बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय

आज शिक्षक दिवस है।शिक्षक दिवस भारत के प्रथम उपराष्टपति 1952-1962 तथा द्वितीय राष्टपति 13मई,1962-13मई,1967 तक रहे डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्म दिन के अवसर पर मनाया जाता है।डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5सितम्बर,1888 को तिरूट्टनी,तमिलनाडु में हुआ था।आपकी पत्नी का नाम शिवकामु था।अपने पीछे 1पुत्र तथा 5पुत्रियां आप छोड़ कर गये थे।डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक प्रखर वक्ता तथा आदर्श शिक्षक थे।भारतीय सभ्यता तथा संस्कृति को अंगीकार किये दार्शनिक स्वभाव के आस्थावान हिन्दू विचारक डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने 40वर्ष तक शिक्षण कार्य किया।

डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने ब्रिटेन के एडिनबरा विश्वविद्यालय में दिये गये अपने व्याख्यान में कहा था कि-‘‘मानव को एक होना चाहिए।मानव इतिहास का सम्पूर्ण लक्ष्य मानव जाति की मुक्ति है।अब देशों की नीतियों का आधार विश्व शांति की स्थापना का प्रयत्न करना हो।‘‘ वास्तव में डाॅ0सर्वपल्ली राधाकृष्णन वसुघैव कुटुम्बकम की अवधारणा को मानने वाले थे।पूरे विश्व को एक इकाई के रूप में रखकर शैक्षिक प्रबंधन के पक्षधर डॉ०राधाकृष्णन अपने ओजस्वी एवं बुद्धिमता पूर्ण व्याख्यानों से छात्रों के बीच अत्यन्त लोकप्रिय थे।शिक्षण कार्य में अपनी जबरदस्त पकड़ रखने के कारण दर्शन शास्त्र जैसे गंभीर विषय को भी अपनी शिक्षण शैली से वो रोचकता पैदा करके सरलतम रूप में छात्रों को समझाते-पढ़ाते थे।शिक्षण काल में छात्रों के मध्य कुछ रोचक प्रस्तुतियां,प्रेरक प्रसंग,हास्य-व्यंग्य की कहानियां प्रस्तुत करके छात्रों में सदैव शिक्षा के प्रति अभिरूचि बनाये रखने में कामयाब रहते थे- डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन।

डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन बहुमुखी प्रतिभा व व्यक्तित्व के धनी एक प्रसिद्ध विद्वान,शिक्षक,प्रखर वक्ता,कुशल प्रशासक,राजनयिक,देश-भक्त,दार्शनिक तथा शिक्षा-शास्त्री थे।शिक्षा को मानव व समाज का सबसे बड़ा आधार मानने वाले डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन का शैक्षिक जगत में अविस्मरणीय व अतुलनीय यांगदान रहा है।जीवन के उत्तरार्द्ध में भी उच्च पदों पर रहने के दौरान शैक्षिक क्षेत्र में आपका योगदान सदैव बना रहा।डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन सामाजिक बुराइयों को हटाने के लिए शिक्षा को ही कारगर मानते थे।मात्र सूचना व जानकारी को ही शिक्षा न मानते हुए डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन व्यक्ति के बौद्धिक,आध्यात्मिक,सामाजिक रूप से विकास को भी शिक्षा का अभिन्न अंग मानते थे।प्रत्येक नागरिक के मन में लोकतांत्रिक भावना व सामाजिक मूल्यों की स्थापना शिक्षा का मुख्य व महत्वपूर्ण कार्य मानते थे।डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन के अनुसार-शिक्षा का लक्ष्य है ज्ञान के प्रति समर्पण की भावना और निरन्तर सीखते रहने की प्रवृत्ति।वह एक ऐसी प्रक्रिया है जो व्यक्ति को ज्ञान व कौशल दोनों प्रदान करती है तथा इनका जीवन में उपयोग करने का मार्ग प्रशस्त करती है।करूणा,प्रेम और श्रेष्ठ परम्पराओं का विकास भी शिक्षा का उद्देश्य हैं।

डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन का मानना था कि शिक्षक उन्हीं लोगों को बनना चाहिए जो सर्वाधिक योग्य व बुद्धिमान हों।उनका स्पष्ट कहना था कि जब तक शिक्षक शिक्षा के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध नहीं होता है और शिक्षा को एक मिशन नहीं मानता है,तब तक अच्छी शिक्षा की कल्पना नहीं की जा सकती है।शिक्षक को छात्रों को सिर्फ पढ़ाकर संतुष्ट नहीं होना चाहिए,शिक्षकों को अपने छात्रों का आदर व स्नेह भी अर्जित करना चाहिए।सिर्फ शिक्षक बन जाने से सम्मान नहीं होता,सम्मान अर्जित करना महत्वपूर्ण है-यह कहना था डॉ०सर्वपल्ली राधाकृष्णन का।

भारत के द्वितीय राष्ट्रपति, शैक्षिक दार्शनिक डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्मदिवस, 5 सितंबर के दिन शिक्षक दिवस के रूप में सम्पूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाता है। ऐसा ही कहा गया है की गुरु के बिना ज्ञान प्राप्त नहीं होता-
गुरु बिनु ज्ञान कहाँ जग माही
हिन्दू पंचांग के अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन को ‘गुरु दिवस’ के रूप में स्वीकार करते हैं। विश्व के विभिन्न देश अलग-अलग तारीख़ों में ‘शिक्षक दिवस’ को मानते हैं। बहुत सारे कवियों, गद्यकारों ने कितने ही पन्ने गुरु की महिमा में रंग डाले हैं।
शिक्षक दिवस

गुरु, शिक्षक, आचार्य, अध्यापक या टीचर ये सभी शब्द एक ऐसे व्यक्ति को व्याख्यातित करते हैं जो हमें ज्ञान देता है, सिखाता है। इन्हीं शिक्षको को धन्यवाद देने के लिए एक दिन है जो की 5 सितंबर को ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में जाना जाता है। सिर्फ़ धन को दे कर ही शिक्षा हासिल नहीं होती बल्कि अपने गुरु के प्रति आदर, सम्मान और विश्वास, ज्ञानार्जन में बहुत सहायक होता है।[1]
महत्त्व

‘शिक्षक दिवस’ कहने-सुनने में तो बहुत अच्छा प्रतीत होता है। लेकिन क्या आप इसके महत्त्व को समझते हैं। शिक्षक दिवस का मतलब साल में एक दिन बच्चों के द्वारा अपने शिक्षक को भेंट में दिया गया एक गुलाब का फूल या ‍कोई भी उपहार नहीं है और यह शिक्षक दिवस मनाने का सही तरीका भी नहीं है।
आप अगर शिक्षक दिवस का सही महत्त्व समझना चाहते है तो सर्वप्रथम आप हमेशा इस बात को ध्यान में रखें कि आप एक छात्र हैं, और ‍उम्र में अपने शिक्षक से काफ़ी छोटे है। और फिर हमारे संस्कार भी तो हमें यही सिखाते है कि हमें अपने से बड़ों का आदर करना चाहिए। हमको अपने गुरु का आदर-सत्कार करना चाहिए। हमें अपने गुरु की बात को ध्यान से सुनना और समझना चाहिए। अगर आपने अपने क्रोध, ईर्ष्या को त्याग कर अपने अंदर संयम के बीज बोएं तो निश्‍चित ही आपका व्यवहार आपको बहुत ऊँचाइयों तक ले जाएगा। और तभी हमारा शिक्षक दिवस मनाने का महत्त्व भी सार्थक होगा।
कबीर के शब्दों में

संत कबीर जी के शब्दों से भारतीय संस्कृति में गुरु के उच्च स्थान की झलक मिलती है। भारतीय बच्चे प्राचीन काल से ही आचार्य देवो भवः का बोध-वाक्य सुनकर ही बड़े होते हैं। माता पिता के नाम के कुल की व्यवस्था तो सारे विश्व के मातृ या पितृ सत्तात्मक समाजों में चलती है परन्तु गुरुकुल का विधान भारतीय संस्कृति की अनूठी विशेषता है।
शिक्षक दिवस के इस शुभ अवसर पर उन शिक्षकों को हिंद-युग्म का शत शत प्रणाम जिनकी प्रेरणा और प्रयत्नों की वज़ह से आज हम इस योग्य हुए कि मनुष्य बनने का प्रयास कर सकें। [3] कबीर जी ने गुरु और शिष्य के लिए एक दोहा कहा है कि-
गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागू पाय
बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।[4]

-संतोष गंगेले पत्रकार

 

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