जानिये पवन कुमार भूत की असलियत

हजारों अखबारों में और पत्र-पत्रिकाओं में इस खबर को तमाम प्रमाणों सेहित दिया लेकिन बारां जिले के “निराला राष्ट्रध्वज” के अलावा यह खबर किसी भी अखबार में प्रकाशित नहीं हुई। दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका व दैनिक नवज्योति सहित कई अखबारों के पत्रकारों और सम्पादकों  को कई बा इस फ्रॅाड के बारे में बताया लेकिन वहीं हुआ ढ़ाक के तीन पात . .  स्टोरी कहीं नहीं छपी। धन्यवाद देना चाहूंगा मुख्यधारा के समाचार पत्रों के भी बाप बन चुके तमाम उन न्यूज वेबपोर्टल के मालिकों व सम्पादकों को जिन्होंने बेबाकी से इस स्टोरी को प्रकाशित किया। उसके बाद वेब मीडिया की मार्फत फैली इस खबर से तिलमिलाए पवन भूत ने मुझे फोन कर धमकी दी। – लखन सालवी

किरण बेदी की वजह से दिल्ली पुलिस मुझे कुत्ता समझती है अब किरण बेदी को मैंनें डस्टबिन में डाल दिया है – भूत

पुलिस और पब्लिक के बीच सामंजस्य स्थापित करने तथा भारत को अपराध मुक्त बनाने के उद्देश्य से प्रकाशित की जा रही मासिक पत्रिका ‘‘पुलिस पब्लिक प्रेस’’ के मालिक और सम्पादक पवन कुमार भूत द्वारा की जा रही ठगी को लखन सालवी ने उजागर किया था। लखन सालवी द्वारा लिखे गए लेख (नटवर लाल भी कुछ नहीं पवन भूत के सामने) को पढ़कर ‘‘पुलिस पब्लिक प्रेस’’ के सम्पादक पवन कुमार भूत उद्वेलित हो उठे और युवा पत्रकार लखन सालवी को फोन कर धमकी दे डाली। हालांकि पवन भूत ने सालवी को डराने की गरज के फोन किया था लेकिन सालवी ने बड़ी ही चतुरता से उससे कई जानकारियां जुटा ली। जानने के लिए पढि़ए यह सम्पादित रिपोर्ट – संपादक

पवन भूत

फोन की घंटी बजी . . .
फोन उठाकर (लखन सालवी) – हल्लो कौन ?
आवाज आई – पवन कुमार . . नई दिल्ली से
लखन सालवी – बताइये
पवन कुमार – क्यों मेरा और अपना टाइम खराब कर रहे हो, क्यों लिख रहे हो मेरे भाई ?
लखन सालवी – देखिए जो सच है वो मैं लिखता आया हूं और लिखता रहूंगा। आपने पाठकों से 400-400 रुपए लिए। उन्हें 2 साल तक पत्रिका भेजनी थी, दुर्घटना मृत्यु बीमा करवाना था लेकिन आपने ना तो बीमा करवाया और ना ही मैगजीन भेजी।
पवन भूत – वो हमारी तकनीकी भूल थी। वाकई में मेरे से भारी गलती हो गई थी। उस समय पाठकों से महज 400 रुपए लिए जा रहे थे लेकिन इन पैसों में से भी 100 रुपए बतौर कमीशन रिपोर्टर को दे दिए जाते थे। ऐसे में शेष रहे 300 रुपए में 2 साल तक पाठकों को पत्रिका भेजना तथा उनका दुर्घटना मृत्यु बीमा करवाना संभव नहीं हो सका। मैं अपनी इस गलती को आपके सामने, कोर्ट के सामने और पूरे संसार के सामने मानने को तैयार हूं।
लेकिन अब हमने सारा काम व्यवस्थित कर दिया है। अब हम बेईमानी का रास्ता छोड़कर ईमानदारी के रास्ते पर है। हमने प्लान चैंज कर लिया है, अब हमने सदस्यता शुल्क 400 रुपए की बजाए 1000 रुपए कर दिए है। इनमें से 250 रुपए बतौर कमीशन रिपोर्टर को दिया जा रहा है तथा 750 रुपए कम्पनी में जमा किए जा रहे है जिनसे पाठको को पत्रिका भेजी जा रही है। और लखन . . आप ये मत सोचना कि आपके लिखने से मैं काफी डर गया हूं और डर के मारे फोन कर रहा हूं। और हां आप मुझे नटवर लाल कहो, भालू कहो मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता ।

बात धीरे धीरे इन्टरव्यू में बदल गई। लखन सालवी ने पवन भूत से कई सवाल किए जिनके जवाब पवन कुमार भूत बड़ी ही चतुरता से घुमाते हुए।

पवन भूत ने सालवी को बताया कि उड़ीसा के सीएम ने भी लगाई 100 गुना देशी ताकत लेकिन कुछ नहीं बिगाड़ सके मेरा . . .

उन लोगों का क्या जिन्होंने 400-400 रुपए देकर सदस्यता ली ?
उन सभी लोगों को पत्रिका भेजी जा रही है।

पाठको को पत्रिका नहीं मिल रही है ? राजस्थान के भीलवाड़ा जिले और गुजरात के सूरत जिले के कई पाठको ने बताया है।
(झल्लाकर) – वो तो मैं भेज दूंगा लेकिन तुम जो कर रहे हो वो ठीक नहीं है। तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। तुमने जो किया ना लखन . . उससे 100 गुना, 100 गुना देशी ताकत लगाकर के हमारे उड़ीसा के मुख्यमंत्री, सीबीआई व कई बड़ी-बड़ी संस्थाओं ने मेरे खिलाफ मोर्चा खोला। सारी जांच की लेकिन मेरा कुछ नहीं कर पाए। तुम क्या कर लोगे ?

रही बात पत्रिका की . . तो लखन, आपको बता दूं कि देश भर में कोई 1900 पत्र-पत्रिकाएं रजिस्टर्ड है आरएनआई में। आपकी दुआ से ‘‘पुलिस पब्लिक प्रेस’’ एक मात्र ऐसी पत्रिका है जो कुछ हद तक ही सही लेकिन पाठको तक पहुंचती है। बाकी सारे के सारे पुलिस का लोगों (चिन्ह) उपयोग करते है, कार्ड बेचते है। मेरे पास ऐसी 10 बड़ी-बड़ी पत्र-पत्रिकाओं के कार्ड है जिनसे मैंनें आजीवन सदस्यता ली। लेकिन वो पत्रिकाएं बंद हो गई, अब क्या कर सकते है? रविवार, टाइम्स आफ इंडिया जैसी कई बड़ी पत्रिकाओं के लाइफ टाइम मेम्बरशिप के कार्ड मेरे पास है लेकिन वो पत्रिकाएं मुझे नहीं मिलती है। कई नामचीन हिन्दी पत्र-पत्रिकाएं बंद गई। कई लोग चंदा लेकर प्रकाशित कर रहे है। लेकिन जो बंद हो गई उनका कुछ नहीं किया जा सकता है। हां मैंनें जो गलती है कि है उसे सुधार दूंगा। और ये मेरे माइण्ड का ही कमाल है कि ‘‘पुलिस पब्लिक प्रेस’’ में इस प्रकार की कोई तकनीकी खामी नहीं है। और मैं हर हाल में मेरी 100 करोड़ की इस कम्पनी को चलाऊंगा।

आपने अपनी वेबसाइट पर कई सरकारी सुरक्षा, जांच विभागों एवं टीवी चैनलों को अवर एसोसिएट बताया है ?
यह आपकी दिमागी शरारत है। कोई ऐसा भी सोच सकता है यह आपसे मुझे पता चला है। अवर एसोसिएट में हमने जिन्हें भी दशार्या वो क्राइम फ्री इंडिया की हमारी मुहिम में हमारे साथ काम करते है। हमने ऐसा थोड़ लिखा है कि वो हमारे पार्टनर है या हमारे से जुड़े हुए है। हां मैं उनका सहयोगी हूं और उनके साथ हूं।

आप बात को घुमा रहे है, आपने पुलिस पब्लिक प्रेस को उनका सहयोगी नहीं बल्कि उन तमाम सुरक्षा, जांच एजेन्सियों एवं टीवी चैनलों को अपना सहयोगी बताया है ?
ये सब आप कर रहे हो बाकि हमारी वेबसाइट कई सालों से चल रही है आज तक किसी ने कोई आपत्ति नहीं की।

अवर एसोसिएट की बात को टालते हुए कहते है और जिस किरण बेदी का नाम ले लेकर आप उछल कूद कर रहे हो। उस किरण बेदी की वजह से सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है मरा।

पुलिस पब्लिक प्रेस से जुड़ने वाले लोगों को बताया जाता है कि किरण बेदी पुलिस पब्लिक प्रेस की सहयोगी है और पत्रिका व कई समाचारों आदि में दिए जाने वाले विज्ञापनों में भी पुलिस पब्लिक प्रेस के साथ किरण बेदी का फोटों प्रकाशित किया जाता है। आपके रिपोर्टर फार्म में भी ऐसा लिखा गया है।

ये गलत है। किरण बेदी की एक फोटों मैंनें अपनी पत्रिका में तथा कहीं-कहीं विज्ञापनों में उपयोग की थी। जिसका खामियाजा मुझे मिला कि दिल्ली की पुलिस दिल्ली की पुलिस मेरे पीछे पड़ गई और उस महिला की वजह से मुझे लाखों का नुकसान हुआ। जिस दिन से ये बात समझ में आ गई कि उस दिन से मैंनें किरण बेदी को डस्टबीन में डाल दिया। मैंनें सोच लिया कि भई इस महिला के बिना भी हमारा काम चल सकता है, हमारा इनसे कोई लेना देना नहीं है।

(किरण बेदी ने ऐसा क्या  किया कि पुलिस आपके पीछे पड़ी है? इस सवाल का जवाब नहीं दिया।)

आपने पाठको के दुर्घटना मृत्यु बीमा भी नहीं करवाएं ?

(झल्लाकर) – यार बताया ना . . . शुरू में मेरे से गलती हुई थी, 400 रुपए वाले प्लान में दुर्घटना मृत्यु बीमा करवाना संभव नहीं हो सका था। और ये बीमा कोई बहुत बड़ी चीज नहीं है, यह बीमा महज 39 में होता है। ये बीमा सरकार का दिखावा मात्र है। यह बीमा जनता के साथ फ्रॅाड है।

जब आप जानते थे कि यह बीमा फ्रॅाड है तो फिर अपने प्लान में क्यूं लिया ?
आगे से हम यह बीमा करवायेंगे ही नहीं अब हम मेडिक्लेम करवाएंगे।

बात बदलते हुए पवन भूत कहते है कि लखन . . . आपने लिखा कि 10 हजार में प्रेस कार्ड बांटे जा रहे है। ये बिलकुल गलत है। ऐसा नहीं है। मैं आपको बता दूं कि कुछ लोग है जो हमें विज्ञापन देते है। अब साला मुझे ये नहीं पता कि विज्ञापन देने वाला दाउद इब्राहिम है या रिक्सा वाला है या ड्राइवर है या दूकानदार है। जो 10 हजार का विज्ञापन देता है हम उन्हें कम्लीमेन्ट्र कार्ड देते है न कि कार्ड बेचते है। और आपको बता दूं कि ऐसा देश में कई पत्र-पत्रिकाओं वाले और टीवी न्यूज चैनल वाले कर रहे है। दिल्ली में 30000 रुपए में टीवी न्यूज चैनलों के कार्ड दिए जा रहे है। 30000 रुपए में फ्रेंचायजी दी जाती है और कार्ड जारी कर दिया जाता है। अब क्या बिगाड़ लेगी सरकार उनका ?

उन न्यूज चैनल के नाम बता सकते है जो ऐसे कार्ड जारी करते है ?
हां बिलकुल मैं उनकी वेबसाइट के लिंक आपको उपलब्ध करवा दूंगा और कार्ड भी दिलवा सकता हूं।
पर्वचन ऑफ मिस्टर नटवर लाल

लखन . . पैसा इस जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई है। अपने परिवार के लिए पैसा कमाओं। आप ऊर्जावान युवा हो, अपनी ऊर्जा को सकारात्मक कार्यों में लगाओं। मुझे पता है मेरे खिलाफ अब तक आप कई जगहों पर लिख चुके हो। लेकिन हमेशा नेगेटिव सोचने और नेगेटिव करने से ने तो मेरा भला होगा न आपका भला होगा और ना ही समाज का भला होगा। इसलिए आपको एक सुझाव देता हूं कि सकारात्मक सोचो और करो।

आप कुछ भी कर लो मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। सबूत ढूंढ कर मेरे खिलाफ जितना कुछ करना है कर लो मुझे पता है एक दिन इनकी मौत होनी है। आप मेरे खिलाफ जो कुछ कर रहे हो उसके परिणाम बहुत ही बुरे होंगे।

खैर . . . साफ हो चुका है कि पवन कुमार भूत ने फ्रॅाड किया है। वो स्वीकार कर चुके है कि वो अपने पाठको को पत्रिका नहीं भिजवा सके और दुर्घटना मृत्यु बीमा भी नहीं करवा सके। पवन भूत के इस फ्रॅाड के खिलाफ प्रधानमंत्री, प्रेस काउस्लि ओफ इंडिया, सीआईडी सहित कई लोगों से की गई लेकिन इन सब के द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई। क्या चोरी और सीना जोरी कर रहे पवन भूत जैसे लोगों से भरे इस देश में कानून नाम की कोई चिडि़या और उस चिडि़या की रक्षा करने वाले कोई  है ? – लखन सालवी

 

 

लखन सालवी

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