–समीर चौंगावकर– इन दिनों गुजरात के मुख्यमंत्री अपने सरदार प्रेम के कारण चर्चा में हैं। हाल में ही 11 जून को उन्होंने घोषणा की थी कि वे गुजरात के गौरव सरदार पटेल की स्टेचू आफ लिबर्टी से भी बड़ी प्रतिमा स्टैचू आफ यूनिटी की स्थापना के लिए पूरे देश के किसानों से लोहा जुटायेंगे। उनका यह स्टैचू आफ यूनिटी प्रोग्राम सरदार पटेल की जयंती 31 अक्टूबर से शुरू होगा। लेकिन मोदी सिर्फ सरदार की सबसे ऊंची प्रतिमा बनाने की बात ही नहीं कर रहे हैं। अब वे अपनी सभाओं में सरदार पटेल का नाम इस तरह से लेते हैं जैसे सरदार कांग्रेस के नहीं बल्कि संघ के स्वयंसेवक रहे हों। जबकि ऐतिहासिक सच ठीक इसके उलट है।
रविवार को पठानकोट की एक सभा में नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर कहा है कि सरदार पटेल, डॉ अम्बेडकर और श्यामाप्रसाद मुखर्जी तीन ही व्यक्ति ऐसे थे जो जवाहर लाल नेहरू के सामने सीना तान कर खड़े रहते थे। इन तीनों के जाने के बाद से नेहरू निरंकुश हो गए। नरेन्द्र मोदी असत्य बोल रहे हैं। हकीकत यह है कि नेहरू निरंकुश कभी नही रहे। जवाहर लाल नेहरू धर्मनिरपेक्ष और प्रजातात्रिक थे। जिस ऐतिहासिक सत्य को मोदी छुपा रहे है वह यह है कि 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लगा पहला प्रंतिबध नेहरू ने नहीं, सरदार पटेल ने लगाया था।
गांधी जी की हत्या के बाद संघ के दूसरे सरसंघचालक गुरू गोलवलकर को नेहरू ने नहीं, पटेल ने जेल भेजा था। नेहरू संघ पर प्रंतिबंध लगाने के बाद सन्तुष्ट हो गए थे। वे इससे ज्यादा कुछ करना नहीं चाहते थे। लेकिन वह सरदार पटेल थे जिन्होने कहा था कि बस अब बहुत हो चुका, संघ को अब छुट्टे सांड़ की तरह समाज में खुला नही छोड़ा जा सकता। उन्होंने कहा था ‘नकेल कसनी होगी।’ 27 फरवरी 1948 को नेहरू को लिखी चिट्ठी में साफ कहा था कि इन सबके पीछे हिन्दूमहासभा और संघ की साजिश है। आज भले ही नरेन्द्र मोदी एक सांस में श्यामा प्रसाद मुखर्जी और सरदार पटेल का नाम ले रहे हों लेकिन उस वक्त 18 जुलाई 1948 को सरदार पटेल द्वारा श्यामा प्रसाद मुखर्जी को लिखी चिट्ठी में साफ कहा था कि वे गांधी जी की हत्या के संबंध में कुछ नहीं कहना चाहते क्योंकि मामले की जांच हो रही है लेकिन सरदार पटेल ने हिन्दू महासभा और आरएसएस के बारे में श्यामा प्रसाद मुखर्जी को लिखा था कि ”उनके दिमाग में इस बात को लेकर कोई संदेह नहीं है कि आरएसएस का अस्तित्व सरकार और देश दोनों के लिए खतरा पैदा कर रहा है।”
संघ पर प्रतिबंध और गुरू गोलवरकर की गिरफ्तारी के बाद उस वक्त सरदार पटेल ने संघ से कहा था कि संघ से प्रतिबंध तभी हटेगा और गुरू गोलवलकर तभी जेल से बाहर आएगे जब संघ अपना लिखित संविधान बनाकर हिंसा का त्याग, गोपनीयता का त्याग और देश के संविधान पर पूरी आस्था रखने की बात स्वीकार करेगा। सरदार पटेल के प्रस्ताव पर गुरू गोलवलकर ने वचन दिया कि जेल से आकर वे संघ का संविधान बनाएगे। उस वक्त गुरू गोलवरकर वर्तमान मध्य प्रदेश की शिवनी जेल में थे। गोलवरकर के आश्वासन से सरदार पटेल नही मानें। सरदार पटेल ने कहा पहले संघ का संविधान आएगा फिर गुरू गोलवलकर जेल से बाहर आएगे। गोलवलकर झुके। शिवनी जेल में ही संघ का संविधान बना। शिवनी जेल से ही गुरू गोलवलकर ने संघ के संविधान को अंतिम रूप दिया और जेल से ही अपने हस्ताक्षर करके सरदार पटेल के पास भेजा। सरदार पटेल ने ध्यान से पूरा संविधान पढा और जब सन्तुष्ट हो गए कि अब संघ के गले मे घंटी बंध गई है तब जाकर संघ से प्रतिबंध हटा और गुरू गोलवलकर बाहर आए।
लेकिन अब इसी संघ परिवार के कट्टर हिन्दूवादी स्वंयसेवक नरेन्द्र मोदी सार्वजनिक मंचो से सरदार पटेल की तारीफ करते नही थकते। ‘स्टेचू आफॅ लिबर्टी’ से बड़ी मुर्ति सरदार पटेल की गुजरात में बनाने जा रहे है। मोदी अपने 12 साल के मुख्यमंत्रित्व काल मे 100 से ज्यादा बार सरदार पटेल की प्रंशसा कर चुके है, लेकिन एक बार भी हेडगेवार और गुरू गोलवलकर का नाम सार्वजनिक मंच से नही लिया। सरदार पटेल तो कभी संघ मे रहे नहीं। सारी जिंदगी कांग्रेस मे थे और कांग्रेस के अंदर गांधी के दक्षिणपंथी गुट का नेतत्व करते थे। क्या नरेन्द्र मोदी बताएंगे कि उन्हे सरदार पटेल की छवि को कांग्रेस से उधार लेने की जरूरत उन्हें क्यों पड़ी? वह शायद इसलिए कि गुजरात में वोट पाने के लिए पटेल होना जरूरी होता है। हेडगेवार और गुरू गोलवलकर गुजरात में वोट नही दिला सकते। अब आप ही बताएं क्या यह निरा वोट की राजनीति नहीं है? http://visfot.com