” यह वो प्रेम नहीं ”

कंचन पाठक
कंचन पाठक

वेलेंटाइन दिवस पश्चिमी देशों में मनाया जाने वाला एक पारम्परिक अवकाश दिवस है जिसमें प्रेमी अपनी प्रेमिका को फूल, कार्ड, केक, मिठाइयाँ इत्यादि भेजकर प्रेम का इज़हार करते हैं । यूरोपीय दन्तकथाओं के अनुसार सन्त वेलेंटाइन एक पादरी थे जिन्होनें रोमन सम्राट क्लोडिअस दितीय के इस कानून को मानने से इंकार कर दिया था जिसके अनुसार जवान लड़कों को शादी न करने का शाही हुक्म जारी किया गया था । रोमन सम्राट ने संभवतः ऐसा अपनी सेना में सिपाहियों की संख्या बढ़ाने के लिए किया होगा, शायद उसकी ऐसी भावना रही होगी कि शादीशुदा पुरुष समर्पित सिपाही नहीं होते क्यूँकि वे पत्नी और परिवार से दूर लड़ाई के मोर्चे पर जाना पसंद नहीं करते । पादरी वेलेंटाइन चुपचाप अपने चर्च में ऐसे जवान सिपाहियों की शादियाँ करवाया करते थे । जब क्लोडिअस को इस बारे में पता चला तो उसने वेलेंटाइन को फाँसी की सज़ा सुनाई और गिरफ़्तार करवाकर जेलखाने में डलवा दिया । दन्तकथाओं के अनुसार जेलर की पुत्री जो अन्धी थी और जिससे वेलेंटाइन को प्यार हो गया था कि आँखों को पादरी वेलेंटाइन ने ठीक कर दिया और मरने से एक शाम पहले उसके नाम पहला वेलेंटाइन-सन्देश लिखा था । इसके बाद से हीं इस दिवस को प्रेम और प्रेमियों के दिवस के रूप में मनाया जाने लगा ।
यह बात तो समझ में आती है कि यूरोपीय देशों में जहाँ वैवाहिक सम्बन्धों में बंधने की बजाय लोग उन्मुक्त सम्बन्धों में जीने में ज्यादा यकीन रखते हैं, सन्त वेलेंटाइन ने शादियाँ करवाई इस कारण उन्हें फाँसी की सज़ा दी गयी और उनकी याद में वेलेंटाइन-डे मनाया जाने लगा । लेकिन अब जब यही वैलेंटाइन डे भारत आ गया है, जहाँ शादी होना एकदम सामान्य-सी बात है फिर इस देश में वेलेंटाइन डे की इतनी धूम समझ से परे की बात है ।
एक ओर जहाँ समाचारपत्र ‘डेली मेल’ , ‘न्यूयॉर्क पोस्ट’ के मुताबिक पिछले कुछ अरसों से पश्चिम में प्रेम दिवस माने जाने वाले इस दिन पर केक, चॉकलेट्स और गुलाबों की जगह ब्रेकअप, तलाक़ के काग़जात और वकीलों के दर्शन ज्यादा होने लगे हैं वहीँ भारत में इस वैलेंटाइन डे के दिन लोग न केवल प्रेम का इजहार करने बल्कि शादियाँ रचाने में भी काफ़ी दिलचस्पी दिखा रहे हैं ।
भारत जैसे देश में जहाँ विवाह को एक महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है और इसके लिए तिथियाँ, मुहूर्त एवं नक्षत्रों का फेवरेबल होना काफ़ी मायने रखता है वहाँ इस चलन को पश्चिम का अन्धानुसरण नहीं तो और क्या कहा जायेगा ?
ग्रह-नक्षत्र गणना विशेषज्ञ डॉ. रघोत्तम शुक्ल के अनुसार, प्रणय किंवा प्रेम का कारक शुक्र ग्रह होता है, जो सारे विश्व के लिये है । वैलेंटाइन डे अथवा 14 फ़रवरी की उक्त अवधि में इस ग्रह की कोई विशेष स्थिति की सुनिश्चितता नहीं होती है । यह एक द्रुतगामी ग्रह है जिसकी स्थिति बदलती रहती है । हाँ भारतीय संदर्भों में वसन्त ऋतु मादक अवश्य मानी गई है, जिसके महीने चैत्र, बैसाख हैं । इन्हें मधु-माधव भी कहा जाता है । प्रेम के देवता कामदेव हैं, जिनके सहायक वसन्त माने जाते हैं, पर इस ख़ास तिथि को एस्ट्रोलॉजी के हिसाब से कोई ख़ास संयोग नहीं हुआ करता ।
वैलेंटाइन डे का हमारी सभ्यता, संस्कृति से कोई लेना, देना नहीं । प्रेम का कोई दिन नहीं होता …. । अगर इसका कोई ख़ास दिन बनाया जा रहा है तो यह केवल प्रेम का व्यवसायीकरण है । जी हाँ ई-कार्ड्स युग का इजहार-ए-मोहब्बत के छद्म का छिछोरापन । शिकारी मानसिकता वाले पुरुष सालभर जाल बिछाए इस दिन का इंतज़ार करते हैं और आधुनिकता के नाम पर महिलाएँ ख़ुशी-ख़ुशी इस प्रेम के जाल में फँसती हैं । यह पहली नज़र का मासूम-सा प्यार नहीं होता, ना हीं प्रतिबद्धतापूर्ण ईमानदार समर्पण बल्कि मोबाइल फ़ोन, एसएमएस और इंटरनेट का लफ्फाजीभरा रोमांस होता है जिसमें अगला वैलेंटाइन डे आने से पहले हीं शिकार और शिकारी दोनों बदल जाते हैं ।
अंत में इतना हीं कहूँगी कि प्रेम तो एक रूहानी एहसास है, वह सुनहरा रेशमी बंधन है जो ह्रदय को ह्रदय से, मन को मन से और आत्मा को अंतरात्मा से जोड़ता है । वह विकृत व्यवहार जिसमें प्रेम की संजीवनी नहीं बल्कि शोषण के साजिश की बू आती हो, जिसमें ज़ज्बात नहीं केवल जिस्म बोलते हों वह प्यार तो हो हीं नहीं सकता ।
हाँ यह और चाहे जो कुछ भी हो पर “यह वो प्रेम नहीं” ।
कंचन पाठक, नयी दिल्ली

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