फ्री एक्सचेंज आफर की तरह हैं रक्तदान शिविर

दीपक कुमार दासगुप्ता
दीपक कुमार दासगुप्ता
यह प्रकृति की कैसी लीला है कि सफलता की बुलंद ऊंचाईयों पर कुलांचे भरने वाला विज्ञान आज भी मनुष्य के शरीर में प्रवाहित होने वाले रक्त का विकल्प नहीं ढूंढ पाया है। आपात स्थिति में मनुष्य के शरीर में आदमी का खून ही चढ़ाया जा सकता है। विज्ञान या प्रौद्योगिकी किसी भी रूप में इसका विकल्प उपलब्ध नहीं करा सकता। यही नहीं बीमार के शरीर में उसी समूह का रक्त चढ़ाया जा सकता है। यह रक्त किसी ऐसे अपरिचित का हो सकता है जिसे मरीज जानता भी नहीं। कोई जरूरी नहीं कि उसके लिए जान देने को तैयार रहने वाले परिजनों का खून भी उसके शरीर के अनुकूल साबित हो। अक्सर इसके विपरीत ही होता है। इस जरूरत को पूरा करने के लिए हर अस्पताल में रक्त बैंक होता है। लेकिन रक्त जमा करके रखने की एक सीमा व अवधि है। आपात स्थिति में मरीज के परिजनों व जानने वालों को भी अपना रक्त देना पड़ता है। थैलासीमिया व कुछ दूसरे गंभीर रोगों के मरीजों को निश्चित समय के भीतर बार – बार ताजा रक्त चढ़ाने की जरूरत होती है। रक्त की आवश्यकता का करीब आधा हिस्सा रक्तदान शिविरों से संग्रहीत खून से पूरा होता है। बेशक समय के साथ बड़े पैमाने पर रक्तदान शिविर आयोजित हो रहे हैं। कुछ सामाजिक संस्थाएं इसे लेकर हर समय सक्रिय रहती है। लेकिन इसमें भी विसंगतियां देखी जाती है। कुछ प्रदेशों में तो जरूरत भर रक्तदान होता है। खास मौकों पर स्वयंसेवी संस्थाएं समय की नजाकत को समझ कर बढ़ – चढ़ कर रक्तदान करने लगते हैं। इसके लिए लोगों को प्रेरित करने के साथ ही रक्तदाताओं का सम्मान करने या उपहार देने जैसी औपचारिकता भी निभाई जाती है। लेकिन कुछ प्रदेशों में रक्तदान आवश्यकता से काफी कम होता है। ऐसे में आपात स्थिति में मरीज के परिजनों अथवा जानने वालों से रक्त लेने के सिवा कोई अन्य विकल्प शेष नहीं रहता। इसकी बड़ी वजह समुचित जागरूकता का अभाव , प्रेरणा व प्रोत्साहन की कमी भी बड़ा कारण है। रक्तदान को लेकर अभी भी भ्रांतियां व्याप्त है। यह भी विचित्र बात है कि आवश्यकता होने पर लोग अपने बीमार मरीज के लिए खून के जुगाड़ में दर – दर भटकते हैं। लेकिन यह नहीं सोचते कि किसी भी तरह से जो खून उसके बीमार परिजन को दिया गया, वह भी किसी के शरीर का हिस्सा है। किसी ने खून दिया तभी आज यह उपलब्ध हो सका। इसलिए उसे भी नियमित रक्तदान करना चाहिए। आपात स्थिति टलते ही लोग पुराने तेवर में लौट आते हैं और रक्तदान के नाम से ही दूर भागने लगते हैं। ऐसे में रक्तदान को लेकर व्याप्त भ्रांतियों का तत्काल निवारण जरूरी है। सबसे बड़ी समस्या यह है कि अभी भी काफी लोग समझते हैं कि रक्तदान करने से उनके शरीर में कमजोरी आ जाएगी। जो कि पूरी तरह से गलत है। यह सच्चाई के बिल्कुल विपरीत है। रक्तदान करने के बाद शरीर में जो प्रतिक्रिया आरंभ होती है उससे शरीर में नया रक्त बनने लगता है। इस लिहाज से देखें तो सामूहिक रक्तदान शिविर खून के फ्री एक्सचेंज आफर की तरह है। जहां अपने शरीर का ताजा रक्त देकर आदमी कुदरती तरीके से तैयार होने वाला नया – ताजा खून अपने शरीर में प्राप्त करता है। इसलिए भ्रांतियों को दूर कर अविलंब देश के हर हिस्से में बड़े पैमाने पर रक्तदान शिविर के आयोजन की बड़ी जरूरत है। इसके लिए सरकार को भी समुचित प्रोत्साहन देने की व्यवस्था करनी चाहिए। राज्य व केंद्र सरकारों को चाहिए कि वे अच्छे रक्तदाताओं का नागरिक अभिनंदन करे जिससे दूसरे खास कर वे लोग जो रक्तदान से कतराते हैं वे भी इसके लिए प्रेरित हो सके। अच्छे रक्तदाताओं को प्रोत्साहन स्वरूप कुछ अतिरिक्त सुख – सुविधा देने में कोई बुराई नहीं है।

दीपक कुमार दासगुप्ता, मलिंचा, बालाजी मंदिर पल्ली, खड़गपुर (पश्चिम बंगाल) 721304 जिला पश्चिम मेदिनीपुर
मोबाइलः 09332024000

लेखक प्रख्यात ज्योतिषी व भविष्यवक्ता हैं और समाजसेवा के साथ भारतीय जीवन बीमा निगम से भी जुड़े हैं।

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