‘अच्छे दिनों’ की आस बाकी है

babu lal naga 1-बाबूलाल नागा- गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण दूर करने, आर्थिक विकास व समृद्धि, महिला सुरक्षा आदि नारों के दम पर आने वाली मोदी सरकार इन मुद्दों को ताखे पर रखकर काम करने लगी है। भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के माध्यम से गरीब किसानों की जमीन औने-पौने भाव में कॉरपोरेट को देने पर आतुर है। मजदूरों के अहितकर कानूनों के जरिए उन्हें और हाशिए पर धकेलना चाहती है। भारतीय खाद्य निगम एवं अन्य संस्थानों में ठेकेदारी प्रथा एवं निजीकरण के माध्यम से कर्मचारियों की छंटनी तथा संस्थानों को बंद करना चाहती है। पर्यावरण संरक्षण और जलवायु परिवर्तन से संबंधित नीतियों में नकारात्मक बदलाव कर रही है।
लंबे संघर्षों के कारण, मनरेगा कानून, वनाधिकार कानून, भूमि अधिग्रहण कानून, खाद्य सुरक्षा आदि बना। खाद्य सुरक्षा कानून के तहत पूरे देश में 67 प्रतिशत लोगों को कम दाम पर अनाज सुनिश्चित किया गया तथा आंगनबाड़ी, मातृत्व लाभ, मध्याह्न भोजन को कानून अधिकार मिला। बिहार जैसे गरीब राज्य में इस कानून से 86 प्रतिशत लोगों को सस्ते दर पर अनाज मिल रहा है। बिहार सरकार ने अनुसूचित जाति और जनजाति के पूरी आबादी को इस कानून के अंतर्गत लाया है। सबसे गरीब लोगों को खाद्य सुरक्षा कानून मंे अंत्योदय अन्न योजना के माध्यम से अनाज दिया जाता है। केंद्र सरकार की पीडीएस कंट्रोल ऑर्डर द्वारा अंत्योदय अन्न योजना को बंद करने का निर्णय लिया जा चुका है। इसका मतलब यह है कि सरकार देश के सबसे गरीब लोगों से नफरत करती है। इसके अलावा केंद्र सरकार द्वारा गठित शांता कुमार कमेटी के द्वारा राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून की पहुंच 67 प्रतिशत जनसंख्या से घटाकर 40 प्रतिशत जनसंख्या तक सीमित करने का खाद्यान्न मूल्य में वृद्धि करने और पिछले दरवाजे से राशन में कैश टंªासफर लाने की बात हो रही है। केरोसिन और रसोई गैस सब्सिडी भी बैंक अकाउंट के जरिए देने की बात की जा रही है, ताकि जनता परेशान होकर केरोसिन और रसोई गैस दोनों खुला बाजार से ले। वर्तमान बजट में खाद्य सुरक्षा कानून के अंतर्गत मध्याह्न भोजन योजना से 33 प्रतिशत, आंगनबाड़ी योजना से 53 प्रतिशत की कटौती तथा मातृत्व लाभ योजना के लिए कोई प्रावधान नहीं किया गया है। यह खाद्य सुरक्षा कानून 2013 तक माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों की अवहेलना है। शिक्षा (22 प्रतिशत), स्वास्थ्य (17 प्रतिशत), स्वच्छता (18 प्रतिशत), पेयजल (100 प्रतिशत) आदि बुनियादी अधिकारों के इस वर्ष को केंद्रीय बजट में कटौती की गई है। गरीब के योजनाओं में कपंनियों को घुसाकर उन्हें मुनाफा दिया जा रहा है।
भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र 2014 तथा खाद्य सुरक्षा बिल पर संसद में बहस के दौरान कहा कि ‘‘देश की सुरक्षा के लिए सार्वभौमिक खाद्य सुरक्षा अनिवार्य है।’’ मोदी ने कहा कि यूपीए सरकार द्वारा खाद्य सुरक्षा कानून के तहत निर्धारित 67 प्रतिशत जनसंख्या बहुत कम है परंतु सत्ता मंे आने के बाद खाद्य सुरक्षा को सार्वभौम करने के बजाए और सीमित करने जा रही है। मनरेगा में श्रम-सामग्री अनुपात को 60ः40 की जगह 51ः 49 करने की बात की जा रही है। मनरेगा के तहत वित्तीय वर्ष 2015-16 में 34699 करोड़ राशि का प्रावधान किया गया है जो पिछले वर्ष से 699 करोड़ अधिक है परंतु विशेषज्ञों का मानना है कि पिछले वर्ष की बकाया तथा मुद्रास्फिति के हिसाब से इस वर्ष 40-45 हजार करोड़ रुपए की राशि होनी चाहिए। मनरेगा की उपलब्धियों पर गौर फरमाते हैं। वर्ष 2008-09 से 2013 तक ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुसार लगभग साढ़े चार करोड़ से लेकर साढ़े पांच करोड़ तक गरीब ग्रामीण परिवारों को रोजगार मिला। यानी देश की कुल ग्रामीण परिवारों का लगभग 30 प्रतिशत। रोजगार पाने वालों में लगभग आधी संख्या महिलाओं की थी और कुल संख्या का पांचवा हिस्सा अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों का था। लगभग 2.5 अरब मानव-दिवस का मौसमी रोजगार प्रति वर्ष सृजित कर ग्रामीण इलाकों मेें छिपी हुई बेरोजगारी या आंशिक- रोजगार (6.66 अरब मानव-दिवस) की समस्या लगभग 41 प्रतिशत हल हुई। ग्रामीण महिलाओं के हाथों में पैसा आने से उनके कुपोषण की समस्या पर थोड़ा असर पड़ा। राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वे एनएनएस के 70वें राउंड के अनुसारजुलाई 2012 से जून 2013 देश में किसानों की औसतन मासिक आय 6426/- रुपए हैं लेकिन औसतन मासिक उपभोक्ता व्यय 6223/-रुपए हैं। इस प्रकार उनका पूरा आय घरेलू मदों पर खर्च हो जाता है। वे खेती व अन्य आपात कार्यों के लिए कर्ज लेने को मजबूर हैं। इसी रिपोर्ट के अनुसार देश के 52 प्रतिशत किसान कर्ज में जी रहे हैं। इन परिवारों पर औसतन 47000/- रुपए प्रति परिवार कर्ज है। 25.8 प्रतिशत परिवार स्थानीय कर्जदाताओं से कर्ज लेते हैं। बिजनेस स्टैंर्ड 23 दिसंबर 2014 के एक रिपोर्ट के अनुसार इन रिपोर्ट के अनुसार इन कर्ज पर ये लगभग 20 प्रतिशत की ब्याज दर चुकाते हैं। इन्हें संस्थानिक कर्ज नहीं मिल पाता है। कर्ज के इस दबाव में पिछले एक दशक में लगभग 3 लाख से अधिक छोटे और मंझोले किसान, छोटे व्यवसायी आदि कर्ज के वसूली के दबाव में आत्महत्या की है। केंद्र सरकार ने अदानी समूह को कोल माइंस खरीदने के लिए 6 लाख करोड़ रुपए भारतीय स्टेट बैंक से दिया है। वर्तमान आर्थिक नीति के कारण देश में गरीबों की संख्या में वृद्धि हो रही है। दूसरी तरफ खरबपतियों की संख्या और उनकी संपत्ति मेें भी लगातार वृद्धि हो रही है। विश्व बैंक की रिपोर्ट केे अनुसार भारतीय खरबपतियों के पास संपत्ति देश की कुल जीडीपी का 12 प्रतिशत है। यह राशि देश के शिक्षा, स्वास्थ्य व अन्य कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च होने वाली राशि का दो गुणे से ज्यादा है।
भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्र में खाद्य सुरक्षा कानून को सर्वव्यापी और व्यापक बनाने का वादा किया था। मुफ्त शिक्षा, स्वास्थ्य सबके लिए रोजगार और कृषि में विकास की बात की थी। सत्ता मेें आते ही लगातार जनविरोधी नीतियां, बिना संसद में बहस कराए अध्यादेश के माध्यम से ले रही है। डीजल का बाजार के हवाले करने के बाद अब किसानों की मिलने वाली सब्सिडी को हटा कर खाद बीज तथा अन्य जरूरतों को खुला बाजार और कंपनी के हवाले करने की बात हो रही है। सरकार का ध्यान कृषि पर नहीं होने के कारण ग्रोथ गिर रहा है। पिछले वर्ष कृषि ग्रोथ में 1 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। बहरहाल, इन परिस्थितियों में केंद्र सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ देश की जनता को अपनी आवाज बुलंद करने की जरूरत है। (लेखक विविधा फीचर्स के संपादक हैं)
बाबूलाल नागा
335, महावीर नगर, प्प्, महारानी फार्म,
दुर्गापुरा, जयपुर-302018
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मोबाइल-9829165513

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