हिन्दी पत्रकारिता में अन्य भाषाओं के शब्दों का समावेश

renu sharmaहिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में पण्डित जुगल किशोर का अतुल्य योगदान रहा हैं। पत्रकारिता की शुरूआत मानव सभ्यता के विकास के साथ ही हो गयी थी लेकिन पहले पत्रकार होने का श्रेय देवऋर्षि नारद को जाता है । नारदजी का पत्रकार बनना भी एक विचित्र संयोग था एक बार दक्षप्रजापति ने नारदजी को श्राप दिया की वो एक स्थान पर दो घडी से ज्यादा नहीं ठहर सकेगें अतः नारदजी एक स्थान पर मात्र दो घडी से ज्यादा नहीं रूक सकते थे और इसी कारण वह एक लोक से दूसरे लोक मे भ्रमण करते रहते थे , एक लोक से दूसरे लोक में जाते तो वहा घटीत होने वाली घटनाओं के बारे में भी बताते रहते थे इस प्रकार नारदजी के द्वारा एक लोक से दूसरे लोक के समाचारों का आदान-प्रदान भी हो जाता था इसलिये नारदजी को एक पत्रकार कहा जाने लगा और नारद को पत्रकारिता का जनक माना गया।
ज्ञात इतिहास में 30 मई 1826 को जुगलजी के साप्ताहिक ”उदन्तमार्तण्ड“ से हिन्दी पत्रकारिता का प्रारम्भ हुआ । पत्रकारिता के प्रारम्भ से वर्तमान समय तक पत्रकारिता के क्षेत्र में बहुत सारे उतार-चढाव आये हैं। वर्तमान समय में लोगों का रूझान अंगेजी की तरफ बढ रहा हैं विशेष रूप से कारपोरेट जगत के लोग, प्रशासनिक अधिकारी इत्यादी हिन्दी की तुलना में अंग्रेजी भाषा के समाचारपत्रों में छपी खबर को ज्यादा विश्वसनिय मानते हैं लेकिन फिर भी सारी चुनौतियों और परेशानियों का सामना करते हुए हिन्दी पत्रकारिता ने अपनी पहचान बनाये रखी और वर्तमान समय में भी अपनी प्रतिष्ठिता बनाये हुए हैं इसमें हमारे महान पत्रकारों , संपादकों का अतुल्य योगदान रहा हैं।
हिन्दी पत्रकारिता का इतिहास 200 वर्षो से भी कम पुराना हैं इन दौरान शासक वर्ग की भाषा अंग्रेजी, फारसी और ऊर्दू रहीं थी जिसके कारण इन भाषाओं के अनेको शब्द हिन्दी भाषा में मिल गये। इसके अलावा नई प्रौद्योगिकी, इलेक्टाªेनिक उपकरण, शहरीकरण, फिल्म, विज्ञापन, स्थानीय बोली के कारण भी हमारी हिन्दी भाषा प्रभावित हो रही हैं। सामान्य बोलचाल के कुछ शब्द जैसे-मोबाईल, मिसकॉल, टॉकटाइम, मेल, एस.एम.एस., फ्रिज, वाशिंग मशीन, जैसे शब्दों का अंग्रेजी में प्रयोग करते-करते आम व्यक्ति इन शब्दों से जुड़ गया हैं अब यदी इन शब्दों का कोई हिन्दी शब्द उन्हे बताया जायेगा तो वो लोगों को समझ में नही आयेगा। अन्य भाषाओं के प्रयोग से हिन्दी भाषा में सुस्पष्टता आती हैं और वह अधिक अच्छी बन जाती हैं।
सामान्य बोलचाल में हम हिन्दी के स्थान पर अन्य भाषाओं अंग्रेजी, पारसी, ऊर्दू, अरबी के शब्दों का प्रयोग कर सकते हैं लेकिन अन्य भाषाओं के शब्दों का हिन्दी लेखन कार्य में प्रयोग कम करना चाहिये। काल और स्थान के अनुसार किसी भी भाषा में नये शब्दों का जुड़ना अनिवार्य हैं अन्यथा उसमेें शब्दों की अभिव्यक्ति नहीं होगी अंग्रेजी भाषा की समृद्वता का कारण यही हैं कि उसने हर भाषा को अपने में समाहित किया हैं। मध्यकाल में मुगल प्रभाव के कारण फारसी के लगभग 3500 शब्द , अरबी के 2500 शब्द और तुर्की के 125 शब्द हिन्दी में शामिल हो गये और समय के साथ हिन्दी भाषा में ही समाहित हो गये।
इतिहास गवाह हैं हिन्दी पत्रकारिता ने समय के अनुसार अपने को ढाला हैं और विभिन्न भाषा के प्रचलित शब्दों को अपनाया हैं। किसी भी भाषा की समृद्वता का मापदण्ड उसका शब्द सामर्थ्य होता हैं विचारांे की अभिव्यक्ति में शब्दों की कमी नही पडें इसके लिये उसमें हमेशा शब्दों का विकास होना चाहिये इसके लिये शब्दों का निर्माण वह खुद करे या अन्य भाषाओं से अपनाय। हिन्दी भाषा में क्लिष्ट शब्दों के स्थान पर ऐसे शब्दों को अपनाया जाये जो सरल होने के साथ सामान्य बोलचाल में प्रयुक्त होते हो।
न्यूयॉर्क में विश्व भाषाओं विभाग द्वारा किये गये शोध के अनुसार अग्रेजी और चीनी भाषा के पश्चात हिन्दी भाषा सबसे जयादा बोली जाने वाली भाषाओं में शामिल हैं।लेकिन अफसोस की बात हैं हमारे देश के अधिकतर निजी कार्यालयों में हिन्दी की अवहेलना कर अंग्रेजी भाषा में कार्य करने में अपनी शान समझते हैं। लेकिन 1893 में संयुक्त राष्ट्र संघ में स्वामी विवेकानन्द ने हिन्दी भाषा में प्रवचन देकर विश्व में हिन्दी की नयी पहचान बनायी थी और वर्तमान समय में हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी अन्तराष्ट्रीय मंच पर हिन्दी में भाषण देकर हिन्दी भाषा को विश्व स्तर पर पहुंचा रहे हैं।
हिन्दी पत्रकारिता के इस लेख का संाराक्ष यह हैं कि नयी प्रौद्योगिकी और समय के साथ चलने के लिये हिन्दी भाषा में अन्य भाषा के शब्दों का प्रचलन अभिशाप नहीं हो सकता। वक्त के साथ बदलाव जरूरी हैं क्योकि ऐसा नही करने से हम विश्व परिदृश्य में पिछड़ जायेगे। हिन्दी में अन्य भाषा के शब्दों का प्रचलन एक आर्शीवाद की तरह हैं यहंा हम हिन्दी का अपमान नहीं कर रहे है बल्कि हिन्दी भाषा को विश्व स्तर पर लाने का प्रयास कर रहे हैं।नयी सूचना प्रौद्योगिकी ने विश्व का वैश्विकरण कर विश्व को एक गंाव बना दिया हैं जहंा विभिन्न देशों के विभिन्न भाषा भाषी लोगों का मिलना होता रहता हैं जिससे संास्कृतिक आदान-प्रदान होता रहता हैं। ऐसे में भाषा का प्रभावित होना स्वाभाविक हैं इसे हमें अभिशाप नहीं समझकर आर्शीवाद समझना चाहिये अनेकता में एकता वाले हमारे देश की राष्ट्रीय भाषा में अन्य भाषा के प्रचलित शब्दों का मिलना एक आर्शीवाद हैं जिससे हमारी हिन्दी पत्रकारिता को नया आयाम दिया हैं।
लेखिका – रेणु शर्मा
राजस्थान सचिव मीडिया एक्शन फोरम

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