साथ लेना और साथ देना, सच या झूँठ

sohanpal singh
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हम यह कैसे मान ले कि हमारे प्रधान सेवक झूँठ भी बोलते है, वैसे ना मनाने का कोई कारण भी है तो नहीं है ? यानि हमे मानना ही पड़ेगा कि अपने सेवक जी झूँठ नहीं बोलते यह तथ्य भी सर्विदित है कि 125 करोड़ की देश की जनता के प्रधान को झूँठ बोलने की जरुरत क्या और क्यों है ? लेकिन हमारे मित्र मुंशी इतवारी लाल यह मानने को तैयार नहीं हैं उनका कहना की अपने प्रधानसेवक झूँठ भी बोलते है और जम कर बोलते है और ऐसा झूँठ बोलते है जिससे इतिहास भी शर्मिंदा हो जाये बल्कि इतिहास के घटनाओ को ही झूंठा साबित करने की कोसिस करने से भी नहीं चूकते ?

जब हमने अपने मित्र से यह पूंछा कि आखिर आपका दुःख क्या है तो मुंशी जी बिफर गए और उन्होंने क्या कहा आप भी सुनिए :

” अबे मैं मुंशी इतवारी लाल, ईश्वर को साक्षी मानकर ,अपने पूरे होश हवास में यह बयान करता हूँ की अपने देश का प्रधान सेवक, बहुत झूँठ बोलता है , और उन झूँठ बातो का संकलन किया जाय तो एक किताब भी बन सकती है , लेकिन ऐसा भी नहीं है की कोई सच या रचनात्मक काम नहीं करते, बहुत काम करते हैं घोषणाएं तो लगभग रोज ही करते है , जितनी घोषणाएं की है उनकी गिनती करना भी मुश्किल ही होगा ? इस लिए मैं तुम्हे एक रहस्य की बात बताता हूँ कि अपने सेवक का सबसे बड़ा झूँठ यह की वह कथित सांस्कृतिक संघटन जिसके वह स्वयं सेवक है, उसमे पूर्णकालिक कार्यकर्त्ता बनने के लिए यह झूँठ बोला था की वह अविवाहित है और उस तथ्य को 2014 तक छिपाये रखा, यहाँ तक कि चुनाव आयोग से भी झूँठ बोला ? लेकिन चूँकि 2014 के चुनाव कुछ अलग थे इस लिए यह तो स्वीकार किया की वह विवाहित है और उनकी पत्नी जीवित भी है जिसका नाम जसोदा बेन है । वह बेचारी आज भी सरकार से RTI के माध्यम से पूंछ रहीं हैं कि एक प्रधान मंत्री की पत्नी के क्या अधिकार है ? ” “अगर यह मान भी लिया जय की शादी विवाह नितांत व्यक्तिगत मामला है , लेकिन उच्च पद पर बैठे और देश का नेतृत्व करने वाले से यह अपेक्षा होती है की उसका चरित्र भी उज्ज्वल हो, क्योंकि न तो पत्नी को तलाक दिया है और न ही गुजारा भत्ता ही दिया है?यह मानवीय मूल्यों पर आघात किया है इस लिए जब ऐसा कोई व्यक्ति यह उपदेस देता है कि बेटी पढ़ाओ और बेटी बचाओ तो नाटकीय लगता है ? ”

मुंशी जी फिर बोले :

“बेटा यह तो हुई एक बात दूसरी बात है एक जाती विशेष से घृणा करना ,अभी कल की ही बात है कि राष्ट्रपति महोदय ने राष्ट्रपति भवन में एक इफ्तार पार्टी का आयोजन मुस्लिम लोगो के लिए किया था , जिसमे मंत्रियों सहित गणमान्य लोगो ने हिस्सा लिया लेकिन अपने प्रधान सेवक दिल्ली में होते हुए भी उसमे शामिल नहीं हुए । ”

हमने मुंशी जी को कहा ,

” अबे मुंशी इसमें क्या झूँठ और क्या सच सबको मालूम है कि अपने सेवक साहेब , मुस्लिमो की दी हुयी टोपी नहीं पहनते किसी को आज तक इफ्तार पार्टी नहीं दी तो इसमें गलत क्या है? और मुस्लिमो से दुराव जगजाहिर है ?
तुम्हारे गुर्दे इस बुढ़ापे में क्यों लाल हो रहे है जो जैसा करेगा उसे स्वयं ही भुगतना पड़ेगा?”

हमारी बात सुन कर मुंशी जी और ज्यादा ही भड़क गए और बोले :
“अबे तुझे कुछ मालूम , है कि नहीं , लोकतंत्र में सबसे ऊपर राष्ट्रपति होते है और अपनी मंत्री परिषद् के द्वारा देश का शासन चलते है । यह बात और है की राष्ट्रपति को केवल रबड़ स्टेम्प की खातिर इस्तेमाल किया जाता है ? लेकिन देश की परम्परा के अनुसार प्रधान मंत्री को राष्ट्रपति के बुलावे पर जाना चाहिए था। क्योंकि प्रधान मंत्री जी अपने आप को देश का सेवक बोलते है । और नारा देते है ‘सबका साथ सबका विकास’ , अबे ठाकुर तू ही बता ये कौन से देश का नियम है की वोट लेने के लिये नारा देते हो सबका साथ सबका विकास, जब तुम्हारे मन में ही नफरत है की किसी जाती विशेष के लिए कार्यक्रम में जाने से घृणा करना देश के प्रधान मंत्री को शोभा नहीं देता ? इस लिए मैं ताल थोक कर कहता हूँ जब प्रधान मंत्री कहते है सबका साथ सबका विकास तो झूँठ कहते हैं ,क्योंकि साथ लेना और साथ देना दोनों एक सामान ही हैं ,ऐसा नहीं हो सकता की साथ तो लेलो वोट के रूप में और उनके कार्यक्रमों का बहिस्कार करो मुस्लिम समझ कर ? ”

एस.पी.सिंह, मेरठ ।

1 thought on “साथ लेना और साथ देना, सच या झूँठ”

  1. इसके अलावा भी उन्होंने सन 2014 के चुनाव में स्यामजी करषन वर्मा को स्यामा प्रशाद मुखर्जी बताया था. यह भी कहा कि सिकन्दर बिहार तक पहुंच गया था. भगत सिंह अन्डमान जेल मे रहे थे. इससे तो सोनिया गांधी या राहुल ही ठीक कम से कम जो सामने लिखा है वह बोल तो देते है.

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