उत्साह भरा जीवन

दौलत खेमानी
दौलत खेमानी
एक चौराहे पर तीन यात्री मिले। तीनों के कंधों पर दो-दो झोले आगे-पीछे लटके हुए थे। अपनी लंबी यात्रा से तीनों थके हुए थे, लेकिन एक यात्री के चेहरे पर प्रसन्नता और उत्साह का भाव था। दूसरा यात्री श्रम से थका हुआ तो था, लेकिन निराश या क्लांत नहीं था, परन्तु तीसरा बेहद मुरझाया हुआ और दुखी दिख रहा था। तीनों एक पेड़ की छाया में बैठ कर सुस्ताने लगे।

बातचीत होने लगी, कौन कहाँ से आ रहा है, कहाँ जा रहा है, किसकी झोली में क्या रखा है! एक यात्री ने बताया कि उसने अपनी पीछे की झोली में कुटुम्बियों और उपकारी मित्रों की भलाइयां भर रखी थीं और सामने की झोली में उन लोगों की बुराइयाँ रखी थीं। दूसरे ने आगे के झोले में अपने मित्रों और हितैषियों की अच्छाईयां लटका रखी थीं और उनकी बुराइयों की थैली पीछे लटका रखी थी, जिन्हें देख-देखकर अपनी सराहना करता और खुश होता।

फिर तीसरे यात्री से उन दोनों ने पूछा, तुम्हारे झोलों में क्या भरा है? आगे का झोला तो काफी भारी लगता है, पीछे का झोला हल्का है। उसने बताया कि उसने भी अच्छाइयों की थैली आगे और बुराइयों की थैली पीछे लटका रखी है लेकिन पीछे की थैली में एक छेद है, इसलिए बुराइयाँ टिकती नहीं, एक-एक कर गिर जाती हैं और पीछे का वज़न हल्का हो जाता है। जिस यात्री ने आगे के झोले में अच्छाइयाँ और पीछे के झोले में बुराइयाँ भर रखी थीं, वह प्रसन्न था क्योंकि चलते समय उसकी नजर हमेशा अच्छाइयों पर ही पड़ती थी और बुराइयों को वह भुला रहता था, जिसके थैले में छेद था वह उत्साह से भी भरा रहता था, क्योंकि चलते समय वह आगे लटकी अच्छाइयों को तो देखता ही था, उस पर बुराइयों का वज़न भी कम रहता था। वे रास्ते में धीरे-धीरे गिर जाती थीं लेकिन जिसने बुराइयों की थैली आगे और अच्छाइयों की थैली पीछे लटका रखी थी, वह हमेशा थका हुआ और निराश रहता था। यही जीवन यात्रा का सार तत्व है।

-दौलत खेमानी

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