‘आपरेशन राहत’ का असली रैम्बो

antonyकांग्रेस और भाजपा में रैम्बों और मोगैम्बों के झगड़े के बीच कौन रैम्बो था और कौन मोगैम्बो यह तो राजनीतिक जमात की सिर फुटौव्वल है लेकिन एक रैम्बो ऐसा जरूर था जो जब तक उत्तराखण्ड में आधिकारिक रूप से राहत एवं बचाव कार्य चलता रहा यह रैम्बो कहीं नजर नहीं आया। और राहत एवं बचाव कार्य खत्म होते ही अपने चार दिवसीय आधिकारिक दौरे पर चीन चला गया। उत्तराखण्ड की घाटियों में करीब एक पखवाड़े तक चले राहत एवं बचाव कार्य के लिए सेना की तारीफ सबने की लेकिन सेना को संचालित करनेवाला यह सैन्य कमांडर न तब पर्दे पर आया और न अब आ रहा है। बेहद हल्के शरीर और नाटे कद का यह रैम्बो कोई और नहीं बल्कि देश के रक्षामंत्री ए के एंटनी हैं।

केरल की राजनीति से निकालकर दिल्ली लाये गये एंटनी के बारे में समझा जाता है कि वे ईसाई हैं इसलिए सोनिया गांधी उनको महत्व देती हैं लेकिन आधिकारिक रूप से एंटनी का अपना कोई धर्म नहीं है। वे नास्तिक हैं। हां, केरल की माता अमृतानंदमयी में जरूर उनकी आस्था है और वे उन्हें मानते हैं। और शायद अमृतानंदमयी के सेवा की प्रेरणा ही रही हो कि एके एंटनी ने उत्तराखण्ड में देर से ही सही, शुरू किये गये राहत एवं बचाव कार्य का सफलता से संचालन किया। एक ओर जहां राहत एवं बचाव कार्य में सेना का सफल संचालन कर रहे थे तो वहीं राहत एवं बचाव कार्य के दौरान हेलिकॉप्टर हादसे में शहीद हुए जवानों के परिजनों से ही नहीं मिले बल्कि सेना का मनोबल गिरने से रोकने के लिए सभी शहीद परिजनों से सीधा संवाद किया।

उत्तराखण्ड में राहत एंव बचाव कार्य की व्यापक स्तर पर शुरूआत प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के दौरे के बाद शुरू हुआ। दौरे के बाद बड़े पैमाने पर सेना लगाने का निश्चय किया गया जिसके संचालन का जिम्मा जाहिर तौर पर बतौर रक्षामंत्री एके एंटनी के ही पास था। सेना के राहत एवं बचाव कार्य में उतरते ही रक्षामंत्री एके एंटनी राहत एवं बचाव कार्य मंत्री के रूप में नजर आने लगे। बतौर गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे अगर पर्दे पर नजर आ रहे थे तो बतौर रक्षामंत्री ए के एंटनी सिर्फ राहत एवं बचाव कार्य में सेना के सफल संचालन में मशगूल थे।

बताते हैं कि जिस वक्त राहत एवं बचाव कार्य की शुरूआत हो रही थी, यह एके एंटनी ही थे जिन्होंने मीडिया वालों को ढोकर आपदास्थल पर ले जाने की बजाय राहत सामग्री लेकर जाने को प्राथमिकता दी थी। एंटनी ने साफ कहा था कि एक मीडियाकर्मी के वजन के बराबर की राहत सामग्री अगर पहुंच जाती है तो कुछ लोगों की जान बच सकती है। हालांकि उसके बाद भी मीडिया के लिए सेना के दरवाजे बंद नहीं हुए और घटना की सही जानकारी देश के सामने लाने के लिए मीडियाकर्मियों को लेकर सेना के हेलिकॉप्टर लेकर आपदास्थलों तक गये लेकिन राहत सामग्रीवाले हेलिकॉप्टरों में मीडिया को जगह नहीं दी गई। ऐसे हेलिकॉप्टर जो लोगों को निकालने के लिए आपदास्थल की ओर रवाना हो रहे थे उनमें मीडिया कर्मियों को ले जाया जा रहा था, और राहत एंव बचाव के तहत निकाले जा रहे लोगों के बीच एक एक दो दो करके वापस लाया जा रहा था। जाहिर है अगर राहत एवं बचाव कार्य जरूरी था तो देश को सही स्थिति की जानकारी मिलना भी कम जरूरी नहीं था, और इन दोनों चुनौतियां से एंटनी ने बखूबी निपटे।

एंटनी की ही पहल पर राहत एवं बचाव कार्य सिर्फ सेना के जवानों के भरोसे छोड़ने की बजाय लेफ्टिनेन्ट कर्नल रैंक के अधिकारियों तक को वहां तैतान किया गया जहां राहत एवं बचाव कार्य किया जा रहा था। सेना की ओर से वायुसेना के करीब एक हजार सैन्यकर्मियों के साथ ही थल सेना के पांच हजार और सीमा सड़क संगठन के करीब तीन हजार जवानों को तैनात किया गया और एकसाथ त्रिस्तरीय राहत योजना को अंजाम दिया गया। वायुसेना और थलसेना के हल्के हेलिकॉप्टरों के जरिए राहत पहुंचाने और बचाव कार्य को संचालित करने का काम किया गया तो सीमा सड़क संगठन ने टूटे पुल की जगह वैकल्पिक पुल बनाने, रोप वे बनाने और दुर्गम स्थानों पर आवागमन सुलभ करने का काम जोर शोर से कर रहा था। इसके अलावा थलसेना के जवान आपदा राहत फोर्स के साथ मिलकर जमीनी रास्तों से लोगों को सुरक्षित स्थानों की ओर पहुंचा रहे थे जहां से हेलिकॉप्टरों के जरिए उन्हें देहरादून पहुंचाया जा रहा था।

हालांकि इतना सब करने के बाद भी सेना की ओर से सब तक सहायता नहीं पहुंच पाई और जैसी खबरें आ रही हैं उसके मुताबिक समय रहते सहायता पहुंचती तो शायद सैकड़ों (या फिर हजारों) और लोगों को बचाया जा सकता था। http://visfot.com

error: Content is protected !!