जहां अमर बकरों की बलि नहीं देखभाल होती है

bakraदुनिया का एक मात्र देवी मंदिर जन्हा अमर बकरों की बलि नहीं देखभाल होती हे। जैसलमेर पश्चिमी पाकिस्तानी सरहद से सटा जैसलमेर जिले का सैन्य देवी मंदिर तनोट माता मंदिर अपनी विशेषताओ के कारण देश भर में ख्याति अर्जित कर रहा हें।1965 और 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध के दौरान सरहद वासियों की सुरक्षा माता जी के द्वारा करने के बाद सुर्खियों में आये इस मंदिर की पूजा से लेकर यात्रियों की सुविधा मंदिर की देख भाल सीमा सुरक्षा बल के जवान करते हें। इस मंदिर में अपनी मनोकामनाए पूर्ण होने के बाद बकरे की बलि चढाने सेकड़ो की तादाद में लोग अपनी कुलदेवी को प्रसन्न करने बकरे बलि चढाने के लिए लाते हे। पूर्व में  इस मंदिर में बकरों की बलि चढ़ती थी। मगर बाद में मंदिर प्रबंधन सीमा सुरक्षा बल के अधिकारियो ने बलि पर पूर्ण प्रतिबन्ध लगा दिया। इसके बावजूद लोग अपनी कुलदेवी को समर्पण के लिए चढ़ावे के रूप में बकरे लाते हे। सीमा सुरक्षा बल के पास अब तक एक हज़ार से अधिक बकरे एकत्रित हो चुके हे। चूँकि बलि पर रोक के बाद इन बकरों को देवी के नाम अमर कर दिया। इनके चारे पानी का प्रबंध बल के जवान करते हें। एक हज़ार से अधिक बकरों की एवड के लिए वन भूमि की व्यवस्था भी की हें। इनकी पूरी देख भाल होती हें। भारतीय महीनो में भद्रवा और चेत्र बड़े महीने माने जाते हे। इन महीनो में सर्वाधिक बकरे बलि के लिए श्रद्धालु लाते हे। सबसे बड़ी बात की बकरों को बांध के नहीं रखा जाता।

चन्दन सिंह भाटी
चन्दन सिंह भाटी

बकरे मंदिर परिसर में आसानी से विचरण कर अपने बाड़े में चले जाते हें। अमूमन जैसलमेर की सभी नौ देवी मंदिरों में से आठ मंदिरों में बकरों की बलि आज भी चढ़ाई जाती हें ।मगर तनोट मंदिर प्रबंधन ने अनूठी पहल कर बकरों को न केवल जीवन दान दे रहे अपितु उनकी समुचित देखभाल भी करते हें। इसी मंदिर परिसर में मुस्लिम धर्म के बाबा की दरगाह हें। हिन्दू मंदिर परिसर में दरगाह वाला यह संभवत पहला मंदिर हें। इस मंदिर में श्रद्धालु अपनी मनोकामना पूर्ण के लिए परिसर में रुमाल बंधाते हें ।इस परिसर में हजारो रुमाल बंधे हें ।मनोकामना पूर्ण होने के बाद रुमाल को वापस खोलते हे शराद्धालू। तनोत माता का यह चमत्कारिक मंदिर देश भर में ख्याति अर्जित कर रहा हें ।हजारो की तादाद में देश भर से सेना के जवान अधिकारी जनप्रतिनिधि धोक देने पहुंचाते हें।
chandan bhati

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