कहानी – सोच और व्यवहार के प्रतिमान में अन्तर

केशव राम सिंघल
केशव राम सिंघल

स्टीफन आर. कवि एक दिन ट्रेन से यात्रा कर रहे थे. ट्रेन के डिब्बे में सभी यात्री शान्ति से बैठे थे, कुछ अखबार पढ़ रहे थे, कुछ सो रहे थे. माहौल शांत था. ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी और एक आदमी कुछ बच्चों के साथ डिब्बे में दाखिल हुआ. उस आदमी के साथ आए बच्चे चिल्ला रहे थे, रो रहे थे और उनके आने से डिब्बे का माहौल बदल गया था. वह् आदमी स्टीफन की बगल में आकर बैठ गया और उसने अपनी आँखें बंद कर ली. ऐसा लग रहा था जैसे वह् व्यक्ति अपने साथ आए बच्चों की धमाचौकडी से बेखबर हो. बच्चे चिल्ला रहे थे, यात्रियों से अखबार छीन रहे थे. इस सब से स्टीफन को कुछ चिढ़ सी महसूस हुई कि वह् आदमी अपने बच्चों से कुछ नहीं कह रहा था. ऐसे माहौल में झुंझलाहट पर काबू पाना मुश्किल हो रहा था अत: स्टीफन असाधारण धैर्य और संयम के साथ पास बैठे आदमी से बोले – “श्रीमान! आपके बच्चे बहुत ही असंयत व्यवहार कर रहे हैं. आपको अपने बच्चों को समझाना चाहिए.” उस आदमी ने अपनी आँखें खोली और धीरे से बोला – “आप सही कह रहे हैं. मुझे लगता है मुझे कुछ करना चाहिए. मैं अपने बच्चों के साथ अभी अस्पताल से आ रहा हूँ, जहाँ इन बच्चों की माँ की एक घंटे पहले ही मृत्यु हुई है. मैं नही जानता कि मुझे क्या सोचना या करना चाहिए और बच्चे भी शायद नहीं जानते कि इस स्थिति का सामना कैसे किया जाए.”

जैसे ही स्टीफन ने उस आदमी का कथन सुना उनके व्यवहार का प्रतिमान और सोच बदल गई. स्टीफन की झुंझलाहट खत्म हो गई. स्टीफन का हृदय उस व्यक्ति की पीड़ा से व्यथित हो गया. झुंझलाहट करुणा और हमदर्दी में बदल गई. वह बोले -“आपकी पत्‍‌नी की आज ही मृत्यु हो गयी है. ओह, मुझे बहुत ही अफसोस है. …”

मेरी सीख – यदि हम स्थितियों को एक अलग ढंग से सोचे तो हम सोच और व्यवहार के प्रतिमान में अन्तर महसूस करेंगे.

(साभार – स्टीफन आर. कवि की पुस्तक “The Seven Habits of Highly Effective People”)

Story redrafted and retold by Keshav Ram Singhal

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