AMU के मामले में केंद्र सरकार की बदनियती के बाद शिक्षाविद मो.आज़म खां का सख्त रद्देअमल

aamir ansari– आमिर अंसारी – देश की सियासत में हमेशा अपने मज़बूत बयानों के लिए पहचाने जाने वाले मुस्लिम नेता मो.आज़म खां साहब ने अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अक़लियती किरदार की लड़ाई खुद भी लड़ी है और अपनी जवानी के खूबसूरत दिन ओ रात जेलों में गुज़ारे हैं उनका दर्द इसलिए भी जायज़ हैं चूंकि उन्हें इस मामले की जानकारी किसी और से ज़्यादा है ! शायद इसिलए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की तबाही की ज़िम्मेदारी तय करते हुए मो.आज़म खां हमेशा कांग्रेस को मूरिस-ए-इलज़ाम ठहराते रहे हैं ! इसी प्रकार अपने राजनैतिक गुरु मो.आज़म खां साहब की राजनैतिक तथा वैचारिक शिक्षा का ही असर था जिसके चलते कांग्रेस नीत UPA 2 द्वारा जब भारतीय शैक्षणिक संस्थानों में विदेशी हस्तक्षेप को हरी झंडी दिखाए जाने की तैयारी की जा रही थी तब सांसद चौधरी मुनव्वर सलीम ने इस कदम का पुरज़ोर विरोध करते हुए संसद में कहा था कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी हमारा तालीमी,तहज़ीबी और तरबियती इदारा है इसके स्वरूप मेckۡƦ6@$सी भी प्रकार का बदलाव हम स्वीकार नहीं करेंगे ! सलीम साहब ने इसी तक़रीर में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के बचाव के साथ-साथ बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के बचाव में अपनी तार्किक और देश भक्ति से लबरेज़ तेजस्वी विचारों से सदन को संबोधित किया था ! अलीगढ़ तहरीक के चलते मो. आज़म खां साहब को जेल की काल कोठरी में डालने का कार्य भी कांग्रेस सरकार ने ही किया था ! लेकिन जब मुस्लिम शब्द से वैचारिक दुश्मनी रखने वाली जमात ने राजसिंहासन संभाला तब जो कुछ ख़ास सवाल मुस्लिम अवाम के सामने दिखाई दे रहे थे उनमे अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का एजुकेशनल संस्थान भी सबके ज़हन में था ! आखिर सरकार के दुसरे साल के सफर में जब पिछली सरकार की क़ानूनी लड़ाई आगे बढ़ाने की बात आयी तब सरकार के वकील ने जो ज़बानी बातें कहीं उस बहस से सरकार की नियत सामने आ गयी ! जो बात सरकार के वकील ने कही है उसी बहस पर माननीय न्यायधीशों ने सरकार से शपथ पत्र माँगा है ! यहीं से पूरे देश में सरकार की मुस्लिम यूनिवर्सिटी से विरोध की बहस चल पड़ी और इस बहस में न केवल अलीगढ बल्कि देश के अन्य मुस्लिम शैक्षणिक संस्थानों पर भी सरकार के संभावित हमले की चर्चा होने लगी !
इस बहस में भाग लेते हुए मो.अली जौहर यूनिवर्सिटी के प्रो.चांसलर मो.आज़म खां साहब ने एक सवाल के जवाब में कहा कि जिस विश्वविद्यालय को हमने एक आंदोलन के माध्यम से कमज़ोर तबकों की शिक्षा के लिए बनाया है अगर उसके उद्देश्यों पर कोई सरकार नाजायज़ क़ब्ज़े का प्रयास या हस्तक्षेप की कोशिश करेगी तब मैं अपने हाथों से यूनिवर्सिटी पर बुलडोज़र चलाने पर मजबूर हो जाऊंगा ! मो.आज़म खां साहब ने अपने वैचारिक उद्बोधन में सरकार को समझाईश देते हुए कहा कि सरकारों के साथ संविधान नहीं बदला करते और भारत के संविधान में अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थाओं का बनाने और चलाने का स्पष्ट प्रावधान है!
मो.आज़म खां साहब ने अलीगढ़ के अक़लियती किरदार को बचाने के लिए केंद्र सरकार को मशवरा देते हुए कहा कि अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी एक ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संस्था है सरकार को उसके मामले में तंगदिली नहीं दिखाना चाहिए ! उन्होंने इस बात पर अफ़सोस का इज़हार किया कि 125 करोड़ लोगों की आबादी वाले भारत को शिक्षित करने की ज़िम्मेदारी सरकार ने एक ऐसे शिक्षामंत्री को दी है जो विश्विद्यालीन शिक्षा से महरूम रहा है ! और अपनी डिग्री को लेकर स्वयं ही सवाल बनी हुईं हैं !
मो.आज़म खां साहब ने केंद्र सरकार द्वारा पिछले वर्ष के बजट में शिक्षा बजट को कम किया जाना भी दुर्भाग्य पूर्ण बताते हुए कहा कि शिक्षित भारत ही स्वलम्बी और समृद्ध भारत बन सकता है ! आज़म खां साहब ने कहा कि कमज़ोर तबकों के साथ हवाई अड्डों से लेकर शिक्षण संस्थानों तक होने वाला भेदभाव देश के विकास और सम्मान को कम कर रहा है ! देश की सरकार को इस संदर्भ में उदारवादी होकर न्याय संगत कार्य करना चाहिए !
अल्पसंख्यकों के लिए बनाये गए एक आयोग के मुखिया जस्टिस सच्चर अपनी रिपोर्ट में फरमाते हैं कि हिन्दुस्तान में मुसलमानों की तालीमी हालत दलितों से बदतर है वहीं ऐसा तारीखी संस्थान जिसकी संग-ए-बुनियाद 1875 में मदरसे के रूप में मरहूम सर सैय्यद अहमद खां साहब ने रखी थी जिससे साबित होता है कि अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की बुनियाद तालीम से पिछड़ती हुयी मुस्लिम आबादी के लिए नई राहें बनाने के उद्देश्य से रखी गयी थी !
अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का तालीमी सफर हिन्दुस्तानी आंदोलन का संग-ए-बुनियाद रहा है ! जंग-ए-आज़ादी में जब महात्मा गांधी ने फिरंगी से नफरत का इज़हार अंग्रेज़ी लिबास की होली जला कर किया तब कुछ शैक्षणिक संस्थानों का आचरण बापू के ऐलान से असहमति दिखाता नज़र आया लेकिन जब मुजाहिद-ए-आज़ादी मौलाना मो.अली जौहर बापू को लेकर अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी पहुंचे तब तारीख़ लिखती है कि अंग्रेज़ी लिबास का पहाड़ बन गया था !
इस तरह भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का भावनात्मक रौल अनेक किरदारों और फैसलों के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन का सुनहरा इतिहास है ! आज लगभग 96 साल बाद भी अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के उद्देश्यों पर हमला करने का प्रयास हो रहा है ! तब इसे आज़ाद हिन्दुस्तान चलने वालों की तंगनज़री की इंतहा और हिन्दुस्तानी मुसलमानों के लिए बायस-ए-तकलीफ के अलावा और कोई नाम नहीं दिया जा सकता लेकिन इस बार अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की अक़लियती तारीख़ को बचाने के लिए जिस सियासी जंग का एलान हिन्दुस्तान की सेक्युलर जमातों ने एक मुहाज़ बनाकर किया है उससे यह साबित होता है कि मोहनदास करम चंद गांधी के हिन्दुस्तान में अभी गांधीवादी विचार कमज़ोर तो हुआ है लेकिन मिटा नहीं है !
देश की शिक्षा मंत्री का अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी पर वैचारिक हमला आने वाले हिन्दुस्तान की सियासी सोच का रास्ता बनेगा और एक बार फिर अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी गांधी और गोडसे की विचारधारा के तबसिरे का माध्यम बनेगी! जो विचारधारा यह सोचती है कि अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अक़लियती किरदार की मुखालफत कर के उसे कोई सियासी फायदा हो सकता है यह सोच सिर्फ मौजूदा हिन्दुस्तान की सरकार चलाने वालों का ख्याली पुलाव है ! संकीर्ण और साम्प्रदायिक विचार और तादाद की दम पर कमज़ोरों के हक़ छीनने की प्रवर्ती कभी हिन्दुस्तान में बलवान नहीं हो सकती !
हिन्दुस्तान के तमाम सेक्युलर दलों और लेखकों को अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के अक़लियती किरदार के समर्थक धन्यवाद देते हुए यह कहना चाहते हैं कि अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पास आउट होने वाले डॉक्टर,इंजिनियर,वकील और वैज्ञानिक भी मादर-ए-वतन हिन्दुस्तान की ही सेवा करते हैं ! तो फिर मोदी हुकूमत की अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से नाराज़गी क्यों ?
इस आर्टिकल की तकमील हम इस तारीखी सच पर करना चाहते हैं कि हमेशा अल्फ़ाज़ों के जादूगरी पर सियासत करने वाली भाजपा एक बार फिर वादा खिलाफ़ी की वजह से मुल्क में अपनी बिगड़ती सियासी साख को बचाने के लिए इस बार राजनैतिक हथियार के तौर पर भारतीय समाज में धुर्वीकरण करने के लिए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का सहारा लेती नज़र आ रही है ! देशवासियों को हम शब्दों और वाक्यों पर राजनीत का भावनात्मक खेल खेलने वाली भाजपा से होशियार करना चाहते हैं ! समाज को यह याद रखना होगा कि वन्दे मातरम,मादर-ए-वतन तुझे सलाम,भारत माता की जय और मादर-ए-वतन हिन्दोस्तान ज़िंदाबाद जैसे अनेकों जुमलों पर समाज को बरगलाने का काम करने वाली भाजपा इस बार अपने चुनावी वायदों के झूठ पर अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के माध्यम से विशेषकर उप्र का आगामी चुनाव लड़ना चाहती है ! उप्र के सेक्युलर समाज और मुसलमानों को जागरूक होकर धर्मनिरपेक्ष भारत तथा गांधीवादी विचारों की हिफाज़त करनी होगी !

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