श्रीमती जयश्री शिशिर उपाध्ययाय द्वारा नवाचार करते हुए रांगोली से बनाई जिरोति

निमाड़ के लोक संस्कृति पुरुष पं. राम नारायण उपाध्याय के परिवार में निमाड़ की हर संस्कृति विधा में निरंतर काम किया जा रहा है। बडवाह वाली छोटी बहू श्रीमती जयश्री शिशिर उपाध्याय प्रति दिन रांगोली से उस दिन पड़ने वाले तीज त्यौहार व राष्ट्रीय दिवस के अनुकूल रांगोली से घर के आँगन की जमीन पर चित्र बनाती है । कल म. प्र. के निमाड़ में जिरोति अमावस्या मनायी गई । इस दिन दिवाल पर भित्ति चित्रों में जिरोति बनायी जाती है । बहू जयश्री ने
ज़िरोति के चित्र रांगोली से भी बनाए है। जिरोति कथा इस प्रकार है।निमाड़ में,सावन की हरीयाली अमावस्या के दिन को एक खुशहाल परिवार के रूप में बनाकर पर्व रूप में मनाया जाता है।सम्पूर्ण निमाड़ में यह त्यौहार ज़िरोती अम्मोस के रूप जाना जाता है ।यह घर की भीतरी दीवार के दरवाजे के दोनों ओर गेरू पोतकर जिसे कवल्या कहते हैं पर बनाई जाती है । माँ ज़िरोती का यह सुन्दर मांडणा लगभग सात दिन पूर्व बनाना शुरू होता है , प्राचीन काल मे जब दीवारें गोबर की होती थी तब रंग धीरे से सूखते थे , पहले यह रंग प्राकृतिक हुआ करते थे । ज़िरोति के चित्र में मध्य में पालने में अथवा सिंहासन पर 3 स्त्रियों के साथ 3 पुत्र बनाये जाते हैं , ऊपर दोनों कोनों में चांद ,सूरज , मध्य में नथ , झुमके आदि , पालने के एक तरफ नाग दूजी तरफ तुलसी वृन्दावन , पालने के नीचे एक तरफ रसोई घर दूजी तरफ प्रसूता का कमरा , मध्य में गणगौर का चित्र , पंखा , बिच्छु आदि बनाये जाते हैं। ज़िरोति अमावस्या के दिन चन्दन से पुतलियों की आँख खोलकर कपास की पोनी का फुलेरा उन पर लगाया जाता है । उस चित्र की आरती -पूजा की जाती है ,और जुवार की खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। यह निमाड़ का अपना पर्व है जो सम्पूर्ण परिवार की खुशहाली के लिए मनाया जाता है। खुशी की बात ये है कि इस पर्व पर कोरोना संकट का असर नहीं रहा।क्योंकि न तो इसमें बाहर जाते हैं और न ही बाहर वाले अंदर आते हैं। अमावस्या के पाँच दिन बाद नाग -पंचमी पर इन्ही मांडनों के ठीक ऊपर सफेद खड़ी पोतकर नाग बनाये जाते हैं।सुप्रसिद्ध चित्रकार यामिनी रॉय कहते हैं कि कोई भी कलाकार भीत को सूना नहीं देख सकता,,निमाड़ के लोक – संस्कृति पुरूष पण्डित रामनारायण उपाध्याय ने कहा कि आदि काल मे जब मानव अपनी समस्त तृषाओं से पूर्ण हो जाता था तब वह गुफाओं ,कंदराओं में अपने रिक्त समय मे पत्थर से चित्र उकेरता था , जो अपने समय की कहानी कहते थे , सभ्यता के साथ – साथ जब गाँव बसे तो उनमें रंगों का प्रयोग होने लगा। निमाड़ के “नाग -ज़िरोति'” के भित्ति चित्र अपनी अलग पहचान बनाये हुवे हैं । सावन की हरियाली अमावस्या के दिन ज़िरोति के भित्ति चित्र का विधिवत पूजन किया जाता है , ज़िरोति की अनेक किवदंतिया और कथाएँ महाभारत कालीन जरासन्ध से जुड़ी है , दोनों भाई बहन थे , ज़िरावती अपभ्रंश ज़िरोति ने जरासन्ध को वरदान दिया था कि तुम्हे अगर कोई काट भी देगा तो तुम पुनः जुड़ जाओगे , जब भीम युध्द में बार -बार उसे काट कर फेंक रहा था और वो जुड़ता रहा था , तब भगवान श्रीकृष्ण ने उसे एक तिनके का इशारा किया उन्होंने उस तिनके को बीच मे से चीर कर अलग -अलग दिशाओं में फेंक दिया था , भीम ने जरासन्ध को बीच मे से चीर कर विपरीत दिशाओं में फेंक दिया।। हमें अपनी संस्कृति से जुड़े रहने की सीख देता है। है, : ज़िरोति पर्व: ज़िरोति का भित्ति चित्र एक खुशहाल परिवार का प्रतीक है ।

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