कभी तुम हो बोतल

अश्वनी कुमार
अश्वनी कुमार

-अश्वनी कुमार-

कभी तुम हो बोतल

कभी तुम नशा हो

कभी तुम मज़ा हो

कभी तुम सजा हो

कभी तुम बनी हो नदिया की धारा

कभी तुम बनी हो साहिल हमारा

कभी तुम हो फूलों की खुशबु सुहानी

कभी तुम हो झरनों से गिरता वो पानी

कभी तुम हो बोतल

कभी तुम नशा हो

कभी तुम मज़ा हो

कभी तुम सजा हो

कभी तुम हो सपनों से नींदें उड़ाती

कभी गाके लौरी हो मुझको सुलाती

कभी तो मुझे हो तुम कितना सताती

कभी पास आके फिर मुझको मनाती

कभी तुम हो बोतल

कभी तुम नशा हो

कभी तुम मज़ा हो

कभी तुम सजा हो

कभी जब भी देखो हो शरमा के मुझको

मेरा दिल करे भर लूँ बाहों में तुझको

कभी तुम मुझे हो मुझी से चुराती

कभी आके दिल अपना मुझको दे जाती

कभी तुम हो बोतल

कभी तुम नशा हो

कभी तुम मज़ा हो

कभी तुम सजा हो

कभी जब न होती हो आँखों के आगे

मेरा दिल न जाने कहाँ कहाँ भागे

कभी जब तुम मुझसे हो जाती हो गुस्सा

मेरा दिल करे खुद को मरुँ इकक मुक्का

कभी तुम हो बोतल

कभी तुम नशा हो

कभी तुम मज़ा हो

कभी तुम सजा हो

सताया है तुमको बहुत मैंने फिर भी

कहती हो ये भी तो फितरत है दिल की

कभी तुम हो बोतल

कभी तुम नशा हो

कभी तुम मज़ा हो

कभी तुम सजा हो

जितने भी ग़म सहते रहे

जितने भी ग़म सहते रहे, कलम से सब बहते रहे.

करके बहाना नज़्म का, हम पन्नों से लिपटे रहे.

दर्द क्या है हमने जाना, दूर होकर ऐ खुदा.

अपने ही झूले से हम, सूली बन लटके रहे.

हो गया तबादला इस दर्द से उस दर्द में.

बनके लहू ये आंसू, आँखों से गिरते रहे.

जिसका लिखा है ग़ज़लों में वो नाम बस तेरा ही है.

तुझे इतना ही बस बताने को, हम उम्रभर लिखते रहे.

रात दिन जो था मुझे वो इंतज़ार है तेरा.

किवाड़ों पर आंखें बिछी, सारे दिए बुझते रहे.

ना चैन आये है मुझे न आये है करार ही.

तेरी ही तलाश में अब दर बदर फिरते रहे.

ज़िंदा लाश बन गया है “आशू” उसे ये क्या हुआ.

अब चले जहां भी, वहीँ निशाँ पड़ते रहे.

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