मोदी को बना दिया “फैंटम”

modi-मोहन श्रोत्रिय- 2014 में प्रधानमन्त्री पद के जो उम्मीदवार हैं, दोनों के, उनके हाल तो देखिये –

एक विदेश में बैठा है, पूरी तरह से बेखबर कि उत्तराखण्ड में मची अभूतपूर्व तबाही के वक़्त देश की दुखी जनता के दुख-निवारण के ठोस मानवीय प्रयत्नों में भागीदार न होना राजनीतिक और नैतिक दोनों दृष्टियों से अपराध है। और दूसरा? दूसरा, जो यहीं है, और तबाही का हवाई सर्वेक्षण कर रहा है। उसे सिर्फ़ यह समझ आ रहा है कि केदारनाथ-मन्दिर को सँवारना वक़्त की सबसे बड़ी ज़रूरत है। दुखी-पीड़ित लोग जायें भाड़ में ! काँग्रेस और भाजपा इस लिहाज़ से भी एक-सी स्थिति में हैं कि दोनों पार्टियों के हाई कमान ( यदि दोनों पार्टियों में वह बचा हो तो) को यह ज़रूरत महसूस नहीं हो रही कि प्रधानमन्त्री पद के दावेदार इन दोनों नेताओं को दिशा-निर्देश दें। इन पर लगाम लगायें ही नहीं, उसे बलपूर्वक खींचें- कसें भी।

तो 2014 में अयोध्या नहीं तो केदारनाथ ! “तू नहींऔर सही” की तर्ज़ पर !

“नरेंद्र मोदी आया, और पन्द्रह हज़ार गुजरातियों को बचाकर ले गया।” यह नरेंद्र मोदी को “फैंटम” के रूप में पेश करने की क़वायद है। अब कॉमिक्स तैयार होंगे! नये किस्म के स्टिकर्स बनेंगे। नये किस्म के मास्क बनेंगे। ग़ज़ब करता है अपना मीडिया भी। यह पूछने-सत्यापित करने की ज़रूरत ही महसूस नहीं हुयी ( जैसे नवभारत टाइम्स को भी नहीं हुयी) कि आखिर कैसे? कहाँ से? क्या सब गुजराती एक स्थान पर आ मिले थे, केदारनाथ के चमत्कार-स्वरूप? यह भी कि वह मरने से बचायेगा भी गुजरातियों को ही? क्योंकि यहाँ आने वाले तो सभी हिन्दू ही होंगे ! हमारी जाँ-बाज़ सेना के इतने दिन के अथक प्रयत्नों से जो उपलब्धि हुयीई, उससे ज़्यादा वह एक दिन में ही कर गया? इनोवा गाड़ियों से? कितने हेलिकॉप्टर थे? हो तो कितने ही सकते थे क्योंकि टाटाओं, अंबानियों, और न जाने किन-किन को तो एक इशारा ही काफ़ी था। कोई यह भी नहीं पूछ रहा कि प्रधानमन्त्री पद के दावेदार को “केदारनाथ-मन्दिर को सँवारना” ही सबसे “पहली और बड़ी प्राथमिकता” लगी? और क्या यह शुभ लक्षण है?

तो अब उम्मीद अयोध्या पर नहींकेदारनाथ पर आकर टिक गयी है? आपदाओं का दोहन, और धार्मिक उन्माद पैदा करने से लोकतन्त्र क़तई मज़बूत नहीं होता, फ़ासिज़्म आता है।

मीडिया ज़र-खरीद गुलाम की तरह आचरण कर रहा है। http://hastakshep.com

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