क्यों उत्पन्न होता है क्रोध ?

क्रोध उत्पन्न होने के दो कारण हो सकते हैं वे हैं —आंतरिक एवं बाह्य घटनायें—

डॉ. जुगल किशोर गर्ग
डॉ. जुगल किशोर गर्ग

आप किसी व्यक्ति विशेष यथा आपके कार्यालय के सहकर्मी, आपके पड़ोसी, आपके अधिकारी यहाँ तक कि रास्ते चलते राहगीर के व्यवाहर से भी क्रोधित हो सकते हैं | सडक पर यातायात का जाम लगने से या आपकी हवाई जहाज की यात्रा का अचानक निरस्त हो जाने से भी आप क्रोधित हो सकते हैं, कभी कभी आपकी निजी समस्याओं की चिंताओं अथवा अनहोनी, अनचाही भूत काल की घटनाओं को याद करने से भी क्रोध उत्पन्न हो सकता है |

जब आप क्रोधित होते हैं तो उसी क्षण आपकी सोच अतार्किक एवं अत्याधिक नाटकीय हो जाती है, आप उत्तेजित होकर अपना सयंम खो देते हैं | इस समय एकाएक आपके मुख से निकल पड़ता है “हाय यह क्या हो गया, हर चीज बर्बाद हो गई, सब कुछ खत्म” इस वक्त कुछ क्षणों के लिये लम्बी साँस ले और तनिक शांत होकर अपनी सोच को तर्कयुक्त बनायें और अपने आप से कहें की जो कुछ हुआ वो अफसोसजनक है किन्तु जीवन में कभीकभार ऐसा हो जाता है, किन्तु इस घटना मात्र से मेरे जीवन में सफलता अर्जन के सभी मार्ग बंद तो नहीं हो जाते हैं , में अन्य रास्ते खोज लूगाँ |

क्यों होते हैं कुछ स्त्री-पुरुष ज्यादा क्रोधी ?

मनोवैज्ञानिक जैरी डेफनबेकर के अनुसार ” सच में ही कुछ लोग अन्य लोगों की तुलना में कुछ ज्यादा ही गर्म दिमाग के होते हैं, इन्हें जल्दी गुस्सा आ जाता है और उन्हें एक औसत व्यक्ति से अधिक तेज गुस्सा आता है । कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अपने गुस्से को बाहर शोर मचा कर प्रकट नहीं करते किन्तु अन्दर ही अन्दर वे बहुत चिढचिढेऔरगुमसुम से रहते हैं ।आसानी से नाराज होने वाले कुछ लोग हमेशा बकझक नहीं करते, न ही बात बात पर हाय हाय करते रहते हैं, वे चीजे भी नहीं फेंकते, किन्तु ऐसे लोग स्वयं को समाज से दूर कर लेते हैं और अपने आपमें सिमट जाते हैं और वें शारीरिक रूप से बीमार तक भी हो ज़ाते हैं।

ऐसे लोग जो जरा जरा सी बात पर गुस्सा हो जाते हैं, उनमें सहनशीलता की कमी होती है , ऐसे लोग अपने जीवन में परिस्थितियों को सहजता से नहीं ले पाते हैं ।ऐसे लोग विपरीत परिस्थितियों में असह्जता या स्वयं के साथ अन्याय हुआ महसूस करते हैं और एकदम क्रोधित हो जाते हैं |

सवाल उत्पन्न होता कि लोग ऐसा व्यवाहर क्यों करते है? इसके कई कारण हो सकते हैं ।उनमें से एक कारण आनुवांशिक या शरीर संरचना की वजह से भी हो सकता है ।इसका सबूत वे बच्चे हैं जो पैदायशी रूप से चिढचिढे होते हैं । क्रोधी व्यवाहर की दूसरी वजह सामाजिक हो सकती है। शोध में यह भी पता चला है कि पारिवारिक पृष्ठभूमि भी गुस्से में भूमिका अदा करती है।अकसर वे लोग जो कि आसानी से क्रोधित होते हैं वे ऐसे परिवार के लोग होते हैं जिनके परिवार के लोग अवरुध्द मानसिकता वाले, अक्सर परिस्थितियों को उलझाने वाले, और भावनात्मक सम्वाद में अनाडी या असक्षम हों ।

क्रोध को साधारणतया अक्सर नकारात्मक माना जाता है, हमें सिखाया जाता है कि अपनी हताशा, व्यग्रता और अन्य भाव प्रकट करना तो सही है किन्तु गुस्सा जताना ठीक नहीं ।परिणाम स्वरूप हम सीख ही नहीं पाते कि कैसे सही तरीके से गुस्से को लिया जाए और इस गुस्से को कैसे सही रचनात्मक दिशा दी जाए।

क्या आप भी बहुत क्रोधित प्रवर्ती के हैं?

हम अपने गुस्से की तीव्रता को कुछ फिजियोलॉजिकल टैस्ट की मदद से माप सकते हैं।जैसे कि आप गुस्से के प्रति कितने सम्वेदनशील हैं, और आप अपने गुस्से को कैसे संभालते हैं ?और अगर आप को बात बात पर क्रोध आने की समस्या है तो आप इस समस्या के समाधान के लिये इसकी तह तक जाकर मनन करना चाहिए |अगर आप क्रोध में स्वयं को आपे से बाहर पाते हैं तो आप को किसी अच्छे मनोवैज्ञानिक की सहायता लेनी चाहिए | मनोवैज्ञानिक ही आपको बतलायेगा कि आप इस भाव से और अच्छे तरीके से कैसे निबटा सकते है ।यहां यह पहचानना आवश्यक हो जाता है कि गुस्से की कितनी मात्रा सहज है और इसकी सीमा क्या हो | हर बात पर आपे से बाहर हो जाना बुध्दिमत्ता नहीं है ।
क्रोध को व्यक्त करने के तरीके—-

क्रोध को व्यक्त करने का प्राकृतिक तरीका है आक्रामक होना | किसी खतरे की प्रतिक्रिया में क्रोध एक नितान्त प्राकृतिक भाव है जो कि हमें अपनी शक्ति, आक्रामकता, अनुभूति और व्यवहार को अभिव्यक्त करने को प्रेरित करता है, जिससे हमें स्वयं पर होने वाले आक्रमण का सामना करने के लिये तैयार हो जायें ।एक निश्चित मात्रा में क्रोध हमारे अस्तित्व की रक्षा के लिये आवश्यक भी है |

नि:संदेह क्रोध को दबाया जा सकता है अथवा क्रोध की तीव्रता को अन्य दिशा मे बदला भी जा सकता है।ऐसा तब संभव है जब आप इस बारे में सोचना छोड दें और अपनी ऊर्जा किसी अन्य सकारात्मक कार्य में लगायें।यहां उद्देश्य यह है कि अपने क्रोध को दबा कर या छिपा कर इसे सकारात्मक व्यवहार में बदल दिया जाए।किन्तु इस तरह की प्रतिक्रिया में खतरा इस बात का है कि अगर आप इसे बाहर सकारात्मक या नकारात्मक तरीके से व्यक्त न कर सके तो यह छिपा क्रोध आपके अन्दर जाकर आप में हताशा, तनाव उत्पन्न कर उच्च रक्तचाप की वजह बन सकता है।

अभिव्यक्त न किया जा सका क्रोध अन्य कई समस्याओं को जन्म दे सकता है।यह किसी और तरीके से बाहर आएगा जैसे कि अक्रिय और सक्रिय आक्रामक व्यवहार या असंतुलित व हिंसक मानसिकता वाले व्यक्तित्व के रूप में।अपने क्रोध को जताने का सबसे स्वस्थ तरीका है–आक्रामक हुए बिना अपने क्रोध के भाव को दृढता पूर्वक अभिव्यक्त कर देना | आप अपनी आवश्यकताएं और अपनी पसंद या नापसंद को बिना किसी को आहत किये बतला दें या व्यक्त कर दें |

दृढ होने का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि आप किसी पर बेजा दबाव डालें या अपनी मांगें अन्य पर जबरदस्ती थोपें, इसका अर्थ है कि आप अपना और दूसरों का सम्मान करना सीखें। क्रोध को व्यक्त करने का सबसे उत्तम और दोषमुक्त तरीका है अपने अंतर्मन को शांत रखना , इससे आप अपने सांसारिक व्यवहार के साथ ही अपने आंतरिक व्यवाहर को नियंत्रित रख पायगें और आप शांत चित्त रहेगें एवं आपकी क्रोध की भावना धीमे धीमे लुप्त हो जायगी , आपके शांत चित्त रहने से आपके ह्रदय की गति भी सामन्य रहेगी एवं आप स्वस्थ और खुश भी रहगें |

डा. जे. के. गर्ग

सन्दर्भ—–विकीपीडिया, हिन्दी नेस्ट.कॉम,मेरी डायरी के पन्ने, विभिन्न संतों एवं महापुरूषों के प्रव्रचन आदि

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