माया मृग की हिंदी रचना का देवी नागरानी द्वारा सिंधी अनुवाद

maya mrigमूल लेखक: माया मृग
बूढ़ी औरतें
बूढ़ी औरतें
मंदिर सिर्फ धर्म-कर्म के लिए नहीं जातीं
मंदिर जाती हैं क्योंकि वे कहीं नहीं जातीं …!
ईवनिंग वॉक पर निकली बूढ़ी औरतें
अपनी पीढ़ी की विद्रोहिणी औरतें हैं
उनका होना, सड़क पर होना
विद्रोह है, भले ही उनके हाथ में ना कोई झंडा है
ना हवा में कोई जोशीला नारा
अब भी बची है संभावनाएं, भले ही ना बची हो उम्र
मरते जाने के लिए नहीं जीतीं बूढ़ी औरतें
जीने के लिए मरती हैं …!
वे चली जाएंगी इसी तरह किसी दिन
जीवन के पार जाती सड़क पर
अपने घुटनों के दर्द के साथ हल्की सी कराह लिए
उनकी कराह में मेरी आश्वस्ति है, कह नहीं सका उनसे
पता नहीं
इस आश्वस्ति को बचाए रखने को
गली की सड़क पर कल उन्हें देख सकूंगा कि नहीं बूढ़ी औरतें बीता कल नहीं, आने वाला कल भी नहीं बूढ़ी औरतें जो हैं…. बस आज हैं…!

पता: एफ-77, सैक्टर 9, रोड-11, करतारपुरा इंडस्ट्रियल इस्टेट, बाईस गोदाम, जयपुर 302006 फ: 0141-2503989

Devi N 1सिन्धी अनुवाद: देवी नागरानी
बुढियूं जालूँ
बुढ़ियूं ज़ालूँ फ़क़त मंदर में धर्म-कर्म जे ख़ातिर न वेंदियूं आहिन
मंदर वेंदियूं आहिन, छो जो हू केडान्हु न वेंदियूं आहिन…!
ईवनिंग वॉक ते निकितल बुढ़ियूं ज़ालूँ पाहिंजी पीढ़ीअ जूं विद्रोही ज़ालूँ आहिन
उन्हन जो हुअण, वाट ते हुअण
विद्रोह आहे, भले ई उन्हन जे हथ में के झंडा नाहिन
न हवा में के जोशीला नारा
अजां बि बचियूं आहिन संभावनाऊँ, भले ई न बची हुजे उमुर
मरी वञ्जण जे लाइ नथ्यूं जीअन बुढ़ियूं ज़ालूँ जीअण जे लाइ थ्यूं मरन …. !
हू हली वेन्द्यूं इन्हीअ रीति कहिं डींहु
जीवन जे पार वेंदड़ वाट ते
गोडन जे सूर साणु हल्की कीकराट खणी
उन्हन की कूक में मुहिंजी सुहानभूती आहे,
न चई सघ्युस तिन खे
खबर नाहे
इन दिलासे खे बचाए रखण लाइ
घिटीअ जी वाट ते सुभाणि उन्हन खे डिसी सघन्दुस या न बुढ़ियूं ज़ालूँ गुज़रियल माज़ी नाहिन, मुस्तकबिल बि नाहिन बुढ़ियूं ज़ालूँ जो बि आहिन…बस अजु आहिन..!

पता: ९-डी॰ कॉर्नर व्यू सोसाइटी, १५/ ३३ रोड, बांद्रा , मुंबई ४०००५० फ़ोन: 9987938358

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