बैंसला की खिलाफत के चलते नहीं होगी एकजुटता

गुर्जर समाज को आरक्षण दिलाने की मांग को लेकर गुर्जर संयुक्त आरक्षण संचालन समिति के बैनर तले समाज को एकजुट करने का प्रयास यूं तो बड़ा साफ सुथरा प्रतीत होता है, क्योंकि इसमें व्यक्ति विशेष की बजाय सामूहिक नेतृत्व पर जोर दिया जा रहा है, मगर साथ ही अब तक आंदोलन का नेतृत्व कर रहे कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला की खिलाफत के चलते एकजुटता होती नजर नहीं आ रही है।
इसका नजारा हाल ही पुष्कर सरोवर के तट पर स्थित वीर गुर्जर घाट पर आयोजित जिला स्तरीय बैठक में ही नजर आ गया। एक तो इसमें पर्याप्त संख्या में समाज बंधु उपस्थित नहीं हुए, दूसरा बैंसला के खिलाफत किए जाने से बैठक में मौजूद आधे से अधिक बैंसला समर्थक समाज बंधु बैठक का बहिष्कार कर लौट गए।
ज्ञातव्य है कि गुर्जर समाज को आरक्षण दिलाने की मांग को लेकर गुर्जर संयुक्त आरक्षण संचालन समिति के बैनर पर किए जाने वाले आंदोलन से पूर्व समाज बंधुओं को संगठित करने के मुख्य उद्देश्य से प्रदेश के सभी जिलों में 21 जुलाई से 22 अगस्त तक जिलास्तरीय बैठक आयोजित की जा रही है। इसी क्रम में अजमेर जिले के समाज बंधुओं की दूसरी बैठक पूर्व विधायक अतर सिंह भड़ाना की अगुवाई में पुष्कर में आयोजित की गई। वक्ताओं ने आरक्षण की मांग को लेकर पूर्व में किए गए आंदोलन की विफलता के लिए सीधे तौर पर किरोड़ी सिंह बैंसला को जिम्मेदार ठहराया तथा उन पर जमकर बरसे। वक्ताओं ने बैंसला को कठघरे में खड़ा करते हुए कहा कि बैंसला सिर्फ सरकार से समझौता करते आ रहे हैं। अब समझौता नहीं फैसला होगा। यही नहीं वक्ताओं ने कहा कि आंदोलन किसी एक नेता का नहीं है, बल्कि पूरे समाज का है। पूर्व विधायक भडाना का कहना रहा कि पूर्व में गुर्जरों के आरक्षण दिलाने के लिए बड़े आंदोलन हुए, लेकिन एक व्यक्ति विशेष के फैसले की वजह से हम हार गए। मगर अब पूरे देश में उग्र आंदोलन होगा। जिसका आगामी 5 सितंबर को सिकंदरा में होने वाली समाज की महापंचायत में आगाज किया जाएगा।

पुष्कर में हुई बैठक का नजारा

भडाना की बात कहने-सुनने में तो सही लगती है, मगर यदि ऐसा बैंसला को निशाने पर रख कर किया जाता है तो एकजुटता की उम्मीद उतनी ही कम हो जाती है। उलटा इससे फूट और बढ़ेगी। भले ही यह बात सही हो कि बैंसला के कुछ गलत निर्णयों के कारण समाज को सफलता हासिल नहीं हुई, मगर साथ ही यह भी सच है कि आंदोलन को परवान चढ़ाने में उनकी अहम भूमिका रही है और उसे एक झटके में नकारा नहीं जा सकता। आज भी बैंसला में यकीन करने वालों की बड़ी भारी तादात है। अगर बैंसला से बात करके उन्हें शामिल करते हुए सामूहिक नेतृत्व की बात की जाती है तो संभव है समाज अपने लक्ष्य को हासिल कर ले।
समाज के ताजा हालात पर गहरी नजर डालें तो बेशक इसके पीछे राजनीतिक महत्वाकांक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है, मगर कहीं न कहीं इसके लिए खुद बैंसला भी जिम्मेदार हैं। शुरू में वे एक सशक्त सामाजिक नेता के रूप में उभर कर आए थे, जिससे समाज को भारी उम्मीदें थीं। उनका अक्खड़ और अडियल रुख भी समाज को बहुत रास आ रहा था। समाज को लग रहा था कि वे कोई राजनीति नहीं कर रहे हैं, इस कारण समाज को आरक्षण का लाभ मिल जाएगा। मगर चूंकि वे राजनीतिक चालबाजियों से अनभिज्ञ थे, इस कारण जल्द ही राजनीति की दलदल में फंस गए। पहले पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने गुर्जरों को वोट बैंक हासिल करने के लिए उन्हें अपना मोहरा बनाया। वे भी चक्कर में आ गए। अपने जवानों को शहीद करवाया और ऐसा आरक्षण हासिल किया, जो प्रत्यक्षत: तो ऐसा दिखता था कि कोई बहुत बड़ा गढ़ जीत लिया हो, मगर उसमें अनेक प्रकार की कानूनी अड़चनें थीं। वहां तक भी बात ठीक थी, लेकिन जैसे ही उन्होंने जाट नेता ज्ञानप्रकाश पिलानिया का इतिहास दोहराते हुए भाजपा में शामिल होने का कदम उठाया, उनका कद छोटा हो गया। आमतौर पर कांग्रेस विचारधारा के साथ चलने वाले गुर्जर उनसे नजदीकी रखने से कतराने लगे।
पिछले दिनों जब बैंसला ने दुबारा आंदोलन शुरू किया तो उन पर पूर्व में किए गए आंदोलन को सिरे तक पहुंचाने का सामाजिक दबाव बना हुआ था। इधर सरकार की मजबूरी ये है थी कि वह हाईकोर्ट की ओर से सीमा से अधिक आरक्षण पर उठाए गए सवाल की वजह से किंकर्तव्यविमूढ़ थी, जबकि गुर्जर समाज को किसी भी हालत में आरक्षण चाहिए था। बैंसला इन दोनों स्थितियों के बीच फंसे हुए थे।
चूंकि बैंसला भाजपा में शामिल हो चुके थे, इस कारण कांग्रेसियों को भारी परेशानी थी, मगर सामाजिक दबाव की मजबूरी के चलते कांगे्रस विचारधारा के गुर्जरों को भी समर्थन देना पड़ा। इधर कुआं, उधर खाई वाली स्थिति थी। वे जानते थे कि यदि कर्नल बैंसला को सफल होने से रोकते हैं तो समाज खिलाफ हो जाएगा, मगर दूसरी ओर बैंसला का साथ देकर अपनी राजनीति भी खत्म नहीं करना चाहते थे। उधर सरकार हाईकोर्ट की आड़ लेकर आंदोलन को लंबा खिंचवाने लगी। उसका आकलन था कि जैसे ही आंदोलन लंबा खिंचेगा, उसके कमजोर होने की संभावना बढ़ जाएगी। बैंसला को भी लग रहा था कि और अधिक समय गंवाया तो आंदोलन बिखर जाएगा। इस बीच गृह मंत्री शांति धारीवाल ने भी पैंतरा चला। कि सरकार की ओर से दिया जा रहा पैकेज मंजूर करने पर ही अन्य मांगें पूरी की जाएंगी। विशेष रूप से पूर्व में हुए आंदोलन के दौरान दर्ज मुकदमों को वापस लेने की मांग की आड़ में सरकार दबाव बनाना चाह रही थी। जाहिर तौर पर कर्नल बैंसला पर यह दबाव रहा कि वे आरक्षण दिलवाने के साथ पूर्व के मुकदमों से भी मुक्ति दिलवाएं। यदि सरकारी पैकेज को मंजूर करते हैं तो आंदोलन का रुख सरकार के बताए तरीके की ओर मुड़ जाता है। हुआ भी यही। उन्हें एक प्रतिशत आरक्षण पर हां भरनी पड़ी। इसी के साथ उनका भाजपा से इस्तीफा देना भी चौंकाने वाला रहा। जाहिर तौर पर यह किसी गुप्त समझौते का ही प्रतिफल माना जा सकता है।
हालांकि बैंसला ने यह समझौता अपनी खाल बचाने के लिए किया और कानूनी बाध्यताओं में इससे ज्यादा मिल भी नहीं सकता था, मगर एक प्रतिशत आरक्षण से नाराज गुर्जर नेताओं ने बैंसला पर आरोप जड़ दिया है कि उन्होंने स्वार्थ की खातिर ऐसा किया है। उनका कहना है कि बैंसला ने दोनों सरकारों से किए तीन समझौतों में से एक में अपनी गरीबी दूर की, दूसरे में भाजपा में शामिल हो कर लोकसभा चुनाव का टिकट लिया, समधी को देवनारायण बोर्ड में और एक रिश्तेदार ब्रह्मसिंह गुर्जर को राजस्थान लोक सेवा आयोग में नियुक्ति दिलवाई और तीसरे में अपनी बेटी सुनीता को कांग्रेस की ओर से राज्यसभा का टिकट दिलवाना तय किया है। बैंसला पर समाज का लाखों रुपया हजम करने का भी आरोप लगाया गया। कुल मिला कर ताजा गुर्जर आंदोलन की परिणति ये रही है कि बैंसला ने अपनी साख पर बट्टा लगवा लिया है, भले ही कोई निजी लाभ हासिल कर लिया हो। दूसरा ये कि आंदोलन दो फाड़ हो गया है। समाज का दूसरा धड़ा आंदोलन को सामूहिक नेतृत्व में जारी रखने पर आमादा है। देखना ये है कि बैंसला का विरोध करने के चलते इस सामूहिक नेतृत्व के प्रति समाज अपना विश्वास जाहिर करता है अथवा नहीं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
[email protected]

1 thought on “बैंसला की खिलाफत के चलते नहीं होगी एकजुटता”

  1. Col. Bhainsla is trying to be a big leader of gurjar samaj and played a long i the hand of BJP.Atar Singh Badana with our Cabinet Minister Dr.Jitender Singh could play a better role to safe guard our C.M.
    Demands of the gurjar samaj may be comleted with discussions only,andolan is useless which we have seen
    in last seven years.

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