सरकारी खाद्यान्नों पर डाका व करोड़ों का गबन चिन्तनीय

आवश्यकता है सख्त नियम-कानून और उसके पालन की

आम गरीब पात्रों को मिलने वाले खाद्यान्न का उपयोग जिस कदर प्रभावशाली व धनबली लोगों द्वारा किया जा रहा है, इसको देख-सुनकर ही महसूस किया जा सकता है कि यह खाद्यान्न कितना पौष्टिक और स्वास्थ्यवर्द्धक है। गरीब किसानों, अन्नदाताओं के खून-पसीना की कमाई के फलस्वरूप उपजे अन्न में कितनी ताकत होती है जिसे पाने के लिए धनबलियों द्वारा क्या कुछ नहीं किया जाता। मसलन इस खाद्यान्न का अपने लिए सदुपयोग करने वाले तत्वों ने गरीबों के खाद्यान्न पर डाका डालना शुरू कर दिया है। इस तरह की लूट-पाट कोई नई बात है। ऐसा बरसों से होता चला आ रहा है। बिचौलियों की चाँदी कट रही है। सरकारी अहलकार देवराज इन्द्र होते नजर आ रहे हैं। खाद्यान्न की खरीद-फरोख्त हेतु जनपद स्तर पर खाद्य विपणन विभाग का गठन किया गया है। जिसमें कार्यरत मुलाजिम अन्नदाताओं के खून-पसीने से उपजे उत्पाद को अपनी देख-रेख में सरकारी समर्थन मूल्य पर खरीदते हैं।
मुख्य रूप से खरीफ और रबी उत्पादन की खरीद विपणन विभाग के पर्यवेक्षण में की जाती है। इस तरह धान और गेहूँ जैसे उत्पादों की खरीद क्रय एजेन्सियों के माध्यम से करके इस्तेमाल योग्य बनाकर पीसीएफ के गोदामों में भण्डारित किया जाता है। जिसका समय-समय पर प्रतिमाह खाद्य रसद पूर्ति विभाग के माध्यम से पात्रों के उपयोगार्थ प्रदत्त किया जाता है। इसी अन्न की खरीद और फरोख्त के बीच सम्बन्धित महकमों द्वारा लूट-खसोट का जो कार्य किया जाता है उन लोगों को जल्द ही सुख-सुविधाभोगी अमीर बना देता है। बावजूद इसके लालचियों का पेट भुक्खड़ों की तरह होता है जो दो-चार, दस क्विंटल की हेरा-फेरा से नहीं भरता। लालच के वशीभूत ये तत्व आधा-अधूरा नहीं समूचा रसोईघर ही उदरस्थ करने की फिराक में रहते हैं।
प्रायः देखा गया है कि खाद्य विपणन और पूर्ति महकमे के बीच इसी को लेकर तनातनी रहती है। दोनों महकमों में कार्यरत लालची सुख-सुविधाभोगी कदाचारी मुलाजिम गरीबों के खाद्यान्न की हेराफेरी करके मालामाल होते रहते हैं। वर्तमान 21वीं सदी के हाईटेक एरा में ये कदाचारी सरकारी मुलाजिम अपने द्वारा कारित भ्रष्टाचार को उजागर न होने देने के लिए मीडिया प्रबन्धन अच्छी तरह से किए रहते हैं। इसी के साथ ही अधिक चिल्ल-पों करने वाले सफेदपोश भी इनके हमराज होते हैं। लब्बो-लुआब यह कि किसानों के खून-पसीने व कड़ी मशक्कत के उपरान्त उत्पादित खाद्यान्न जो गरीब पात्रों का निवाला होता है उसे डकारने के लिए ये लोग हेराफेरी करते व हर हथकण्डा अपनाते हैं। कहने के लिए तो खाद्यान्न खरीद-फरोख्त में बिचौलियों को स्थान नहीं दिया गया है फिर भी सम्बन्धित विभाग के अधिकारियों/कर्मचारियों की मिलीभगत से बिचौलियों द्वारा घोटाला जैसे कार्यों को अंजाम दिया जाना आम बात है।
घोटाला कम नहीं, हजार-लाख का नहीं करोड़ों का होने लगा है। बिचौलियों से बचने के लिए सरकार ने भूमिधर किसानों का पंजीयन करना शुरू किया है उन्हीं लोगों के उत्पाद सरकारी समर्थन मूल्य पर खरीदे जाएँगे जो विभाग में पंजीकृत होंगे, परन्तु होता क्या है कि विभागीय कर्मियों की साठ-गांठ से फर्जी आई.डी. पर बिचौलियों द्वारा खाद्यान्न क्रय किया जाता है। ताज्जुब तो तब होता है जब विभागीय मेहरबानी से भूमिहीन लोग भी कागजों में भूमिधर/जमींदार बन जाते हैं। चिल्ल-पों के भय से खाद्य विपणन महकमा कभी-कभार ऐसे बिचौलियों के विरूद्ध विधिक कार्रवाई हेतु मुकदमा भी पंजीकृत करवाता रहता है। तात्पर्य यह कि खाद्यान्न की खरीद-फरोख्त में घपला-घोटाल व लूट-पाट, डकैती जो पुरानी परम्परा वह अब भी पूर्ववत जारी है।
खाद्यान्न गोदामों में भले सड़ जाए लेकिन क्या मजाल कि किसी जरूरतमन्द को महकमे के जिम्मेदार लोग सस्तेदाम पर उपलब्ध करा दें। खाद्यान्न सहयोग मांगने वालों को ये लोग भिक्षुक की तरह समझते हैं। हाँ यह बात दूसरी है कि गोदाम और मिल के बीच से खाद्यान्नों से भरे ट्रकों की बिक्री करने से ये बाज नहीं आते हैं। इनके पास दो पहिया, चार पहिया लग्जरी मोटर वाहनों के अलावा भव्य मकान और सुख-सुविधा के सारे सामान तथा अकूल चल-अचल सम्पत्ति है, फिर भी दिखाने के लिए ये अपने को बड़ा सख्त, ईमानदार और पाक दामन तथा सरकारी व विभागीय कायदे-कानून पर चलने वाला जिम्मेदार मुलाजिम प्रदर्शित करते हैं। जबकि इनकी सुख-सुविधा और ऐशो-आराम भरी जिन्दगी देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि महकमे के इन चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों से लेकर जिला स्तरीय अधिकारियों को कारू का खजाना (कुबेर का खजाना) मिल गया हो, जिसमें से धन निकाल-निकालकर ये लोग अपनी जरूरत अनुसार खरच रहे हों।
अभी कुछ दिन पहले उत्तर प्रदेश के अनेकों जिलों में खाद्यान्न घपले-घोटाले जैसे मामले प्रकाशित व प्रसारित हुए थे, ठीक उसी अन्दाज में एक तरो-ताजा मामला जो इस समय मीडिया की सुर्खियों में है वह है- प्रदेश के अम्बेडकरनगर जिले में लगभग 2 करोड़ 70 लाख कीमत का चावल (लगभग 1 हजार मी. टन) गबन मामला। इस बड़े घोटाले की जाँच में जो भी तथ्य सामने आ रहे हैं उससे अच्छा-खासा हड़कम्प मचा हुआ है। अम्बेडकरनगर के कलेक्टर ने कड़ा रूख अपना लिया है। इसमें उन्होंने आरोपी दो राइस मिलरों के विरूद्ध मुकदमा दर्ज कराने का आदेश दिया, फलस्वरूप मुकदमा भी पंजीकृत करा दिया गया है।
यहाँ बता दें कि अम्बेडकरनगर जिले में वित्तीय वर्ष 2018-19 में धान खरीद एजेन्सी पीसीएफ द्वारा पंजीकृत किसानों के धान की खरीद के लिए लगभग दो दर्जन राइस मिलों को अधिकृत किया गया था, जिसमें से 3 राइस मिलों ने चावल बनाने के लिए धान तो लिया लेकिन एक हजार मीट्रिक टन चावल गायब कर दिया। जिसकी कीमत लगभग 2 करोड़ 70 लाख बताई गई है। समाचार मिलने तक दो राइस मिलर्स के विरूद्ध डीएम के आदेश पर सम्बन्धित थानों में मुकदमा दर्ज करवाया गया है, एक राइस मिल की जाँच चल रही है। जाँचोपरान्त प्राप्त आख्या के आधार पर कार्रवाई सुनिश्चित की जाएगी। यह जाँच जिला खाद्य विपणन अधिकारी अजित प्रताप सिंह और एआरसीएस द्वारा की जा रही है। इसकी पुष्टि जिला खाद्य विपणन अधिकारी द्वारा की गई है।
जिलाधिकारी अम्बेडकरनगर राकेश कुमार मिश्र की इस मामले में सख्ती का यह आलम रहा कि पीसीएफ के जिला प्रबन्धक के विरूद्ध निलम्बन की संस्तुति पत्र उन्होंने उत्तर प्रदेश शासन को भेजा है, साथ ही उन्होंने सहायक निबन्धक सहकारिता के विरूद्ध विभागीय कार्रवाई के लिए भी अपनी संस्तुति की है। इसके अलावा सम्बन्धित क्रय केन्द्र प्रभारियों/सचिवों (लगभग 1 दर्जन) पर भी कर्रवाई की तलवार लटक रही है। सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि जिला खाद्य विपणन विभाग के कार्यालय में चर्चित व पुराने कर्मियों की कारगुजारी इस तरह के करोड़ों के गबन जैसे मामलों को अंजाम देने में अपनी महती भूमिका निभाती है। उत्तर प्रदेश के अम्बेडकरनगर जनपद में भी बिचौलियों, मिलर्स, सफेदपोशों व मीडिया से नजदीकी कायम रखने वाले कतिपय पुराने कार्यालयी कर्मचारियों व अधिकारियों की संलिप्तता में इस तरह का करोड़ों का खाद्यान्न घोटाला हुआ। ऐसा नहीं कि यह पहली बार हुआ हो और दोषी सिर्फ मिलर्स ही हों।
खाद्यान्न में घपला और घोटाला किसी प्रान्त विशेष में ही नहीं, किसी जनपद विशेष में ही नहीं बल्कि गरीबों के निवाले पर पूरे देश में डाका डाला जा रहा है, और इसको अन्जाम देने वाले कोई बाहरी नहीं अपितु वही लोग हैं जिनके जिम्मे खाद्यान्न की खरीद-फरोख्त, रख-रखाव और वितरण व पूर्ति जैसा कार्य है। अम्बेडकरनगर में सरकारी चावल पर डाका जैसा संवाद अवश्य ही झकझोरने वाला है। एक वित्तीय वर्ष में लगभग 3 करोड़ का चावल घोटाले की भेंट चढ़ जाए………..यह घोर आश्चर्य का विषय है। क्या सरकारी खाद्यान्न पर डाका डालने वाले लोग बच जाएँगे या फिर इन पर कोई कार्रवाई होगी…… यह तो समय बतायेगा। क्या गरीबों के निवालों पर कुदृष्टि रखने व डाका डालने वालों के विरूद्ध कड़ी कार्रवाई किए जाने का प्रावधान सरकार बनायेगी…..? आवश्यकता इस बात की है कि इस तरह का घपला-घोटाला करने वालों को मात्र भ्रष्टाचारी के रूप में न लिया जाए अपितु इन्हें जघन्य अपराधी मानते हुए तदनुसार कानून में संशोधन कर सजा की धाराएँ बढ़ाई जाएँ।

-रीता विश्वकर्मा
सम्पादक-रेनबोन्यूज डॉट इन
8765552676, 8423242878

error: Content is protected !!