-रतन सिंह शेखावत- आजकल फिल्मों व टेलीविजन धारावाहिकों में विवाद पैदा कर टीआरपी बढाने की होड़ सी लगी है, निर्माता निर्देशक जानता है कि जैसे उसके सीरियल या फिल्म पर किसी तरह का विवाद होगा उसकी टीआरपी बढ़ेगी और यह उनकी कमाई के लिये जरुरी है|
टीआरपी बढाने की इसी शगल के तहत बालाजी टेलीफिल्म्स ने जोधा-अकबर के नाम से सीरियल बनाया है जो जी टीवी पर चल रहा है| बालाजी टेलीफिल्म्स को पता था कि गोवरिकर की फिल्म जोधा-अकबर का राजस्थान सहित देश के अन्य भू-भागों में रहने वाले राजपूतों ने विरोध किया था और उस फिल्म को राजस्थान में श्री राजपूत करणी सेना ने उग्र प्रदर्शन कर आज तक किसी सिनेमाघर में नहीं लगने दिया| अत: इसी विरोध का टीआरपी में फायदा उठाने के लिए जानबूझकर बालाजी टेलीफिल्म्स ने जोधा-अकबर के नाम से सीरियल बनाया और जैसा उन्होंने सोचा वही हुआ, देश भर के राजपूत समाज की भावनाएं आहत हुई और समाज का युवावर्ग सड़कों पर आया, राजपूत युवाओं के इस विरोध को भी जी टीवी ने सीरियल की टीआरपी बढाने हेतु अपने चैनल पर प्रमुखता दे भुनाने की कोशिश की|
राजपूत समाज के नेताओं ब प्रबुद्धजनों ने जी टीवी सहित बालाजी टेलीफिल्म्स को वे सभी ऐतिहासिक तथ्य उपलब्ध कराये जिनमें कहीं नहीं लिखा कि जोधा नाम की अकबर की कोई पत्नि थी, इन तथ्यों के जबाब में बालाजी टेलीफिल्म्स वाले कहते अहि कि उन्होंने अकबर पर दो वर्ष शोध किया है, अब उनका शोध किस दिशा में था उसकी बानगी का उदाहरण देखिये कि उन्होंने अकबर पर शोध के लिए “अकबरनामा”, “आईने अकबरी” जो अकबर के काल में खुद अकबर ने लिखवाई को नहीं पढ़ा, अकबर के बेटे जहाँगीर ने अपनी तुजुके जहाँगीरी व जहाँगीरनामा में अपनी माँ का नाम जोधा नहीं हरखा लिखा है पर बालाजी वाले उसकी नहीं मान रहे बल्कि सन 1968 के बाद मुगले आजम फिल्म से प्रभावित कुछ अनाम लेखकों की लिखी उल्टी सीधी किताबें अपने शोध के तहत दिखाते है ऐसे लेखकों की किताबें जिन्हें कोई नहीं जानता और ना ही वे कोई प्रमाणिक इतिहासकार है| इतिहासकारों के साथ भारत सरकार भी मानती है कि अकबर की किसी बीबी का नाम जोधा बाई नहीं था फिर भी बालाजी टेलीफिल्म्स में बेशर्मी की हद पार करते हुए यह सीरियल जारी रखा उन्हें पता था कि फिल्म का प्रदर्शन सिनेमाघरों में रोका जा सकता है पर टीवी पर प्रदर्शन कोई कैसे रोकेगा?
आखिर राजपूत समाज को इस सीरियल में ऐतिहासिक छेड़छाड़ से रोकने हेतु कोर्ट में याचिकाएं दाखिल करनी पड़ी अब मामला कोर्ट में है और ये सब जानते है कि कोर्ट में तारीख पर तारीख लेकर मामले को कितना भी लटकाया जा सकता है| जब तक कोर्ट का फैसला आयेगा तब तक सीरियल पूरा हो चूका होगा|
यह विवाद अभी सुलझा ही नहीं कि महाराणा प्रताप पर चल रहे धारावाहिक के निर्माता ने भी यही राह पकड़ महाराणा प्रताप के इतिहास से छेड़छाड़ कर दिखाना शुरू कर दिया, उसे भी पता है कि इतिहास से छेड़छाड़ करते ही राजपूत समाज इसका विरोध करेगा और उसकी टीआरपी बढ़ेगी| और बेशर्मी से मेवाड़ के इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश करना शुरू कर दिया, महाराणा प्रताप सीरियल के निर्माता निर्देशक ने उदयसिंह के शासनकाल के दौरान एक ऐसे जौहर की कल्पना की है, जो इतिहास में कहीं मौजूद नहीं है। मेवाड़ में जो तीन जौहर हुए हैं, उनकी काफी जानकारी मौजूद है, लेकिन सीरियल निर्माता यह चौथा जौहर कहां से उठा लाया, पता नहीं। यह इतिहास से खिलवाड़ नहीं तो और क्या है ?
धारावाहिक में महाराणा का जन्म चितौड़ में दिखाया जा रहा है जबकि उनका जन्म कुम्भलगढ़ में हुआ था, आज एक विद्यार्थी स्कूल में पढ़कर आता है कि महाराणा प्रताप कुम्भलगढ़ दुर्ग में जन्में थे और घर आकर सीरियल में देखता है कि वे चितौड़ के किले में जन्में थे| युद्ध के बाद उदयसिंह की रानियों के मुस्लिम सैनिकों द्वारा हाथ पकड़ते दिखाया गया जबकि कभी ऐसी नौबत ही नहीं आई और ऐसी नौबत आने से पहले सबको पता है कि राजपूत नारियां जौहर कर अपने आपको अग्नि में समर्पित कर दिया करती थी| पर सीरियल के इतिहासकार सलाहकार प्रो. राणावत कहते कि “मुगल सैनिक का रनिवास में घुसना एक ड्रामेटिक इफेक्ट है।“
अब इन भौंदुओं को कौन समझाये कि इतिहास दिखाते समय ड्रामेटिक इफ़ेक्ट. नहीं सही ऐतिहासिक तथ्य दिखाये जाते है और आपको यदि मनोरंजन के लिए ये ड्रामेटिक इफ़ेक्ट दिखाने हो तो फिर सीरियल के पात्र ऐतिहासिक ना रखकर काल्पनिक रखो, फिर किसी को तुम्हारे ड्रामेटिक इफ़ेक्ट पर कोई ऐतराज नहीं होगा|
पिछले दिनों बालाजी टेलीफिल्म्स व जी टीवी प्रबंधन टीम के साथ समाज के गणमान्य लोगों की चर्चा में मैं भी शामिल था, चर्चा में बालाजी टेलीफिल्म्स की और से अभिनेता जीतेन्द्र खुद मौजूद थे और उनका कहना था कि ये सब तो मनोरंजन के लिए है मैंने उन्हें उसी वक्त यही कहा कि फिर आप ऐतिहासिक पात्रों के नाम रखना छोड़ दीजिये किसी को आपत्ति नहीं पर उन पर इस बात का कोई असर नहीं हुआ उन्हें तो सिर्फ यही नजर आ रहा था कि हमने इस सीरियल पर दो वर्ष का समय लगाया है, बहुत सारा धन खर्च किया है, कई कम्पनियों से विज्ञापन के कोंटेक्ट कर लिए है अब नाम कैसे बदलें ?
मतलब सबको अपने अपने व्यवसाय की पड़ी है भाड़ में जाये देश का इतिहास ! और हाँ इतिहास को जानबूझकर छेड़छाड़ कर, तोड़ मरोड़कर भी पेश करेंगे ताकि जिनकी भावनाएं आहत हो वे विरोध करे और उस विरोध को वे टीआरपी के लिए भुनाये|
वर्तमान मामले देखने से तो यही लग रहा है कि ये सब टीआरपी बढ़ा व्यवसाय चमकाने के हथकंडे बन गये है| हाल ही जोधा-अकबर सीरियल के विरोध में सक्रीय कई राजपूत युवाओं का आक्रोश व उद्वेलित मन देख कर कोई भी सहज अंदाजा लगा सकता कि – यदि इसी तरह टीआरपी के चक्कर में फिल्म वाले अपने व्यवसायिक हितों के लिए समाज की जातिय भावनाओं पर चोट कर उनका स्वाभिमान आहत करते रहे तो वो दिन दूर नहीं जब राजपूत युवाओं में सामाजिक स्वाभिमान को बचाने के लिए कई शेरसिंह राणा पैदा होंगे और फूलन की तरह कई फिल्म हस्तियाँ निशाना बनेगी|
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