भाजपा की सुनामी, कांग्रेस की गुमनामी

-चार राज्यों में भाजपा की आंधी, कांग्रेस का सफाया
-अब केवल राजस्थान व छत्तीसगढ़ में बची है कांग्रेस
-कांग्रेस को अपनी नीति-रणनीति पर करना होगा नए सिरे से मंथन
-पंजाब में आप ने बुरी तरह धोया कांग्रेस को

✍️प्रेम आनन्दकर, अजमेर।
👉 लो जी, अब तो पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे भी आ गए हैं। भारतीय जनता पार्टी की सुनामी में सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की गुमनामी हो गई है। पांच में से किसी भी राज्य में कांग्रेस की सरकार बनना तो दूर, बहुत अच्छी स्थिति भी नहीं रही है। उत्तर प्रदेश में यह तो पहले से आकलन लगाया जा रहा था कि भारतीय जनता पार्टी फिर से पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में लौटेगी और उसका मुकाबला समाजवादी पार्टी से ही होगा। आखिर वही हुआ। समाजवादी पार्टी ने भारतीय जनता पार्टी को अनेक स्थानों पर कड़ी टक्कर दी है। यही कारण है कि समाजवादी पार्टी की सीटों का आंकड़ा सैकड़ा पार कर गया है। उत्तर प्रदेश के चुनाव परिणाम के आधार पर यदि राजनीतिक आकलन करें तो भारतीय जनता पार्टी का कुछ वोटिंग परसेंटेज घटने के साथ पिछली बार के मुकाबले इस बार सीटें भी घटी हैं, जबकि समाजवादी पार्टी ने अपना कुछ वोटिंग परसेंटेज बढ़ाने के साथ सीटें भी बढ़ाई हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी विपक्ष के रूप में सबसे बड़ी पार्टी उभर कर सामने आई है। यह लोकतंत्र की खूबी है कि जनादेश जिस पर मेहरबान होता है, उसे मालामाल कर देता है। हालांकि समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने अपनी साइकिल के दम पर भाजपा के कमल से खासा मुकाबला किया, लेकिन वह तमाम प्रयासों के बाद भी अपनी सरकार बनाने में कामयाब नहीं हो सके। अलबत्ता उत्तर प्रदेश की जनता ने महंत योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व को फिर से स्वीकार कर सत्ता की कमान सौंपने का निर्णय किया है। यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि महंत आदित्यनाथ योगी के सत्ता संभालने के बाद आपराधिक गढ़ माने जाने वाले उत्तर प्रदेश में पिछले 5 साल में काफी कुछ सुधार हुआ है और अपराधों का ग्राफ भी गिरा है। माना जाता है कि भाजपा की नई पारी में अयोध्या में भव्य राम मंदिर मूर्त रूप लेने के साथ ही उत्तर प्रदेश आपराधिक दृष्टि से काफी कुछ सुधर जाएगा और वहां की जनता सुकून हवा में सांस ले सकेगी। अब बात करते हैं उत्तराखंड की। उत्तराखंड में भाजपा फिर से सरकार बनाने की स्थिति में आ गई है। हालांकि उत्तराखंड में मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर धामी चुनाव हार गए हैं, लेकिन माना जा रहा है कि इसके बावजूद भारतीय जनता पार्टी पुष्कर धामी को ही फिर से सत्ता की कमान सौंपेगी।

प्रेम आनंदकर
उत्तराखंड में भी कांग्रेस की अच्छी स्थिति थी। इसके बावजूद कांग्रेस वहां अपना वजूद कायम नहीं रख सकी। गोवा में माना जा रहा था कि किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा और खिचड़ी सरकार बनेगी, लेकिन जनादेश ने इस आकलन को पूरी तरह गलत साबित कर दिया और भाजपा सरकार बनाने की स्थिति में आ गई है। मणिपुर में भी भाजपा सरकार बनाने की स्थिति में है, जबकि वहां भी भाजपा को काफी विकट परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा था। मणिपुर जैसे राज्य में भाजपा का पैर फैलाना देश में विस्तार की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है। पंजाब में कांग्रेस ने अपने हाथों ही अपनी नाव डुबोई है। कांग्रेस द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से इस्तीफा लेकर उन्हें पार्टी से बाहर कर देने का निर्णय उसके लिए ही सबसे ज्यादा घातक साबित हुआ है। बात यहीं खत्म नहीं होती, कांग्रेस ने नवजोत सिंह सिद्धू को पार्टी में शामिल कर और फिर प्रदेश मुखिया की कमान सौंपकर बगावत की राह खोल दी। यही नहीं, चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बना कर पंजाब कांग्रेस के भीतर बगावत रूपी ज्वाला को और भड़का दिया। यही कारण है कि कांग्रेस को पंजाब में आम आदमी पार्टी के हाथों जबरदस्त शिकस्त का सामना करना पड़ा है। यदि राजनीतिक आकलन को देखें तो, आम आदमी पार्टी ने केवल कांग्रेस के ही वोट काटकर पंजाब में अपनी जमीन तैयार की और आज सरकार बनाने की स्थिति में आ गई है। इससे बुरी स्थिति क्या होगी कि मुख्यमंत्री चन्नी दो सीटों से चुनाव लड़े और दोनों से ही हार गए। आम आदमी पार्टी के पंजाब में सरकार बनाने का श्रेय पार्टी के मुखिया व दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को जाता है। राजनीतिक पंडितों की बात मानें तो केजरीवाल का अगला निशाना संभवत: गुजरात हो सकता है, लेकिन उनके लिए गुजरात को फतह करना एक तरह से अभेद्य गढ़ को भेदने जैसा होगा। गुजरात में बरसों से भगवा का लहरा रहा परचम उखाड़ना आम आदमी पार्टी के लिए कुछ मुश्किल हो सकता है। इन पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से एक बात तो साफ है कि राज्यों के चुनाव में क्षेत्रीय पार्टियों का ज्यादा वर्चस्व अब दिखाई नहीं देता है, क्योंकि समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश में उम्मीद के अनुरूप सफलता नहीं मिली है, तो बहुजन समाज पार्टी भी एक तरह से डूब गई है। इन पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजे से यह बात तो साफ हो गई है कि अभी भाजपा का भगवा झंडा पूरी तरह लहरा रहा है और फिलहाल कांग्रेस उसको टक्कर देने की स्थिति में नहीं है। कांग्रेस की यह स्थिति क्यों हुई, इसके लिए कांग्रेस के आला नेताओं को मंथन करने के साथ अपनी नीति और रणनीति में जमीनी स्तर पर बहुत कुछ सुधार करना होगा, वरना वह दिन दूर नहीं जब कांग्रेस का पूरी तरह सफाया हो जाएगा। कांग्रेस अब केवल राजस्थान और छत्तीसगढ़ में रह गई है। इन दोनों राज्यों में भी नवंबर-दिसंबर, 2023 में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। इसलिए हाल ही पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए खतरे की बहुत बड़ी घंटी है। यदि कांग्रेस अब भी इस घंटी से सचेत नहीं होती है तो फिर कांग्रेस को कोई भी नहीं बचा सकता है। इसलिए कांग्रेस को जमीनी स्तर पर काम करते हुए अपना संगठनात्मक ढांचा और नेटवर्क नए सिरे से तैयार करना होगा।

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