जन जन का तंत्र और जंतरमंतर

sohanpal singh
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दिल्ली जो देश की राजधानी है उसमे एक स्थान है जंतर मंतर ! जिसको बनवाया था राजस्थान के राजा सवाई मान सिंह ने , जोतिष गणना को सरल तरीके से समझने के लिए । लेकिन पिछलर 30 35 वर्षो से यह जंतर मंतर अपने मूल रूप से हटकर भारत में राजनितिक विरोध और धरने प्रदर्शन का दुनिया का सबसे बड़ा केंद्र बन गया है । हुआ यूँ की एक धरने प्रदर्शन को हम भी देख रहे थे एक व्यक्ति बीच केंद्र में था उसके चारो ओर बहुत से लोग घेरा बना कर खड़े थे । एक पंडित जी , एक मौलाना , एक पादरी, एक नेता , एक स्वेताम्बर जैन साधू एक दिगम्बर साधू एक पगड़धारी सरदार जी और बहुत सारी जनता गांव ग्राम के लोग ! जो व्यक्ति बिच में खड़ा था उसका हुलिया कुछ अजीब सा था ? लंबा तगड़ा, गोल चेहरा, काली दाढ़ी सफ़ेद मूंछ , आँखों पर चस्मा , डिजायनर हाफ बाजू का कुरता नीचे हाफ पेंट (निक्कर) काले जूते पहने हुए था ? हाथ में एक भगवा झंडा । परंतु तभी भीड़ में शामिल एक व्यक्ति ने उसका झंडा छीन लिया और एक स्थान पर सम्मान पूर्वक रख दिया । हम भी एक कोने में खड़े तमाशा देख रहे थे । भीड़ जंतर मंतर पर हो और नारा न लगे ये तो हो नहीं सकता , नारे भी लग रहे थे । ” हम u p वाले हैं । पिछवाड़े लात मारे हैं ” ऐसा कह कर जो व्यक्ति बीच में खड़ा था उसके पिछवाड़े पर एक व्यक्ति लात मर देता था । वो बेचारा जिस और भी पिछवाड़ा करता उधर से ही एक लात पड़ती । यह सिलसिला बहुत देर तक चलता रह ! एक नेता जी कह रहे थे , अबे ! हम यू पी वाले है , तुम यु पी पर अधिकार जमाना चाहते हो कहते हो कार्य नहीं किये तो हमें लात मार के बाहर कर देना ? पहले तुम ये बताओं देश का राज तुम्हारे हाथ में है दो सालों में तुमने क्या किया , ये लातों का स्वागत इस लिए की तुमने अब तक किया क्या है और सुनो कैराना से किनारा कर लो नहीं तो जमुना मैय्या में डुबो डुबो कर वो धोबी पछाड़ दांव मरेंगे की सारा हुलिया ही बदल जायेगा ? इसी बीच बेचारा व्यक्ति हमारे सामने आ गया , u p वाले तो हम भी हैं हमारा भी खून हिलोरे लेने लगा , हमने भी उसके पिछवाड़े पर एक लात जम कर मारी , इससे पहले की हम देखते उस बेचारे का हाल क्या है हम खुद ही चीखने लगे , हुआ यूँ की हम अपने पलंग पर पड़े पड़े चीख रहे थे हाय मर गया ! तभी पत्नी बोली आप अपना पैर बार बार पलंग के तकिये पर क्यों मर रहे थे ? अब हम क्या बताते की हम जंतर मंतर पर क्या कर रहे थे ?

एस पी सिंह, मेरठ ।

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