शाहपुरा की थोथी नेतागिरी करने वाले नेता तक चुप बैठे है

phed-मूलचंद पेसवानी- शाहपुरा / राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा शाहपुरा में पीने के पानी की समस्या के समाधान के लिए करीब साढे दस करोड़ रू की शहरी जल योजना व ढाई करोड़ रू की पानी की टंकी देने तथा उसका आचार संहिता लगने के ठीक पहले आनन फानन में माननीय विधायक द्वारा उद्घाटन कर शाहपुरा को पानी से सरोबार कर देने की घोषणा की गई। हमने उस दिन भी योजना की क्रियान्विति पर शक जाहिर किया था। बिना काम पूरा करने के लिए उद्घाटन कर वाही वाही लूटना कांग्रेस के लिए चाहे फायदेमंद रहेगी पर शाहपुरा की बेचारी जनता एक बार फिर पानी के संकट से जुझ रही है। शाहपुरा में आज पांचवे दिन भी पानी की आपूर्ति नहीं हो पायी। तेरह करोड़ खर्च करने के बाद केवल १९ दिन पानी पीने वाली शाहपुरा की जनता में लगता है कि कोई मर्द बचा ही नहीं है। शाहपुरा की थोथी नेतागिरी करने वाले नेता तक चुप बैठे है। अधिकारी है कि सुनते नहीं है। आश्चर्यजनक पहलु तो यह है कि आचार संहिता होने के बाद भी शाहपुरा के एसडीएम तक पीएचईडी का कुछ नहीं कर पा रहे है। क्या उनके हाथ भी किसी ने बांध दिये है। सहायक अभियंता सीएल मीणा संहिता के दौरान कितने समय शाहपुरा में रहे यह बहुत बड़ा जांच का विषय है। शहर योजना के जेईएन जाटव की शाहपुरा में कितने समय तक उपस्थिति रहती है यह भी जांच का विषय है।

मूलचंद पेसवानी
मूलचंद पेसवानी

उनका तबादला शाहपुरा हुआ काम गुलाबपुरा में कर रहे है। १९ दिन तक चली शहरी योजना का क्या हश्र हुआ। तेरह करोड़ खर्च करने के बाद भी फिर वहीं पुराना ठर्रा कया किसर बड़े भ्रष्ट्राचार को इंगित नहीं करता है। बिना योजना के ही पांच दिन में पानी मिल रहा था तो फिर तेरह करोड क्यों खर्च किये गये। क्या तेरह करोड़ का बंटवारा चुनाव खर्च में होगा। जनता नेताओं के साथ पीएचईडी से हिसाब मांगना चाहती है पर शाहपुरा की जनता में कोई मर्द हो तो इस मांग को उठावे। शर्म भी आती है कि योजना के उद्घाटन का विरोध करने पर मुझे लोगों के आक्रोश का शिकार होना पड़ा था पर आज मेरी कही बात सच साबित हो रही है तो यह आक्रोश नामर्दगी में बदल गया। मेरा किसी नेता विशेष से कोई विरोध नहीं हैँ। प्रशासन क्यों व्यवस्था को सुधारने का प्रयास नहीं कर रहा है, मेरे को टिप्पणी नहीं करनी है। पर जनता यह तो जानना चाहती है कि पांच दिन तक जलापूर्ति नहीं होने से कितने परिवारों को परेशानी हुई। कितने घरों में पानी को लेकर कलह हुई। में तो कहता हूं कि पानी को लेकर लोगों को अवसाद का शिकार तक होना पड़ रहा है क्योंकि पानी बिन सब सून है दोस्तो।

चंद सवाल जो जवाब मांग रहे है-
१- शहरी जल येाजना पूर्ण नहीं हुई तो उद्घाटन क्यों किया।
२- पांच दिन से शहर में जलापूर्ति नहीं हो रही है, किसकी जिम्मेदारी बनती हैँ।
३- क्या आचार सहिंता में भी नेता के पाले अफसर मौज करते रहेगें या आचार सहिंता का कोई डंडा चलेगा व पीएचईडी के अधिकारियों पर कोई अंकुश लगेगा।
४- पांच दिन से पीएचईडी का सिस्टम ठप्प पड़ा है, एसडीओ यह चैक करने की हिम्मत उठा सकते है कि पीएचईडी का एक्सईएन, सीटी एईएन, सीटी जेईएन कहां पर है, क्या कर रहे है, नाम शाहपुरा का तथा गुलछरै उडाये कहीं ओर।
५- शिकायत को सुनने वाला कौन है, चुनाव के दिनों में कहीं पानी को लेकर शाहपुरा में फिर अशांति का वातावरण न बन जाए इसके लिए पुलिस व इंटलीजेंसी को भी सर्तक होना होगा।
यह ठीक है कि मेंं मीडियाकर्मी हूं पर इसका मतलब यह तो नहीं है लोग पानी न मिले और अत्याचार सहन करते रहे। उठो जागो की तर्ज पर अब नहीं उठे तो कब उठोगे। यहां इतना कुछ लिखने के बाद भी नेताओं का जमीर नहीं जागे तो जनता की नजर में सभी दल बेमानी हो जायेेगें। कांग्रेस ने उद्घाटन किया और भाजपाई उसके लिए ताली बजा रहे है, है ना शाहपुरा में राजनीतिक सद्भाव की मिसाल।
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