राजनाथ सिंह साजिश के सहारे पहुंचे शिखर पर

-रूपेश पांडे-21 जनवरी को लखनऊ के ही झूलेलाल मैदान में जो दृश्य था और जिस तरह कल्याण सिंह ने नितिन गडकरी को दुबारा अध्यक्ष बनने के लिए अग्रिम शुभकामना दी, उससे दूर-दूर तक कोई ऐसा संकेत नहीं मिल रहा था कि गडकरी के अलावा कोई दूसरा भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष होगा। राजनाथ तो सीन में कहीं थे ही नहीं। लेकिन यह समझना बहुत जरूरी है कि 24 घंटे से भी कम समय में भाजपाई राजनीति में ऐसा कौन सा भूचाल आया कि गडकरी की जगह अनापेक्षित ढंग से राजनाथ सिंह अध्यक्ष बन गए। यह भी समझने की जरूरत है कि जो कुछ हुआ, वह केवल 24 घंटे का घटनाक्रम था या उसकी पृष्ठभूमि लंबी है?

26 से 29 सितम्बर तक फरीदाबाद में हुई राष्ट्रीय कार्यपरिषद में नितिन गडकरी को दुबारा अध्यक्ष बनाने को लेकर हुई कवायद के बाद से ही भाजपा का कद्दावर अडवाणी खेमा बेचैन था। अडवाणी किसी भी कीमत पर गडकरी को दुबारा अध्यक्ष बनते नहीं देखना चाहते थे। गडकरी पर भ्रष्टाचार के लगे आरोपों के बाद उन्होंने अपनी मोर्चा बंदी और तेज कर दी। इसका संदेश उन्होंने संघ को भी भिजवाया। कहा तो यहां तक जाता है कि गडकरी पर लगे आरोपों के पीछे आडवाणी खेमे की ही साजिश है। यहां से भाजपा की गुटबाजी, टकराव और बिखराव की राजनीति संगठन से निकल कर सड़क पर आ गई। फिर पिछले चार महीनों में जो कुछ हुआ वह सबके सामने है। ऐसे अवसर राजनाथ सिंह के लिए हमेशा से मुफीद रहे हैं। षड़यंत्र की इस राजनीति में अंततः वह सफल भी हो गए।

22 तारीख की दोपहर से ही राजनाथ को अध्यक्ष बनाए जाने की खबरें आने लगी थीं, जो रात होते-होते पूरी तरह पक्की हो गई। शुरूआत हुई संघ के सर कार्यवाह सुरेश सोनी और भाजपा नेताओं, सुषमा स्वराज, अरूण जेटली व वेंकैया नायडू की बातचीत से। सोनी ने टोडरमल लेन पर स्थित जेटली के दफ्तर में इन नेताओं से बातचीत की और कहा कि राजनाथ को अध्यक्ष बनाने का संघ का निर्देश है। सवाल है कि यह निर्देश कब और किन परिस्थितियों में आया।

आडवाणी की मोर्चेबंदी से संघ ज्यादा सतर्क था। लम्बे समय बाद अटल और अडवाणी की छाया से भाजपा को मुक्त करा, गडकरी को अध्यक्ष बना अपनी मुट्ठी में करने के बाद संघ उसे किसी सूरत में अडवाणी के कब्जे में जाने नहीं देना चाहता था। संघ ने आडवाणी और उनके खेमे को संदेश भेजा कि ठीक है नितिन गडकरी नहीं तो किसी एक नाम पर सहमति बनाकर बता दीजिए। यह संघ की चाल थी। उसको आभास था कि गुटों में बंटी भाजपा कभी किसी एक नाम पर सहमत नहीं हो पाएगी, ऐसे में वह फिर गडकरी को अध्यक्ष बनाने में कामयाब हो जाएगी। संघ की यह रणनीति कामयाब भी हो जाती अगर 22 तारीख को गडकरी के ठिकानों पर आयकर के छापे नहीं पड़े होते। यहां, यह पड़ताल का विषय है कि छापे 22 तारीख को ही क्यों पड़े ?

गडकरी के ठिकानों पर आयकर के सम्भावित छापों की चर्चा 10 दिन पहले से ही सुनाई दे रही थी। अडवाणी खेमे से ही जुड़े एक पत्राकार ने जानकारी दी थी कि गडकरी के नामांकन करने से एक दिन पहले उनके ठिकानों पर आयकर के छापे पड़ेंगे। मैं इस बात को लेकर आश्वस्त हूं कि जो जानकारी मेरे पास थी, वह भाजपा के शीर्ष नेताओं और संघ के लोगों को भी थी। नितिन गडकरी को भी। तो क्या, संघ ने विकल्प के रूप में 10 दिन पहले ही राजनाथ का नाम तय कर लिया था? जानकारी सही निकली, 23 जनवरी को अध्यक्ष पद के नामांकन से ठीक पहले 22 जनवरी को गडकरी के ठिकानों पर छापे पड़े। माना जा रहा है कि इसकी साजिश कांग्रेस के साथ मिलकर भाजपा के ही कुछ नेताओं ने रची, जिनके तार आडवाणी खेमे से जुड़े हैं।

राजनाथ के अलावा जो नाम अध्यक्ष पद के लिए सामने आ रहे थे उनमें सुषमा स्वराज और अरूण जेटली के नाम प्रमुख थे। राजनाथ भी अपने तरीके से अपना नाम आगे बढ़ा रहे थे। जेटली की पैरोकारी वही सुरेश सोनी कर रहे थे, जो राजनाथ के भी पैरोकार थे। जेटली का नाम शायद तय हो जाता, लेकिन उनके खिलाफ भी ‘अवैध संपत्ति’ जुटाने का आरोप होने से बात परवान नहीं चढ़ी। बचीं सुषमा। कुछ ही दिन पहले सुषमा स्वराज को आडवाणी खेमे ने आश्वस्त किया था कि संघ आपके नाम पर सहमत है, लेकिन जब सुषमा ने संघ में इसकी ताकीद की तो बात गलत निकली, बल्कि यहां तक कहा गया कि आपके नाम पर सहमति बनाने में वक्त लगेगा। तब तक बहुत विलंब होगा, सो सुषमा स्वराज ने खुद ही अपने को पीछे कर लिया। वैसे भी, सुषमा आज जिस मुकाम पर हैं, वहां वह विवादों के बीच अध्यक्ष बनना कैसे स्वीकार करती।

अध्यक्ष पद के लिए चुनाव प्रक्रिया का समय जैसे-जैसे नजदीक आता जा रहा था, वैसे-वैसे भाजपा में गुटबाजी और टकराव बढ़ता जा रहा था। सभी नेताओं का आचरण उनकी जनछवि के विपरीत ही दिखाई दे रहा था। हर एक अपने कद को छोटा बनाकर आचरण कर रहा था। सभी का अवमूल्यन हुआ। वह चाहे आडवाणी हों या गडकरी, जेटली या सुषमा और संघ भी। षड़यंत्राकारी राजनीति के इस अवसर का राजनाथ ने बखूबी लाभ उठाया। एक तरफ तो आडवाणी रूपी गैतें इस्तेमाल कर राजनाथ ने गडकरी सरीखे पत्थर को उखाड़ डाला तो दूसरी तरफ स्वयं गडकरी को इस बात के लिए तैयार कर लिया कि आप अगर किन्हीं कारणों से दुबारा अध्यक्ष न बन पा रहे हों तो मेरा नाम प्रस्तावित करें। 21 जनवरी की रात राजनाथ के घर गडकरी की लंबी वार्ता का विषय संभवतः यही रहा होगा। जेटली को साधने के लिए राजनाथ, सुषमा स्वराज को लेकर उनके घर गए। जेटली को साधना जरूरी था क्योंकि मोदी से वह कोई पंगा नहीं लेना चाहते थे और फिलहाल मोदी को साधने की क्षमता केवल जेटली में है।

22 जनवरी को विवाद शुरू होते ही गडकरी ने राजनाथ का नाम सुझाया। लोकतांत्रिक प्रक्रिया में वर्तमान अध्यक्ष का सुझाव भविष्य के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। सुरेश सोनी पहले से ही राजनाथ के लिए संघ में माहौल तैयार कर चुके थे। आडवाणी ने जब यशवंत सिन्हा से नामांकन फार्म मंगवाया तो संघ ने गडकरी को हटाने का आडवाणी का प्रस्ताव मान लिया और राजनाथ का नाम आगे कर दिया। फिर जो हुआ वह सामने है। अब, गेंद भाजपा कार्यकर्ताओं के पाले में है। वह मंथन करें कि यह मजबूत भाजपा है या मजबूर भाजपा। विस्फोट डॉट कॉम से साभार

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