हजरत इमाम कासिम की याद में ताजिये शरीफ पर मेहन्दी चढ़ाई जायेगी

अजमेर, 8 अक्टूबर । ख्वाजा साहब के गद्दीनशीन एस. एफ. हसन चिश्ती ने बताया कि रविवार 7 मोहर्रम 9 अक्टूबर को हजरत इमाम हसन के बड़े पुत्र हजरत इमाम कासिम की याद में ताजिये शरीफ पर मेहन्दी चढ़ाई जायेगी। हजरत इमाम कासिम शहीद-ए-करबला के जद हजरत इमाम हुसैन के भतीजे है, वे दुल्हा बने हुए मैदान-ए-करबला में हक और बातिल की लड़ाई में शहीद हो गए थे उनकी याद में ताजिये शरीफ पर मेहन्दी चढ़ाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि जिसकी बड़ी उम्र तक शादी नहीं होती है तो मन्नत की मेहन्दी चढ़ाने से उसकी शादी हो जाती है और जितने भी शादीशुदा लोग होते है वो भी अपनी तरफ से मेहन्दी चढ़ाते है। हसन चिश्ती ने बताया कि सोमवार 10 अक्टूबर माने 8 मोहर्रम को ताजिये शरीफ की सवारी दरगाह के निजाम गेट से रात्रि 9.30 बजे बाद होगी। मर्सिहे पढ़ते हुए जुलूस के रुप में लंगरखाना गली होते हुए छतरी गेट इमाम बारगाह पर रात्रि 12.00 बजे ताजिये शरीफ रखे जायेंगे। रात्रि बारह बजे करबला शरीफ की सवारी मुत्तवली साहब की हवेली से शुरु होगी जो कि मर्सिहे पढ़ते हुए जुलूस के रुप में तड़के सुबह चार बजे छतरी गेट इमाम बारगाह पर रखी जायेगी। 11 अक्टूबर बामुताबिक 9 मोहर्रम को रात्रि 9.30 बजे बाद छतरी गेट इमाम बारगाह से ताजिये शरीफ की सवारी होगी जो मर्सिहे पढ़ते हुए जुलूस के रुप में डोलीवाला चौक होते हुए रात्रि 12.00 बजे ताजिये शरीफ इमाम बारगाह पर रखे जायेंगे। ताजिये शरीफ के सामने इमाम बारगाह पर मन्नती लोग अपने बच्चों को फलों व मेवों में तोलते हैं। ताजिये शरीफ की सवारी के दौरान जगह-जगह मन्नती फल व फूलों के सहरे चढ़ाते हैं। 12 अक्टूबर बामुताबिक 10 मोहर्रम की सुबह आहता-ए-नूर दरगाह शरीफ में साढ़े आठ बजे कुरानख्वानी होगी। बाद शाहदतनामा पढ़ा जायेगा। दिन में 12.30 बजे छतरी गेट इमाम बारगाह पर मर्सिहे होंगे। रात्रि 9.30 बजे बाद इमाम बारगाह से ताजिये शरीफ की सवारी होगी जो कि डोलीवाला चौक, छतरी गेट, लंगरखाना गली होते हुए सुबह चार बजे दरगाह के मुख्यद्वार पर पहुंचेगी, कमानी गेट होते हुए सोलहखम्भा पहुंचेगी जहां से ताजिये शरीफ झालरा दरगाह परिसर में सैराब किये जायेंगे। श्री चिश्ती ने बताया कि 7 मोहर्रम से 10 मोहर्रम तक मुस्लिम समाज के लोग शहीद-ए-करबला की याद में रोजे रखते हैं क्योंकि तीन दिन तक मैदान-ए-करबला में हक और बातिल की जंग में हजरत इमाम हुसैन एवं उनके 72 साथियों पर खाना-पानी बंद कर दिया गया था। अधिकांश लोग 9 मोहर्रम 11 अक्टूबर, 10 मोहर्रम 12 अक्टूबर की रात व दिन विशेष नमाज व इबादत करके गुजारते हैं। ताजिये शरीफ की सवारी के दौरान दूध का शरबत, हलवा, फल-फ्रूट व हलीम का लंगर बांटा जाता है। वैसे तो मोहर्रम का चांद दिखने के साथ 40 दिन तक करबला के शहीदों की याद में लंगरों का आयोजन भी किया जाता है।

(एस. एफ. हसन चिश्ती)
गद्दीनशीन ख्वाजा साहब

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