क्यूँ भड़क रहे हैं मीडिया हाउस…?

अमित टंडन
अमित टंडन

आम आदमी पार्टी (AAP) के मुखिया अरविन्द केजरीवाल ने मीडिया को हिला के रख दिया है..
सिक्का हो, तस्वीर हो या आईना.. सभी के दो पहलू होते हैं.. कजरी बाबू ने मीडिया को बिका हुआ बताया तो
मीडिया मालिकों के पेट में दर्द शुरू हो गया. दूसरों के कपडे उतारते रहो, कोई तुमको आईना दिखाए तो हाथ में पत्थर उठा लो…
मीडिया भी वही कर रहा है, जनता को बेवकूफ समझा जा रहा है… सारे बड़े टीवी चेनल एक तरफ़ा ख़बरें दिखा रहे हैं..
ये बात हर चेनल के दर्शक समझ रहे हैं.. मगर जब केजरीवाल ने उनके सामने शीशा रखा तो अपने विभत्स चेहरा देख कर संपादकों
को चींटियाँ काटने लगीं.. बतौर पत्रकार मैं दावे से कह सकता हूँ कि कई मीडिया हाउस payed news की दुकानदारी करते हैं…
कजरी बाबू के मामले में तो स्पष्ट दिखता है कि टीवी वाले BJP और कांग्रेस से मिले हुए हैं… दीपक चोरासिया, रजत शर्मा, live india का बट्टा
बैठा के अब ZEE news पर ज्ञान बघारने वाले सुधीर चोधरी.. कई नाम ऐसे हैं जो साफ़ प्रतीत होता है कि पूर्वाग्रह से ग्रसित हो कर और बड़ी
राजनीतिक पार्टियों से मैनेज हो कर कजरी बाबू को निपटाने में लगे हैं…
अब जब केजरीवाल ने उनके खिलाफ मोर्चा खोला तो ऐसे मुहं बिचका रहे हैं जैसे किसी ने करेले का रस पिला दिया हो…
मीडिया वालों पहले अपने अन्दर की गंदगी साफ़ करो.. में जानता हूँ कि केजरीवाल भी दूध का धुला नहीं है..
समाजसेवा से राजनीति में वो भी दुकानदारी चलाने ही आया है. मगर यहाँ वो गलत नहीं है कि मीडिया बीजेपी, कांग्रेस या और अन्य पार्टियों
के बड़े नेताओं के इशारों पे काम कर रहा है,
सही है जिसकी जिससे सेटिंग है उसी के गुणगान कर रहा है, सारे कुँए में भांग है…
केजरीवाल जी और मीडिया वालों ये सबक सीखो..
बुरा-बुरा सबको कहे तुझसे बुरा ना कोए
मैल तू अपना साफ़ कर मन का आँगन धोये….
अमित टंडन, अजमेर

2 thoughts on “क्यूँ भड़क रहे हैं मीडिया हाउस…?”

  1. गलत नहीं कहा… मीडिया के अन्दर रह कर बड़े अनुभव से कह रहा हूँ.. ख़बरें ऐसे बेचीं और खरीदी जाती हैं जैसे किसी वैश्या का जिस्म बिकता है… चुनाव में खर्च की सीमा चुनाव आयोग प्रत्याशियों के लिए निर्धारित करता है, ये खर्च विज्ञापन पर होता है, निर्धारित रकम खर्च के बाद प्रत्याशी विज्ञापन नहीं दे पाता, क्यूंकि समस्या ये है कि चुनाव आयोग को दिखायेगा किस मद में… इसी का फायदा मीडिया हाउस उठाते हैं… जो प्रत्याशी दो नंबर में (यानी बिना बिल मांगे) पैसे दे देता है उनकी ही चुनावी सभाएं, जनसंपर्क आदि दिखाए जाते हैं.. बाकी को राम राम..! बड़े उद्यमी किसी अत्याचार, व्याभिचार, दुराचार, भ्रष्टाचार, अनाचार जैसे मामले में फंस जाएँ तो खबर रोकने या सामने वाली पार्टी के विरुद्ध लगाने के भी पैसे मिलते हैं… समस्या ये है कि दूसरों की चड्ढी उतारने का ठेका तो हम मीडिया वालों ने ले रखा है.. मगर हम जब अपने अन्तः वस्त्रों में सु-सु कर दें तो हमारी फोटो खींचे कौन, हमारी खबर बनाये कौन और लगाए कहाँ…? भाई साहब बड़ा कड़वा सच है, जिगर भी चाहिए अपने ही खिलाफ लिखने के लिए, में जानता हूँ कि कई पत्रकारों के,,, हो सकता है कि खासकर कई संपादकों या मीडिया मालिकों को ये पढ़ कर बदहजमी हो जाए और मेरा बहिष्कार शुरू कर दें.. ये भी हो सकता सकता है कि भविष्य में कोई अखबार या news चेंनेल मुझे नौकरी ही न दे, मगर वो कहते हैं न कि इलाज करना है तो दावा का कड़वा घूँट तो पीना ही पड़ेगा… यहाँ मैं ये भी स्पष्ट कर दूँ कि ये बात हर किसी अखबार, news चेंनल, सम्पादक या पत्रकार पर लागू नहीं होती, अपवाद हर जगह होते हैं, जिस तरह कुछ पुलिस वाले थोड़ी बहुत ईमानदारी रखते हैं, उसी तरह थोड़ी ईमानदारी मीडिया वाले भी रखते हैं, कुछ पत्रकार तो आते ही सच्ची पत्रकारिता के लिए है, चुनान्चे ऐसे पत्रकार इन आरोपों के घेरे में नहीं आते, ऐसे ईमानदार पत्रकारों का नाम बताने की ज़रुरत नहीं समझता, क्यूंकि उनकी कलम, उनकी लेखनी ही उनकी ईमानदारी को दर्शाने के लिए काफी है…. टीवी के दर्शक और अखबार के पाठक समझदार हैं.. वो जानते हैं कि कौन बेबाक है और कौन बेईमान…. मीडिया में आज भी सच्चे लोग मौजूद हैं… आसानी से समझा भी जा सकता है कि कौन ईमानदार है और कौन बेईमान… जो पत्रकार दो-पांच हज़ार की नौकरी से शुरू करके आज बहुत बड़ा “बिल्डर”, बन गया या जिसने बड़े धंधे जमा लिए वो ईमानदार कैसे हो सकता है, जो राजनीतिज्ञों से सेटिंग करके ठेके ले रहा हो, टेंडर ले रहा हो, (कुछ कुछ mounthly भी ले लेते हें) वो इमानदार कैसे…? आप सब समझदार हैं… आपके आस-पास बहुत से ऐसे पत्रकार होंगे जो जीरो से उठे और आज भी नौकरी के दम पे अपना परिवार चला रहे हैं.. कुछ ऐसे भी होंगे जो उसी औकात से उठे और आज बड़े उद्यमी बन गए, आप खुद पहचान लो उन दोनों में से कौन-सा “ईमानदार” है और कौन-सा “दुकानदार”… सीना ठोक के कह सकता हूँ कि पुलिस वालों, नेताओं और सरकारी कर्मचारियों से कम नहीं, तो भी उनके बराबर के भ्रष्टाचारी तो मीडिया वाले होते ही हैं … (मगर फिर वही बात कि अपवादों को छोड़ के) बस मीडिया वालों में ये गर्ट्स होते हैं कि “चोरी और सीनाजोरी” कैसे की जाती है, उदहारण आपके सामने है,.. एक उद्यमी से एक करोड़ की माँ करने वाला सुधीर चौधरी इतनी फजीहत के बाद भी इज्ज़त से Zee news पे बेशर्मी झाड रहा है… कभी NDTV पे वरिष्ठ पत्रकार रहा दिबांग महिला सहकर्मियों से “रिश्वत में अस्मत” मांगने के आरोपों से घिरा.. इस वजह से से उसे NDTV से निकाला गया (अथवा उसे छोड़ना पड़ा).. मगर आज वो भी सम्मान से बैठा ABP news पे दुनिया को भ्रष्टाचारी, नेताओं को व्याभिचारी बता रहा है.. अब ये बेशर्मी नहीं है तो और क्या है,.. और ऐसा नहीं है कि लड़कियों को news रीडर बनाने, टीवी एंकर बनाने और टीवी के माध्यम से सेलिब्रिटी बनाने का लालच देकर उन्हें रातें रंगीन करने के लिए पटाने की कोशिश करने वाले दुष्ट कथित पत्रकार (इंचार्ज) लोकल यानी स्थानीय स्तर पर भी मिल जायेंगे.. एना हजारे तो बहुत दूर की बात हैं… आज तो खुद गांधी जी भी आ जाएँ तो उलझ के रह जायेंगे कि मैं किस देश में आ गया…

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