मोदी की वजह से गठबंधन नही तोडा नीतीश ने

nitishs-remarks-against-narendra-modi-unwarranted-sushil-modi-मंजू सिंह- जद(यू)-भाजपा गठबंधन की टूट के निहतार्थ क्या हैं ? क्या सच में नरेंद्र मोदी को भाजपा में महत्वपूर्ण बना दिए जाने के कारण ऐसा हुआ? शायद नहीं। वस्तुतः नीतीश कुमार का राजनीतिक अभ्युदय पिछड़ा वर्ग और आरक्षण नामक दो जुमलों के बल पर हुआ था। अब ये जुमले फीके पड़ने लगे थे। इसलिए बड़ी सधी हुई रणनीति के तहत इन जुमलों को नया राष्ट्रीय आयाम देने का निश्चय शरद यादव और नीतीश कुमार ने किया है।

दिल्ली के रामलीला मैदान में पिछड़े राज्यों को एकजुट करने का आह्वान किया जाना, इसी रणनीति की ओर एक इशारा था। सौभाग्य या दुर्भाग्य से जिन-जिन राज्यों में भाजपा की सरकार है या जहां भाजपा मजबूत  है, वे धनाढ्‌य, संसाधन संपन्न या विकसित राज्य है। इनमें गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, दिल्ली आदि राज्यों का नाम लिया जा सकता है। जद(यू) के थिंक टैंक का मानना है कि भाजपा का जनाधार इन राज्यों की पूंजी और यहां के पूंजीपतियों में निहित है। चाहे बाबा रामदेव का गुजराती कनखल ट्रस्ट हो या रत्नों और ग्रहों के सौदागर, हर जगह पूंजी का जादू सर चढ़कर बोल रहा है। इस तर्क के सहारे जद(यू) के थिंक टैंक इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि भाजपा की ताकत में गरीबों और पिछड़ों का प्रतिनिधित्व नहीं है।

यह प्रचार कि बिहार के लोग मेहनती और ईमानदार नहीं होते,एक दुष्प्रचार है क्योंकि सच यह है कि बिहार के लोग विभिन्न क्षेत्रों में अपनी मेधा और श्रमशक्ति का परिचय देकर विस्मय पैदा करते रहे हैं। आज जो धनाढ्‌य वर्ग मुसलमानों को त्याज्य बता रहे हैं, उनकी पूंजी इतिहास में मुस्लिम शासकों की सेवा से प्राप्त धन का अनैतिक विस्तार करके बनी थी। लेकिन बिहार के शेरशाही मुसलमान मुगल बादशाहों के साथ की गयी गुस्ताखी की सजा आज तक भुगत रहे हैं। बिहार में शेरशाही मुसलमानों की दुर्दशा देकर उनकी दयनीय स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। जबकि बिहार में हिन्दू-मुस्लिम एकता के जनक शेरशाह सूरी ही थे। कहा जाता है कि इसी एकता को तोड़ने के लिए बीरबल के सगों को बिहार के गांवों में तांत्रिकों और ज्योतिषों के रूप में बसाया गया था। वैसे ऐतिहासिक तौर पर बिहार की संस्कृति जातीय सौमनस्य की रही है। इसी का एक उदाहरण है बिहार का छठ पर्व, जिसमें वैदिक देवी सविता की पूजा की जाती है और इसमें पुरोहित और ब्राह्मण कर्मकांड के लिए कोई स्थान नहीं है।

बिहार जैसे राज्यों को विशेष दर्जा की उसी तरह जरूरत है, जैसे अनुसूचित जाति और जनजातियों को आरक्षण की दरकार है। लेकिन इस अवधारणा को विकसित राज्य धरातल पर नहीं आने देना चाहते हैं। शायद इसलिए भाजपा ने इस आंदोलन में कभी रूचि नहीं दिखायी। इन सब बातों के उल्लेख कर यह समझा जा सकता है कि नीतीश और शरद यादव ने आरक्षण, विशेष दर्जा की एक नयी अवधारणा विकसित की है। वे नहीं चाहते कि विकास की धारा को हिंदू-मुस्लिम नारों से अवरुद्ध कर दिया जाये। बिहार का विकास हिंदू-मुस्लिम टकराव के जरिये नहीं किया जा सकता। शायद इसलिए नीतीश ने अभी हिंदू-मुस्लिम विवाद से परे रहने का निश्चय किया है, क्योंकि यह विवाद उनके विकास के लक्ष्य को अवरुद्ध कर सकता था। http://visfot.com

(श्रीमती मंजू सिंह बिहार की राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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