भारत में महिलाएं और बच्चे अपराधियों के निशाने पर क्यों रहते हैं ?

डॉ. मोहनलाल गुप्ता
डॉ. मोहनलाल गुप्ता
संसार में भारत की पहचान एक सॉफ्ट स्टेट के रूप में है। स्वीडिश अर्थशास्त्री गनर माइर्डल ने अपनी पुस्तक एशियन ड्रामा में सॉफ्ट स्टेट की परिभाषा कुछ इस प्रकार दी है कि उन दक्षिण एशियाई देशों को सॉफ्ट स्टेट कहते हैं जहां सरकारी कर्मचारी अनुशासनहीनता का आचरण करते हैं जिसके कारण समाज में अपराध पनपते हैं। यहां सरकारी कर्मचारी से आशय टॉप ब्यूरोक्रेट्स, मध्यम स्तर के अधिकारी, कर्मचारी, पार्षद, पंच-सरपंच तथा एमएलए, एमपी, मंत्री आदि उन सब लोगों से है जिन पर जनता का काम करने की जिम्मेदारी है और जो किसी भी सेवा के बदले सरकार से वेतन या पेंशन लेते हैं अर्थात् ठेकेदार, सप्लायर और अनुबंध पर लगे कर्मचारी भी। गनर द्वारा प्रस्तुत इस परिभाषा के अनुसार भारत निश्चित ही सॉफ्ट स्टेट है।
शिक्षा, चिकित्सा, सड़क, बिजली, पानी जैसे पब्लिक यूटिलिटी विभागों से लेकर पुलिस, प्रशासन और न्याय से जुड़े विभिन्न विभागों तक में भारतीय कर्मचारियों में हर स्तर पर अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार व्याप्त है। जनता अपने न्यायोचित कामों के लिए तरसती रहती है जिनके न होने पर और समाज में रिश्वत, मारपीट, हत्या, बलात्कार तथा लूट जैसे अपराध पनपते हैं। सरकारी विभागों के कर्मचारियों द्वारा समय पर काम न करने, ढंग से काम न करने, काम से बचने के बहाने ढूंढने तथा छोटे-छोटे कामों के लिये जनता से रिश्वत की मांग करने आदि प्रवृत्तियों के कारण अपराधियों के हौंसले हर समय बुलंद रहते हैं तथा देश में अपराध का ग्राफ काफी ऊंचा बना रहता है। महिलाएं और बच्चे सॉफ्ट टारगेट होने के कारण हर समय अपराधियों के निशाने पर होते हैं। किसी सुनसान स्थान पर कोई अकेली महिला या अकेला बच्चा दिखता है तो अपराधी तत्व तत्काल सक्रिय हो जाते हैं। देश का आम आदमी अपने घर की महिलाओं और बच्चों को अकेले भेजने का साहस मजबूरी में ही जुटाता है। यहां तक कि महिलाएं और बच्चे अपने घरों में भी पूरी तरह सुरक्षित नहीं हैं।
आपराधिक अनुसंधान समय पर पूरे न होने, उनके वांछित परिणाम नहीं आने, गवाहों के मुकरने तथा न्यायालयों में मुकदमों के निर्णय होने में लम्बा समय लगने के कारण अपराधियों के हौंसले कभी पस्त नहीं पड़ते। 1960 के दशक से ही भारत में हत्याओं का आंकड़ा बहुत ऊंचा बना हुआ है। वर्ष 2007-08 में भारत विश्व का सर्वाधिक हत्याओं वाला देश बन गया। उस वर्ष भारत में पाकिस्तान की तुलना में तीन गुनी और अमरीका की तुलना में दो गुनी मानव हत्याएं हुई थीं। उस वर्ष देश में 50 लाख अपराध दर्ज हुए थे जिनमें से 32,719 मामले मानव हत्याओं के थे। वर्ष 2014 में भारत में 33,981 हत्याएं रिपोर्ट हुईं जिनमें से 3,332 व्यक्ति घर में ही हत्या के शिकार हुए। असंतोष, अत्याचार और झगड़ों के कारण भारत में प्रतिवर्ष लगभग 1 लाख 35 हजार लोग आत्महत्या करते हैं। इनमें से विवाह, दहेज, विवाह पूर्व प्रेम सम्बन्ध, विवाहेतर प्रेम सम्बन्ध, तलाक एवं पारिवारिक विवादों को लेकर सर्वाधिक आत्महत्याएं होती हैं।
भारत में हिंसा के कुल मामलों में से एक तिहाई अपराध घरेलू हिंसा के होते हैं, जिनमें से एक चौथाई मामले 15 से 49 साल की महिलाओं के प्रति घर के ही निकट रिश्तेदारों द्वारा किए जाने वाले सैक्सुअल हैरेसमेंट के होते हैं। भारत में होने वाले अपराधों में चौथा नम्बर महिलाओं और बच्चों के साथ होने वाले बलात्कार का है। वर्ष 2012 में भारत में बलात्कार के लगभग 25 हजार मामले रिपोर्ट हुए जिनमें से 98 प्रतिशत मामलों में पीड़ित महिला के साथ उसके किसी परिचित ने ही बलात्कार किया। भारत में प्रत्येक एक लाख बच्चों में से 7,200 बच्चों के साथ बलात्कार होता है। यह आंकड़ा काफी ऊंचा है। वर्ष 2014-15 में हुए एक अध्ययन के अनुसार भारत में बलात्कार के केवल 5-6 प्रतिशत मामले ही रिपोर्ट किए जाते हैं। बलात्कार के अधिकांश मामले सामाजिक प्रवंचना एवं पुलिस के दुर्व्यवहार के कारण महिलाओं एवं बच्चों द्वारा रिपोर्ट ही नहीं किए जाते। फिर भी भारत में बच्चों के विरुद्ध होने वाले लगभग एक लाख अपराध हर वर्ष पुलिस थानों में दर्ज होते हैं। महिलाओं के विरुद्ध होने वाले साढ़े तीन लाख अपराध लगभग हर साल पुलिस थानों मे रिपोर्ट होते हैं।
दंगों के दौरान असामाजिक तत्व महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार करते हैं। भारत में दंगों के समय महिलाओं से बलात्कार किए जाने का इतिहास काफी पुराना है। भारत विभाजन के समय लगभग एक लाख महिलाओं का अपहरण एवं बलात्कार हुआ। किसी एक वर्ष में किसी एक देश में इतनी अधिक महिलाओं के साथ बलात्कार धरती पर शायद ही कभी हुए हों। हरियाणा में दो साल पहले आरक्षण आंदोलन में असामाजिक तत्वों ने महिलाओं के साथ सामूहिक बलात्कार किए। यहां तक कि एक देवर ने अपनी भाभी के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना को अंजाम दिया। स्थिति इतनी भयावह है कि बहुत से देशों ने अपने नागरिकों को यह एडवाइजरी जारी की हुई है कि भारत में जाते समय वे संभावित बलात्कार से सावधान रहें। यहां तक कि समूह में यात्रा करते समय भी महिलाएं भारत में बलात्कार की शिकार हो सकती हैं इसलिये एकांत स्थानों पर तथा रात्रि में सार्वजनिक वाहनों से यात्रा न करें तथा भारतीयों की तरह कपड़े पहनें।
भारत में वेश्यावृत्ति कानूनन वैध है तथा वेश्यावृत्ति में संलिप्त महिलाओं के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर के अध्ययन में कहा गया कि नाबालिग लड़कियों को वेश्यावृत्ति हेतु धकेले जाने के मामले में दुनिया का ऊपर से सातवां स्थान है। हर साल लगभग 7 हजार लोगों के मानव तस्करी के प्रकरण दर्ज होते हैं। महिलाओं के विरुद्ध किए जाने वाले अपराधों में एक तिहाई से अधिक अपराध उसके घर वालों के द्वारा ही किए जाते हैं। सड़क पर चलते समय भी महिलाओं और बच्चों को सर्वाधिक उत्पीड़न सहन करना होता है। सर्वाधिक दुर्घटनाएं भी उन्हीं के साथ होती हैं। वर्ष 2015 में भारत में 4,13,457 लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे गये। इनमें बच्चों एवं महिलाओं के आंकड़े अलग से उपलब्ध नहीं हैं।
भारत में हर वर्ष विभिन्न प्रकार के लगभग 30 लाख मुकदमे दर्ज होते हैं तथा भारत के विभिन्न न्यायालयों में लगभग 3 करोड़ मुकदमे विचाराधीन एवं लम्बित हैं। हर वर्ष अपराधों की इतनी बड़ी संख्या दर्ज होने के बावजूद तथा देश भर के न्यायालयों इतनी बड़ी संख्या में मुकदमों के लम्बित एवं विचाराधीन होने के बावजूद भारत की जेलों में लगभग सवा चार लाख लोग ही बंद हैं। हत्या, बलात्कार, लूट, डकैती, धोखाधड़ी, घूस आदि में लिप्त बड़े-बड़े अपराधी कुछ समय के लिये जेल जाते हैं तथा फिर बाहर आकर समाज के बीच बेखौफ घूमते रहते हैं। यह एक बहुत बड़ा कारण है जिससे भारत में बच्चे और महिलाएं हर समय अपराधियों के निशाने पर रहते हैं। माता-पिता द्वारा बच्चों के नैतिक एवं धार्मिक शिक्षा पर ध्यान नहीं दिऐ जाने तथा उसकी परवरिश पर समुचित समय नहीं दिए जाने से यह समस्या दिनो-दिन बढ़ती जा रही है।
– डॉ. मोहनलाल गुप्ता

error: Content is protected !!