साल की उम्र में भाजपा से नाता तोड़ लिया कि “मैं बनारस जा कर मोदी को हराने के लिए जुट जाऊँगा और राजनाथ सिंह भाजपा के नहीं बल्की गुलामों के अध्यक्ष हैं” अटल बिहारी बाजपयी के अभिन्न साथियों में से एक लाल मुनी चौबे के इन शब्दों में वोह दर्द और आह्वान है जो ब्राह्मण समुदाय को बैचैन कर रहा है , भाजपा और ख़ास तौर पर मोदी की राजनैतिक हैसियत को कम करने के लिए !
मैं अपने आर्टिकल में बार-बार भाजपा को मोदी की भाजपा इसलिए लिख रहा हूँ चूंकि बीते दिनों 26 मार्च 2014 को भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने अपने ट्विटर पर एक पोस्टर ट्वीट किया जिस पर लिखा था “अब कि बार भाजपा सरकार ” यहाँ तक तो ठीक था लेकिन अभी इस ट्वीट को पोस्ट किये हुए एक घंटा भी नहीं हुआ था कि मोदी की भाजपा के अध्यक्ष ने इस ट्वीट को हटा कर जो नया पोस्टर पोस्ट किया उसमे अब भाजपा कि जगह मोदी थे यानी पार्टी अध्यक्ष का नारा था ” अब की बार मोदी सरकार ” भाजपा के राष्ट्रिय अध्यक्ष के इस कृत्य से साफ़ ज़ाहिर होता है कि वोह अब भाजपा के अध्यक्ष नहीं है बल्की मोदी की भाजपा के अध्यक्ष हैं !
खैर मैं अपनी बात वही से शुरू करता जिस तारतम्य में यह आर्टिकल मैंने लिखना शुरू किया था यानी मोदी की भाजपा में ब्राह्मण समाज के प्रभावशाली नेताओं का त्रिसकार यहीं तक सीमित नहीं रहता मोदी की ब्राह्मण नेताओं से नफरत का शिकार एक और कद्दावर तथा वरिष्ठ भाजपा नेता बनारस से वर्तमान सांसद मुरली मनोहर जोशी बनते हैं ! मुरली मनोहर जोशी भाजपा का ऐसा मज़बूत नाम है जिसने राममंदिर आंदोलन के ज़रिये भाजपा को पहली बार देश पर राज करने का रास्ता तैयार किया था , जो मुरली मनोहर जोशी कल तक भाजपा के टिकट बांटा और काटा करते थे आज उन्हें ही बनारस सीट से इस तरह बाहर निकाल कर फैंका गया है जैसे दूध से मख्खी को निकाल दिया जाता है ! इतना ही नही मोदी की भाजपा ने मुरली मनोहर जोशी के राजनैतिक कद को कम करने के लिए उस कानपुर से उन्हें टिकट दिया है जिस कानपुर के मोहल्लों के नाम तक मुरली मनोहर जोशी नहीं जानते हैं !
अगर मोदी ने स्वयं के लिए मुरली मनोहर जोशी की सेवाओं को ताक़ पर रख कर बनारस से उनका टिकट काटा है तो मोदी के प्रवक्ता के रूप में राजनैतिक हलकों में पहचाने-जाने वाले राजनाथ सिंह ने मोदी की ब्राह्मण विरोधी सोच को आगे बढ़ाते हुए ,मोदी के नक़श-ए-कदम पर चलते हुए लखनऊ लोकसभा सीट पर वही कहानी दोहरा दी जो बनारस लोकसभा सीट पर मोदी ने लिखी थी , यानी राजनाथ ने स्वयं के लिए लखनऊ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का ऐलान कर अटल बिहारी बाजपयी के राजनैतिक उत्तराधिकारी के रूप में इस सीट पर स्थापित एक ओर ब्राह्मण नेता लालजी टंडन का टिकट काट दिया !
वर्तमान भाजपा के स्थापित ब्रहामण नेताओं के अपमान और त्रिसकार की यह दास्तान अटल बिहारी बाजपयी से शुरू हो कर छत्तीसगढ़ की वरिष्ठ भाजपा नेत्री और अटल जी की भतीजी करुणा शुक्ला के अपमान के पश्चात बिहार के सम्मानित ब्राह्मण नेता लाल मुनी चौबे की नज़र अंदाज़ी से गुज़रती हुई जब उत्तरप्रदेश पहुँचती है तो यहाँ भी वही सिलसिला जारी रहता है जो बनारस में मुरली मनोहर जोशी और लखनऊ में लालजी टंडन के अपमान के बाद इलाहबाद के सर्वमान्य तथा भाजपा ही नहीं बल्की ब्राह्मण समाज के मज़बूत नेता केसरी नाथ त्रिपाठी के टिकट को काटने तक पहुँच जाता है ! न सिर्फ इलाहबाद बल्की जौनपुर में भी जिस प्रकार पूर्व विदेश राज्य मन्त्री स्वामी चिन्मयानंद महाराज को नज़र अंदाज़ किया जा रहा है वोह उनके बयानात से साफ़ ज़ाहिर हो रहा है !
मोदी की भाजपा ने उत्तरप्रदेश ,बिहार और छत्तीसगढ़ के स्थापित ब्राह्मण भाजपाई नेताओं को अपमानित करने का जो सिलसिला जारी किया है वोह अभी थमा नहीं है चूंकी अब उन्होंने गुजरात भाजपा ब्राह्मण नेताओं को ही अपमानित करना शुरू कर दिया है जिसका उदहारण हरेन्द्र पाठक है , जो वर्तमान सांसद भी हैं उन्हें टिकट देने के बाद बीच चुनाव में मोदी की भाजपा ने उनका टिकट काट दिया है !
इस पूरी दास्तान को लिखने के पश्चात बड़ा सवाल यह पैदा होता है कि मोदी की भाजपा आखिर ब्राह्मणों को अपमानित कर खुश किसे करना चाहती है तो उसका जवाब खुद नरेंद्र मोदी 27 मार्च 2014 की बिहार में आयोजित रैली में यह कहकर कर देते हैं कि “जिस तरह कांग्रेस ने बड़ोदरा से नरेंद्र रावत का टिकट काटा है वोह एक दलित का अपमान है मैं इस दलित के सम्मान की लड़ाई लडूंगा “! वाह ! मोदी जी अपनी पार्टी के तमाम ब्राह्मण नेताओं के टिकट जब भाजपा ने काटे तब क्या आपको ब्राह्मणों का अपमान दिखाई नहीं दिया और जब कोंग्रेस ने एक दलित का टिकट काटा तो उसके सम्मान की लड़ाई तक लड़ने को आप तैयार है यह कैसी राजनीति है ? इतना ही नहीं जिस समय भाजपा के तमाम स्थापित ब्राह्मण नेताओं को चुन-चुन के अपमानित किया जा रहा था ठीक उसी समय रामविलास पासवान ने मोदी का दामन थामा तब तमाम धर्मनिरपेक्ष राजनैतिक दलों और लोगों को समझ नहीं आया कि आखिर अचानक पासवान को यह क्या हो गया है लेकिन इसके तुरंत बाद जब दलित लेखक एवं चिंतक तथा पूर्व आई.आर.एस. उदित राज ने जब मोदी की जय-जयकार का नारा लगाया तब पड़े लिखे और राजनीत पर नज़र रखने वाले समाज में यह सुबगुबाहट शुरू हो गयी कि जो नारा मायवती “तिलक,तराज़ू और तलवार ,इनमें @#$@#$ चार” के रूप में लगा रही थी उसी नारे पर अमल करते हुए मोदी देश में ब्राह्मण समाज के नेताओं को नज़र अंदाज़ करने में जुट गए है !
जात-पात की इस राजनीति में मोदी यह भूल गये कि ब्राह्मण समाज के मज़बूत और भाजपा के ही कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी को अपमानित कर वह उस बनारस को कैसे जीत सकते हैं जहाँ 2.5 लाख ब्राह्मण और 2.5 लाख मुस्लिम मतदाता है और जिस उत्तरप्रदेश को वोह उम्मीद की आख़री किरण मान रहे है उस उत्तरप्रदेश में 22% मुस्लिम और 18% ब्राह्मण वोट है जो शायद अपने-अपने समाज के साथ हुए मोदी के अत्याचार को न सिर्फ भूलेंगे बल्की मतदान के ज़रिये जवाब भी देंगे !और मोदी जिस दलित वोट को पाने के लिए अपनी ही पार्टी के ब्राह्मण नेताओं को निरंतर अपमानित कर रहे हैं वोह वोट मायावती को छोड़ कर इतनी आसानी से उनके साथ आ भी नहीं सकता ! अगर मोदी इसी रणनीति पर काम करते रहे हो तो यह शैर उनके लिए सच साबित हो जायेगा कि –
“न ही खुदा मिला , न ही विसाल-ए-सनम ”
“न इधर के रहे , न उधर के रहे ”
मो.आमिर अंसारी कि कलम से

3 thoughts on “ब्राह्मण नेताओ का अपमान और मज़लूम मुसलमानो की जान बनेगी मोदी की हार का कारण”

  1. आखरी दम तक जोर लगाये ……फिर भी रोक न पाये……..जय जय हिंदुस्तान………… जय जय मोदी……….

  2. जातिवाद और सम्प्रदाय का यह ज़हर भारतीय राजनिति के पतन का मुख्य कारण बनेगा , जिस पर हर चुनाव में ज़ोर बढ़ता जा रहा है यह चिंतनीय होना चाहिए लेकिन हम हमारे नेता इस पर गर्व करते है जो शर्म नाक है

  3. Yes! It is sad but it is true. What Modi ji is doing by and large is a politics for himself only and that too without wisdom.
    He reflects arrogance only and that too dividing the society unwittingly…

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