जारी है कारसेवक पत्रकारिता

news paperअस्सी के दशक के उत्तरार्द्ध से बाबरी मस्जिद विध्वँस के वक्त तक हिंदी पट्टी खासकर उत्तर प्रदेश में पत्रकारिता का एक नया रूप सामने आया जिसने पत्रकारीय मूल्यों को न केवल तहस-नहस किया बल्कि खबर और अफवाह और प्रोपेगण्डा के बीच का अंतर ही मिटा दिया। उस वक्त भारतीय प्रेस परिषद् को भी कुछ अखबारों की कटु आलोचना करनी पड़ी थी। तब से अब तक गंगा में काफी पानी बह चुका है और मामला कारसेवक पत्रकारिता से पेड न्यूज़ तक जा पहुँचा है।

देश का एक प्रतिष्ठित अखबार है जिसके संपादक जी प्रेस काउंसिल से एक मामले में बरी होने पर दम ठोंककर लिखते हैं कि हम खबरें छापते हैं बेचते नहीं। उनके इस हौसले को सलाम कि देश के सबसे बड़े पूँजीपतियों में से एक पूँजीपति के अखबार का संपादक इतने दावे के साथ कह सकता है कि वह खबरें छापता है बेचता नहीं।

याद होगा 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिराने वालों को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने गुण्डा कहा था। कुछ वर्ष पूर्व जब इस अखबार ने बाबरी मस्जिद विध्वँस की बरसी पर अपना परिशिष्ट निकाला तो जिन्हें राष्ट्रपति ने गुण्डा कहा था उन्हीं कारसेवकों को इस अखबार ने शहीद लिखा। उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार बनने पर अखबार ने नारा दिया अब “राजनीति खत्म/ काम शुरू” और उत्तर प्रदेश के पृष्ठ का स्लगउत्तम प्रदेश कर दिया।

बहरहाल असल मुद्दे पर आते हैं। लखनऊ में रिहाई मंच पिछले 55 दिनों से अनिश्चितकालीन धरना दे रहा है। उसकी माँग है कि पुलिस हिरासत में मारे गये सीरियल बम विस्पोटों के कथित आरोपी खालिद मुजाहिद (जिसकी गिरफ्तारी को सरकार द्वारा गठित जस्टिस आरडी निमेष कमीशन फर्जी घोषित कर चुका है) के हत्यारोपी पुलिस अफसरों को गिरफ्तार किया जाए।

मामला यह है कि 55 दिन से चल रहा यह धरना जिसकी गूँज सारे हिंदुस्तान में सुनाई दे रही है वह इस अखबार के लिए 55 दिनों में 5 लाइन की खबर न बन सका और इस अखबार में इस धरने की खबरों पर ब्लैक आउट रहा। लेकिन कल 15 जुलाई को जबमार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव प्रकाश करात इस धरने को संबोधित करने पहुँचे तो अचानक अखबार के लिए यह खबर बन गई और उसे अपनी कारसेवक पत्रकारिता करने का सौभाग्य भी प्राप्त हो गया।

सिंगल कॉलम की खबर संपादकीय अंदाज़ में लिखी गई। अखबार “मुस्लिमों पर हो रही राजनीति को प्रकाश करात ने हवा दी” शीर्षक से खबर की शुरूआत करते हुये लिखता है –“मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव प्रकाश करात ने सोमवार को रिहाई मंच को धरने में शामिल होकर प्रदेश के विभिन्न जेलों में बंद मुस्लिम युवकों के नाम पर हो रही राजनीति को हवा दे दी।“

“विभिन्न जेलों में बंद मुस्लिम युवकों के नाम पर हो रही राजनीति” वाक्यांश अखबार के मन में भरे हुये सांप्रदायिक जहर को उघाड़ कर रख देता है। एक लोकतांत्रिक आंदोलनजो इस सवाल पर हो रहा है कि पुलिस कस्टडी में किसी भी व्यक्ति की हत्या के गुनाहगारों को गिरफ्तार किया जाए, अखबार उसे मुस्लिम युवकों के नाम पर हो रही राजनीति कह रहा है। इस बावत सामाजिक कार्यकर्ताओं राघवेन्द्र प्रताप सिंह, मसीहुद्दीन संजरी, हरेराम मिश्र, अनिल आजमी, तारिक शफीक, देवेश यादव, मो0 आरिफ, योगेन्द्र यादव और मसीहुद्दीन संजरी ने सवाल उठाए हैं कि हिन्दुस्तान अखबार को रिहाई मंच द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन में सीपीएम महासचिव प्रकाश करात का आना, बेगुनाह खालिद मुजाहिद की हत्या पुलिस हिरासत में की गई, जांच एजेंसियों को ससंद के प्रति जवाबदेह बनाया जाए, खुफिया एजेंसियों को गृह मंत्रालय के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता, 6 महीना पहले भी बेगुनाहों की रिहाई के मुद्दे पर मुख्यमंत्री से की थी मुलाकात, अब तक नहीं हुई कार्रवाई कैसे मुस्लिमों पर हो रही राजनीति को हवा देना लगा?

बात निकली है तो दूर तलक जाएगी। सवाल यह है कि यह कारसेवक पत्रकारिता है या गुजरात के हत्यारों के यूपी आगमन की धमक। इस प्रश्न का उत्तर सामाजिक कार्यकर्ता माँग रहे हैं।
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