दलित उत्पीड़न

sohanpal singh
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अब तो प्रधान सेवक की बिना बात आलोचना करने वाले लोगों को हृदय से उनकी प्रशंसा करने में संकोच नहीं करना चाहिए जब व यह कहते हैं कि गौरक्षक कथित गौ सेवको में से अधिकांस गोरख धंधा करते है लेकिन हम यह समझने में असमर्थ हैं कि , विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रक्षकों /शासकों को क्यों लगता हैं कि देश में में दलितों का उत्पीड़न हो रहा है ? सामाजिक, आर्थिक, उत्पीड़न तो सदियों से हो रहा था और अब भी चालू है ? लेकिन लोक तंत्र में उत्पीड़न एक अलग बात है ? लेकिन जब शासक दल का मुखिया और केंद्र सरकार का सर्वे सर्वा प्रधान सेवक जुमले बाजी में यह कहे कि गौ हत्या के नाम पर दलितों को सरेआम पीटने वाले गौरक्षको. में 80 प्रतिशत बदमाश गुंडे और अपराधी लोगहैं ? माफिया के लोग हैं ?हो सकता है कि ऐसा कहने के लिए उनके पास कोई आधार भी होगा ही , क्योंकि उनके पास देश का सारा ख़ुफ़िया तंत्र रिपोर्ट करता है इस लिए अच्छा होता कि अगर वह प्रशासनिक तंत्र को मजबूत करते हुए प्रदेशों की सरकार को निर्देश जारी करते तो एक अच्छा कदम होता बजाय इसके कि एक राजनितिक लाभ उठाने की कोशिस में सार्वजनिक मंचो पर मन की बात को केवल बोलकर बताएं ? और उससे पहले तो वह अपने संघटन को निर्देशित करें और उन पर लगाम लगाएं ? इस लिए हमे तो ऐसा लगता है की उत्तर प्रदेश के चुनावों की आहट होते ही वांछित फल न मिलने की आशंका ने प्रधान सेवक को व्यथित कर दिया है । और दलितों का उत्पीड़न अब नजर आने लगा है , राजनीति भी क्या कुत्ती चीज है आदमी को क्या से क्या बना देती है काम करने के स्थान पर बयान बाजी ? तो इससे तो यही सिद्ध होता है की दलित उत्पीड़न के विरुद्ध ठोस कदम के स्थान पर घड़ियाली आंसू बहाना क्या राजनितिक लाभ दे सकेगा ? ..क्योंकि सबसे बड़ा सवाल ये है कि दलितों पर अत्याचार अगर हो रहा है तो सरकार उसे ख़त्म करने के क्या उपाय कर रही है या केवल भाषण बाजी होती रहेगी ?

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