आसाराम खुद को सतों के संत सिद्ध करें

asharam–डॉ. वेदप्रताप वैदिक- संतों और   संन्यासियों के   प्रति जिनके  दिल में  ज़रा भी सम्मान हो,  उन्हें    आसाराम   जैसे बापुओं की दुर्गति देखकर   कितना कष्ट होगा।    जो लोग स्वयं सच्चे संत,  महात्मा और संन्यासी हैं, उनके दुख की तो कोई  सीमा ही नहीं है।   हमारे भावुक और सतही बुद्धिवाले नेता,    जो इन कथावाचक  धंधेबाजों के आगे मत्था टेकते रहे हैं, वे अब अपना माथा ठोक रहे हैं।    सबसे ज्यादा  मरण तो उन अंधभक्तों की है,  जो इन आध्यात्मिक मसखरों के चक्कर में पड़कर अपनी गाढ़ी कमाई का पैसा ही नहीं,  अपनी बहन-बेटियों तक को इनके हवाले करने को तैयार हो जाते हैं।    इटली के विख्यात विचारक निकोलो मेकियावेली का यह कथन आज कितना सटीक बैठ रहा है   कि जब तक दुनिया में लोग ठगे जाने के लिए सहर्ष तैयार होंगे तब तक ठगों की कभी कमी नहीं होगी।  आसाराम जैसे लोग बंदूक के जोर पर लोगों से पैसा नहीं ऐंठते हैं,  हत्या की   धमकी देकर लड़के और   लड़कियों को अपने कमरे में नहीं बुलाते हैं,  किसी की डकैती और चोरी नहीं करते हैं। भोले और स्वार्थी लोग खुद आकर उनके जाल में फंसते हैं। ऐसे ‘संत’ लोग बल-प्रयोग नहीं करते,  छल-प्रयोग करते हैं। इसीलिए उनके द्वारा किए गए किसी कुकर्म को आप ‘बलात्कार’ कैसे कह सकते हैं? वह ‘बलात्कार’ नहीं, छलात्कार है।

छलात्कार के शिकार के प्रति भी समाज की सहानुभूति होती है।      शिकार-विशेष के साथ ‘बलात्कार’ भी हो सकता है। लेकिन बलात्कार से भी भयानक और जघन्य अपराध है, छलात्कार!  छलात्कारी का जाल काफी ज्यादा चौड़ा और आकर्षक होता है।   बलात्कार या       ठगी करनेवाला सीधा अपराध करता है और जेल चला जाता है या गायब हो जाता है लेकिन      छलात्कारी अपना जाल बिछाने के पहले अपनी सेवा-दहल कई ब्रह्मचारियों और  ब्रह्मचारिणियों से करवाता है, खुद भगवा या   धवल  चोंगों से भेस बनाता है, अपनी प्रामाणिकता का सिक्का जमाने के लिए वेद,        पुराण और गीता तक को झोंक देता है और मोक्ष को चटनी की तरह बांटने की मुद्रा धारण किए रहता है। लेकिन अपने ही बिछाए जाल में जब वह फंस जाता है तो साधारण अपराधियों की   तरह अपना अपराध   कुबूल करने की बजाय   वह चोरी और सीनाजोरी करता है।

आसाराम तो अपने बड़बोले और हमलावर तेवर के  लिए कुख्यात हैं। लेकिन इस मामले में वे सीनाजोरी तो क्या, मुंहजोरी भी ठीक से नहीं कर पा रहे हैं। घिघिया रहे हैं।   बलात्कार सिद्ध करनेवाले को पांच लाख रु. देने की घोषणा कर रहे हैं। क्या मुंह दबाना और सिर्फ हाथ फेरना बलात्कार है,  वह यह पूछ रहे हैं?  वे सोनिया और राहुल का नाम भी घसीट रहे हैं। हद हो गई। देश की सबसे बड़ी पार्टी के नेताओं को क्या पड़ी है कि एक धंधेबाज़ मदारी के पीछे हाथ धोकर पड़ जाएं?  बाबा रामदेव से अपनी तुलना करना आसाराम के बौद्धिक दिवालियेपन का सबूत है।  जिन अन्य नेताओं ने इस संत के प्रति सज्जनतावश सहानुभूति प्रकट कर दी,  अब उनकी पार्टियों ने उन्हें सावधान कर दिया है। लाख कोशिश करने पर भी इस मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं हो सकता। जो करेगा, वह मरेगा। जनता उसे माफ नहीं करेगी।

इस मामले ने आसाराम को अंदर से हिलाकर रख दिया है। पुलिस की गिरफ्त से बचने के लिए वे एक जगह से दूसरी जगह भागे-भागे फिर रहे हैं।   यदि वे ज़रा भी  आध्यात्मिक होते तो वे पुलिस और कानून का मुकाबला वैसे ही करते जैसे कि सुकरात ने किया था। सुकरात को रातोंरात एथेन्स से फरार करने के लिए एक भक्त ने जहाज भी लगवा दिया था लेकिन उसे तो विश्व-इतिहास में अमर होना था। सुकरात चाहता तो वह रातों-रात एथेन्स से इतनी दूर भाग जाता कि उसे पकड़ पाना ही मुश्किल हो जाता। उसकी जान तो बच जाती लेकिन सुकरात खत्म हो जाता। क्या ऐसा व्यक्ति संत कहलाने का अधिकारी है, जो जेल जाने के डर से कहता है कि मुझे जेल में कोई ऐसी चीज़ न खिला दी जाए कि मैं पागल हो जाऊं! आप पागल हो गए तो आप यों ही बरी हो जाएंगे।

जरुरी यह है कि आप सचमुच पागल हो जाएं।  बुद्धिमान न बनें। चतुराई न दिखाएं! सच्ची संतई दिखाएं। यदि आपने जुर्म किया है तो उसे साफ़-साफ़ स्वीकार करें और अदालत से वह सजा मांगें, जो बलात्कार के लिए आज तक किसी  को न मिली हो।    संसद में कोई क्यों कहे कि आसाराम को फांसी पर लटकाओ। आसाराम खुद कहे कि मुझे लाल किले या विजय चैक पर फांसी दो और मेरी लाश को कुत्तों से नुचवा डालो। उस लाश के अंतिम संस्कार की भी जरुरत नहीं। इस दृश्य को सभी टीवी चैनलों पर भी प्रसारित किया जाए।  सारा राष्ट्र आसाराम  के ‘कुकर्म’ से  शर्मिंदा जरुर होगा लेकिन उनकी सत्यनिष्ठा और   निर्भीकता पर फिदा हो जाएगा।  वे सभी संभावित छलात्कारियों   और बलात्कारियों के लिए जिंदा सबक बन जाएंगे। वे संतों के संत कहलाएंगें।

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
डॉ. वेदप्रताप वैदिक

अपने आपको  बुद्ध या नानक कहलवाने की  कोशिश  को लोग  बचकाना   तो मान ही रहे हैं, इन महापुरुषों का अपमान भी  मान रहे हैं।   खुद को जेल से बचाने के लिए आप   इन महापुरुषों को भी अपने कीचड़ में क्यों सान रहे हैं। भारत सरकार, देश के प्रमुख नेताओं और इन महापुरुषों को अपने कीचड़ में घसीटे बिना भी आप मुकदमा जीत सकते हैं। मुकदमा जीतना कोई बड़ी बात नहीं है। आप ‘पीडि़ता’ या उसके परिवार को बर्गला सकते हैं,   मेडिकल रपट   या पुलिस रपट को उलट-पुलट सकते हैं, न्याय की गोटियां भी आगे-पीछे सरका सकते हैं और जांच को भी आंच के हवाले कर सकते हैं, जैसा कि बोफोर्स के मुकदमे में हुआ था। याद रखें कि अदालत ने तो   बोफोर्स को बख्श दिया लेकिन उस आरोप भर ने ही देश के सबसे ज्यादा सीटों से जीतनेवाले प्रधानमंत्री   को इतिहास के कूड़ेदान में बिठा दिया। किसी भी   नेता के मुकाबले हमारे देश में सच्चे संत का स्थान कहीं   अधिक ऊंचा होता है। उस पर मुकदमा चलना और जेल जाना तो बहुत दूर की बात है,   उस पर दुश्चारित्र्य का आरोप लगना ही मृत्युदंड से बड़ी सजा है। पता नहीं,   आसाराम इस सजा को कैसे काटेंगे? http://www.pravasiduniya.com

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