कतार में जान गंवाने वालों को मुआवजे के साथ मिले सम्मान भी…

दीपक कुमार दासगुप्ता
दीपक कुमार दासगुप्ता
दीपक कुमार दासगुप्ता
सड़क हादसे , सर्पदंश या वज्रपात जैसी अनहोनी पर जान गंवाने वालों को सरकार मुआवजा देती है। जिससे उनके परिवारों को अपनों के खोने का गम कुछ कम होने के साथ ढांढस भी मिल सके। क्योंकि अनहोनी का शिकार होकर प्राण गंवाने वाला बेचारा व्यवस्था शिकार हो गया। उसे बचाया जा सकता था। यह शासन और समाज की जिम्मेदारी थी। लेकिन चूंकि मरने वाले को बचाया नहीं जा सका। इसलिए उसके आश्रितों को मुआवजे की प्रथा हर जागरूक और सभ्य समाज में मौजूद है। ट्रेन हादसों के शिकार यात्रियों को भी रेलवे प्रशासन और संबद्ध राज्यों की सरकारें कुछ न कुछ मुआवजा जरूर देती है। इस नजरिए से देखा जाए तो नोटबंदी के बाद बैंकों व एटीएम की कतार में खड़े रहने या इस कोशिश में जान गंवाने वाले हमारे देश के नागरिक भी इसी त्रासदी और विडंबना का शिकार हुए हैं। एक फैसला जिसके चलते न चाहते हुए भी उन्हें बैंकों या एटीएम की कतार में घंटों खड़े रहना पड़ा । जिसके चलते उनकी जान चली गई तो निश्चय ही इसके लिए जिम्मेदार सरकार है। मृतकों के परिजनों के प्रति अपनी जवाबदेही से सरकार बच नहीं सकती है। इसलिए नोटबंदी के चलते जान गंवाने वाले सौ से अधिक मृतकों के आश्रितों के लिए अविलंब मुआवजे की घोषणा के साथ उन्हें सम्मान भी दिया जाना चाहिए। क्योंकि मरने वालों ने सरकार के इस आदेश का पालन करते हुए अपनी जान गंवाई। उन्हें इसकी आवश्यकता नहीं थी। लेकिन सरकार ने ऐसा आदेश निकाला जिसके चलते उन्हें कतार में खड़े होना पड़ा या यूं कह सकते हैं कि इस कोशिश में कुछ ऐसा हुआ कि उनकी जान चली गई। तो निश्चय ही मृतक सरकारी नियम का पालन करते हुए संसार से कुच कर गए। इसकी जिम्मेदारी केंद्र सरकार को लेनी ही चाहिए। क्योंकि फैसला केंद्र ने लिया। इसलिए सरकार को अविलंब मृतकों के आश्रितों के लिए मुआवजे की घोषणा करनी चाहिए। यही नहीं उन्हें सम्मान भी दिया जाना चाहिए। नोटबंदी का फैसला सही है या गलत। इस बहस में हम नहीं पड़ना चाहते। लेकिन इतना तय है कि सरकार ने जो फैसला लिया उसका अनुपालन करने की कोशिश में समूचे देश में 121 लोगों की जानें चली गई। यदि सरकार इनके लिए मुआवजा और सम्मान की घोषणा करती है तो नागरिकों का मनोबल बढ़ेगा। साथ ही नोटबंदी के विरोध में दी जा रही दलीलें भी कुंद प़ड़ सकेगी। क्योंकि मुआवजे और सम्मान से मृतक के आश्रितों के जख्मों में कुछ मरहम तो लगेगा ही। उन्हें यह महसूस भी होगा कि दुख की इस घड़ी में सरकार ही नहीं समूचा देश उनके साथ है और जान गंवाने वाले ने देश के लिए कुछ करते हुए और सरकार के नियमों का पालन करते हुए अपने प्राण त्यागे। बेशक वे विडंबना का शिकार हुए। लेकिन इस दुख को सहने में वे अकेले नहीं है। देश के नागरिक भी उनके साथ है। इसके अभाव में नोटबंदी की त्रासदी का शिकार हुए मृतकों के आश्रितों के मन में ऐसा जख्म तैयार होगा जो शायद ही कभी भर सके। हम पीड़ितों को उनके हाल पर नहीं छोड़ सकते हैं। इसलिए केंद्र सरकार की ओर से यह घोषणा अविलंब की जानी चाहिए।

लेखक दीपक कुमार दासगुप्ता प्रख्यात ज्योतिषी व भविष्यवक्ता हैं।

मलिंचा, बालाजी मंदिर पल्ली, खड़गपुर (पश्चिम बंगाल) पिन 721301 जिला- पश्चिम मेदिनीपुर, मोबाइल- 09332024000

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