मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के नेतृत्व राजस्थान में भाजपा की सरकार के एक वर्ष पूरा होने पर 13 दिसम्बर को जयपुर में विधानसभा के सामने जनपथ पर जश्न मनाया जा रहा है। इस जश्न में प्रदेशभर के भाजपा कार्यकता जयपुर पहुंचेंगे। क्या यह जश्न इसलिए मनाया जा रहा है कि भाजपा सरकार ने एक वर्ष का कार्यकाल पूरा कर लिया? सरकार हो या कोई संस्था जश्न तभी मनाती है, जब उसके पास उपलब्धियां गिनाने को हो। मुख्यमंत्री राजे ने कई बार सार्वजनिक सभाओं में कहा है कि चुनावों की आचार संहिता के कारण काम करने का अवसर ही नहीं मिला। दिसम्बर 2013 में भाजपा कि सरकार बनने के बाद लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लग गई। लोकसभा चुनाव की आचार संहिता खत्म होने के बाद, सरकार काम शुरू करती इससे पहले ही विधानसभा के चार उपचुनाव की आचार संहिता लागू हो गई। उपचुनाव के बाद 46 स्थानीय निकाय चुनाव की आचार संहिता लागू हो गई यानि खुद सीएम मान रही है कि सरकार ने कोई बड़ा निर्णय नहीं लिया है। जब सरकार के पास एक वर्ष की उपलब्धि है ही नहीं, तो फिर किस बात का जश्न मनाया जा रहा है। सब जानते हैं कि ऐसे जश्नों पर करोड़ों रुपया खर्च होता है। इस राशि को वो लोग देते हैं, जो सत्ता से फायदा उठाते हैं। प्रदेश भर के आरटीओ और डीटीओ को कहा गया है कि वे भाजपा कार्यकर्ताओं को जयपुर लाने और ले जाने के लिए बसें उपलब्ध करवाए। जब डीटीओ निजी ऑपरेटरों से फ्री में बस लेकर भाजपा को देगा तो फिर ट्रांसपोर्ट विभाग में भ्रष्टाचार कैसे मिटेगा? भू-कारोबारी वह अन्य व्यक्ति ही बसों में डीजल भरवाने और कार्यकर्ताओं को भोजन कराने का इंतजाम भी करेंगे। जयपुर के जश्न में अधिक से अधिक कार्यकर्ता भाग लें, इसके लिए भाजपा संगठन के साथ-साथ मंत्रियों और विधायकों को भी जिम्मेदारी दी गई है। भाजपा के जो कार्यकर्ता, पार्षद, विधायक, मंत्री, सांसद आदि बन गए है, उन्हें तो जश्न का मजा आ ही जाएगा, लेकिन आम व्यक्ति यह समझ नहीं पा रहा है आखिर इस जश्न से उसे क्या हांसिल हुआ है? सीएम राजे ने विधानसभा चुनाव के समय चिल्ला-चिल्ला कर कहा कि राजस्थान लोक सेवा आयोग के बिगड़े हालातों को सुधारा जाएगा। इस एक वर्ष की अवधि से आयोग के दो टुकड़े करने के अलावा कोई काम नहीं हुआ। प्रदेशभर के बेरोजगार युवा जिस आयोग की ओर टकटकी लगा के देखते हैं, उस आयोग में आज मात्र तीन सदस्य काम कर रहे हैं। सीएम यह बताए कि आखिर आयोग की दशा सुधारने के लिए कदम क्यों नहीं उठाए गए? अधिकांश परीक्षाएं फर्जीवाड़े की वजह से उलझी पड़ी है, जहां तक कांग्रेस सरकार की कल्याणकारी योजना का सवाल है तो समीक्षा के नाम पर ऐसी योजना को भी बंद कर रखा है। रोडवेज कर्मी से लेकर विद्यार्थीमित्र तक आंदोलन पर उतारू है। आम व्यक्ति को पहले की तरह सरकारी विभागों में रिश्वत देकर ही अपना काम करवाना पड़ रहा है। इस एक वर्ष की अवधि में प्रदेश के आम व्यक्ति के जीवन में कोई बदलाव नहीं आया है। राज्य सरकार निजीकरण के मामले में अपनी पीठ थपथपा सकती है। सरकार ने पीपीपी मॉडल के अंतर्गत जिस प्रकार पाईवेट कंपनियों को सार्वजनिक सेवाओं में शामिल किया है, उससे जहां आम व्यक्ति पर आर्थिक बोझ पड़ेगा, वहीं सरकार को घाटे से राहत मिलेगी। भाजपा सरकार भले ही अपना जश्न मना ले, लेकिन आने वाले दिनों में पीपीपी मॉडल की वजह से आम लेाग को परेशानियां उठानी पड़ेगी। वर्ष 2015 में सरकार कितने निर्णय ले पाएगी ये तो वक्त बताएगा, लेकिन कुछ ही दिनों में पंचायतीराज संस्थाओं के चुनाव की आचार संहिता और फिर मई जून से शेष स्थानीय निकाय संस्थाओं के चुनाव की आचार संहिता लग जाएगी। खाद नहीं मिलने से प्रदेशभर के किसान परेशान हैं। आंदोलनकारियों को सरेआम पीआ जा रहा है।
-(एस.पी.मित्तल) (spmittal.blogspot.in)