छोटे साहब की शान में …….
देख लो अभी कुछ कुछ बढ़ने लगा हूं
कदम दो कदम मैं भी चढ़ने लगा हूं
चमक भले ही हो जुगनू जितनी हमारी
बन के तूफान अंधेरों से लड़ने लगा हूं
तकलीफों का खौफ न हमको दिखाओ
नसीबा में अपने सितारे जड़ने लगा हूं
हर तरफ देख के चालाकियों का जमघट
मैं भी वक्त पे नये फसाने गढ़ने लगा हूं
रूकावट बनेगा कौन मेरी रहगुजर का
सबकी निगाहों को अब पढ़ने लगा हूं…….
आशा गुप्ता ‘आशु’
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