मूल सिन्धी : देवी नागरानी
मुरकी थी पवाँ
मुहिंजे सोच जे जंगल में
शरीक आहे मूँ साणु
सञे जहान जो शोर
घणन जा ग़म, घणन जूं उदासियूं
मुहिंजे घट जे सुनसान आकाश में
ककड़न जा ज़र्रा बणिजी
हवाउन जे परन ते
पाहिंजों रुख़ प्या मटाइन
कडहिं वराए वाग वञन
पहाड़न जूं चोटियूं चुमण
कडहिं, सावण जी सावक सां वेड़िहियल
उन्हीअ जंगल माँ बाहिर निकरी
हिकु पल तरसी
सोच जे जंगल माँ बाहिर निकरी
उहे ककड़ पाण में भाकी पाए
आबशार थी प्या नचन
ऐं उन्हीअ पल
मुहिंजीअ सोच जो परदो फ़ाश थ्यो पवे
माँ माक जे फुड़े ज्यां
सवाक ते सुम्हियल
मथे आकाश में,
हुन उदास चंड खे डिसी
पाहिंजे दर्द जी परछाइयुन माँ
बाहिर निकरी मुरकी थी पवाँ !
पता: ९-डी॰ कॉर्नर व्यू सोसाइटी, १५/ ३३ रोड, बांद्रा , मुंबई ४०००५० फ़ोन: 9987938358
हिन्दी अनुवाद: खीमन मूलाणी
मुस्करा देती हूँ
मेरी सोच के जंगल में
सिम्मिलित हैं, मेरे साथ
सारे संसार का शोर
कईयों के दुख, कईयों की उदासियाँ
मेरे घट के सुनसान आकाश में
बादलों के ज़र्रे बनकर
हवाओं के पंखों पर
अपनी दिशा बदलते रहते हैं
कभी लौट जाते हैं
पहाड़ों के शिखरों को चूमने के लिए
कभी, सावन की हरियाली से लिपटे
उसी जंगल की भूमि पर
एक पल रुककर
सोच के जंगल से बाहर निकलकर
वे बादल खुद को गले लगाकर
प्रपात बनकर नाचते रहते हैं
और उसी क्षण
मेरी सोच का परदा फ़ाश हो जाता है
मैं शबनम की बूंद की तरह
हरियाली पर लेटी
ऊपर आकाश में
देखकर उस उदास चाँद को
अपने दर्द की परछाइयों में से
बाहर निकल कर मुस्करा देती हूँ।