महिला सुरक्षा की बागडोर अब ‘निर्भीक’ के हाथों

-अश्वनी कुमार- आज हमारे सभ्य समाज के लिए सबसे बड़ी चुनौती महिला सुरक्षा है. इतिहास के पन्ने खंगाल कर देख लीजिये. कहीं भी कभी आपको यह कहीं नहीं मिलेगा की महिलाओं ने आज खुलकर सांस ली, आज महिलाएं पुरुषों से दबी नहीं उन्होंने पुरुषों का विरोध किया, आज किसी हद तक यह समभव् हो पाया है, परन्तु ग्रामीण क्षेत्रों में तो आज भी महिलाएं दबी कुचली ही जीवन जी रही हैं, न तो वह समाज में कैसे जीना है यह जानती हैं और न ही कभी उन्हें यहाँ बताने की जहमत उठायी गई है, और उठाये भी तो कौन, कौन दबना चाहता है इस बोझ तले. जहां महिलाएं पुरुषों के समक्ष उनसे कंधे से कंधा मिलाये चलें. जहां देखों वहां महिलाओं को उपभोग की वस्तु की भाँती केवल इस्तेमाल किया जा रहा और न जाने कब से किया जाता रहा है. हर जगह, हर स्तर पर महिलाओं को प्राचीन काल से ही अपमानित और समाज से पृथक्क समझा जाता है. हर जगह महिलाओं को पुरुषों के सामने दब कर रहने की हिदायत दी जाती है. कहा जाता है हमारी किस्मत में ही लिखा दबना तो हम दब रही हैं. न जाने कब से ये प्रथाएं चली आ रही हैं. क्या प्रथाओं को बदला नहीं जा सकता. जब हम बन्दर से मनुष्य का रूप धारण कर च्कें हैं तो हम अपनी कुप्रथाओं को क्यों नहीं बदल सकते हैं. क्या आज तक हम बन्दर ही हैं. और अगर पुराणी प्रथाओं को बदला नहीं जा सकता तो क्यों हम ईंट पत्थरों के घरों में रहने लगे हैं, क्यों  नहीं आज भी घास फुंस के बने कोठारे में रहते. क्यों हम अच्छा पौष्टिक भोजन करने लगे हैं क्यों नहीं आज भी कंदमूल फल खाते? प्रथा को बदलने की मंशा और जरुरत होनी चाहिए. लगता है आज तक महिलाओं के प्रति हमारी मंशा बदली नहीं है.

अश्वनी कुमार
अश्वनी कुमार

महिलाओं के लिए सबसे बड़ा अभिशाप बलात्कार है. जिसके होने के बाद एक महिला ही नहीं अपितु उसका पूरा परिवार इस जहमत को इस नरक को धरती पर अपनी आँखों से मेहसूस करता है, उससे प्रत्यक्ष रूप से अपने जीवन में देखता है. समाज के ताने, समाज की जलालत. समाज से अलग कर दिया जाना, हुक्का पानी कर पाबंदी लगा देनी ये सब हमारी सबसे पहली जरुरत बन गई है किसी महिला से दुष्कर्म होने के बाद. अरे भाइयों ज़रा गौर करो और समझों. जिस महिला के साथ बलात्कार हुआ है, पीड़ित वो हुई है, अस्मत उसकी लुटी है, बेइज्जत वो हुई है. और उसे ही समाज के तानों से गुजरना पड़ता है. सजा तो उस हवस के पुजारी को उस कुकर्मी को मिलनी चाहिए जिसने ये कुकर्म किया है. इसमें उस महिला का क्या दोष? परन्तु फिर भी उस महिला को दोषी करार दिया जाता है, बेक़सूर होने पर भी. क्यों? इसका जवाब तो बस यही हो सकता है कि पुरुष प्रधान समाज में पुरुष कोई और किसी भी तरह की गलती कर ही नहीं सकते, गलतियाँ तो केवल महिलाएं कर सकती हैं. तो दोषी भी महिलाएं ही होंगी, बेक़सूर होने पर भी. प्रथा है हमारी कुप्रथा.

16 दिसम्बर के न्रशंस बलात्कार के बाद लगा था कि शायद अब बदलाव होगा. महिलाएं बलात्कार मुक्त समाज में अपने खुशहाल जीवन की नई शुरुआत कर पाएंगी. अब दोषियों के हौंसले कुछ हद तक कम होंगे, कानून का डर उन्हें ये कुकर्म करने से रोकेगा. पर हुआ क्या दुष्कर्मों की संख्या में और बढ़ोत्तरी हो गई. महिलाओं का जीना पहले कम था अब ज्यादा दुश्वार हो गया. कारण, सरकार की लापरवाही. सरकार की लापरवाही से ये समस्या और विकराल रूप ले चुकी है. निर्भया की मौत के बाद, सरकार ने निर्भया फण्ड की घोषणा की कहा गया कि 1000 करोड़ रुपये महिलाओं की सुरक्षा पर खर्च किये जायेंगे. खर्च हुए….! अरे अब तक पता ही नहीं है लगता है चिदंबरम जी घोषणा करके भूल गए हैं. महिला सुरक्षा की क्या बात करें आज तो रक्षक ही भक्षक बन गए हैं. आये दिन सुनने में आता है कि इस पिलिस कर्मी ने बलात्कार किया, इस सिपाही ने बलात्कार किया. समझ नहीं आ रहा है, क्या हो रहा है. जिसे देखो वो अपनी हवस महिलाओं से मिटा रहा है. अरे महिलाएं क्या हवस मिटाने की चीज़ हैं? कहा गया था कि महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान किये जायेंगे. पुलिस स्टेशनों में महिलाओं के लिए अलग से हेल्पलाइन डेस्क बनायी जाएँगी, सभी थानों में एक महिला अधिकारी हर वक़्त मौजूद होगी, जो महिलाओं की समस्याओं का समाधान करेगी. लगता है फ़ास्ट ट्रैक न्यायालयों के लावा किसी भी वाडे को गंभीरता से नहीं लिया गया.

जब सरकार हर तरह से महिलाओं के खिलाफ बढ़ रही हिंसा को रोकने में नाकाम साबित हुई, तो अब एक नया पैंतरा अपनाया जा रहा है. जिसका नाम ‘निर्भीक’ है. अब ये निर्भीक है क्या तो जान लें ये निर्भीक एक रिवाल्वर है. कयास लगाये जा रहे हैं कि इस रिवोल्वर के सहारे अब महिलाएं अपनी सुरक्षा खुद करेंगी. तो पुलिस क्या करेगी, जबकि उसके पास तो इस रिवोल्वर से ज्यादा क्षमता वाली रिवोल्वर होती है. यह रिवोल्वर 15 मीटर तक वार कर सकती है. और इसमें 6 गोलियां लोड कि जा सकती हैं. अप्रैल से यह बाज़ार में उपलब्ध हो जाएगी. अब यहाँ सवाल खड़े हो जाते हैं कि क्या इस 500 ग्राम की रिवोल्वर से महिलाएं अपनी सुरक्षा कर पाएंगी, या इस बलात्कारी समाज में यह तकनीक भी दूर के ढोल सुहाने जैसी हो जायेगी. देखना यह है कि इसका भविष्य क्या होने वाला है.

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